कोरोना संक्रमण का असर अब दिमाग तक पहुंचने लगा है। एलएलआर हॉस्पिटल (हैलट, कानपुर) के न्यूरो साइंस कोविड अस्पताल के इंटेसिव केयर यूनिट (आइसीयू) और हाई डिपेंडेंसी यूनिट (एचडीयू) में भर्ती कुछ मरीज अपना नाम भूल रहे है। कुछ अपने परिवारों को पहचान नहीं पा रहे है। इतना ही नहीं डॉक्टरों और स्टॉफ से भी बच्चों जैसी हरकते कर रहे हैं।
डाक्टरों का कहना है कि कोरोना की वजह से मरीज डाक्टर और स्टाफ के पूछने पर उलटा जवाब दे रहे हैं। खाना खाने और दवाओं के सेवन के लिए कहने पर नाराज हो जाते हैं। कुछ के स्वभाव में तो बहुत ज्यादा गुस्सा है। उन्हें नींद की गोलियां देनी पड़ रही हैं। इस स्थिति को आइसीयू साइकोसिस कहते हैं। यह समस्या ज्यादातर युवाओं और फील्ड वर्क करने वालों में सामने आ रही है। इस नई गंभीर समस्या को समझाने के लिए नीचे दिए दो केस से आपको पता चल सकता है।
पहला केस: कानपुर के 39 वर्षीय बीमा सलाहकार कुछ दिन पहले एचडीयू में भर्ती हुए थे। उनका आक्सीजन लेवल कम था। अब स्थिति सामान्य हो रही है। दवाओं और इंजेक्शन से काफी आराम मिला, लेकिन इसका असर उनके दिमाग पर पड़ गया है। उनकी एकाग्रता में कमी आ गई है। कुछ भी सही तरीके से समझ नहीं पा रहे हैं। डाक्टर व अन्य स्टाफ को उन्हें बच्चों की तरह समझाना पड़ता है।
दूसरा केस: कन्नौज के 44 साल के रेलवे इंजीनियर न्यूरो साइंस कोविड अस्पताल में भर्ती हुए थे। उनका आक्सीजन स्तर 85 तक पहुंच गया था। अब पहले से बेहतर हैं। डाक्टर उनसे कुछ पूछते हैं तो वह अटपटे जवाब देते हैं। पत्नी और स्वजन का नाम तक भूल गए हैं। खाना खाने और दवा के लिए कहने पर भड़क जाते हैं।
जानिए क्या होता है आइसीयू साइकोसिस
आईसीयू (ICU) में भर्ती कोविड के मरीजों को बीमारी से ज्यादा तनाव, दहशत और आशंका खाए जा रही है। बड़ी-बड़ी मशीनों के बीच पीपीई किट पहने स्वास्थ्यकर्मी और कई घंटे एकांत में रहने के कारण मरीज मानसिक रोगों का शिकार हो रहे हैं। इससे उनकी हालत और बिगड़ती जा रही है।
डॉक्टरों ने इस स्थिति को ‘आईसीयू साइकोसिस' (ICU Psychosis) नाम दिया है, जहां मरीज वायरस से ज्यादा भयावह स्थिति के कारण जल्द ठीक नहीं हो पा रहा है। कुछ मरीज़ों ने तो इस कारण जान भी गंवा दी है। आईसीयू में भर्ती कोविड के लगभग सभी मरीज़ ‘आईसीयू साइकोसिस' यानी एक तरह के मानसिक डिसॉर्डर से गुज़र रहे हैं। बहकी-बहकी बातें, वहम, और भ्रम का शिकार ये मरीज जल्द ठीक नहीं हो पाते हैं।
ऐसे मरीजों की इलाज के लिए मनोरोग विशेषज्ञ की मदद ली जा रही है। उनको स्थिति सामान्य होने का अहसास दिलाया जा रहा है।