अयोध्या सहित पूरे भारत में आज शोक की लहर दौड़ गई जब यह दुखद खबर आई कि राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का निधन हो गया। 87 वर्षीय आचार्य सत्येंद्र दास का निधन ब्रेन हेमरेज के कारण हुआ। उन्हें 3 फरवरी को गंभीर हालत में लखनऊ PGI रेफर किया गया था, लेकिन आज सुबह 8 बजे उनकी सांसें थम गईं।
आचार्य सत्येंद्र दास का पार्थिव शरीर आज अयोध्या लाया जाएगा, जहां उनके आश्रम सत्य धाम गोपाल मंदिर में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। सत्येंद्र दास ने 33 साल तक रामजन्मभूमि में मुख्य पुजारी के रूप में सेवा दी। उन्हें विशेष रूप से 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के दौरान याद किया जाता है, जब उन्होंने रामलला की मूर्ति को गोद में लेकर सुरक्षा के लिए भागे थे।
आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन राम के प्रति अनन्य भक्ति और समर्पण का प्रतीक था। बचपन से ही उनका राम के प्रति गहरा लगाव था। गुरु अभिराम दास से प्रेरित होकर उन्होंने 13 साल की उम्र में संन्यास लेने का संकल्प लिया और 1958 में अपना घर छोड़ दिया। उन्होंने अपने संन्यास के फैसले में अपने माता-पिता का पूरा समर्थन पाया, जो उनके धार्मिक प्रवृत्तियों से बहुत खुश थे।
संस्कृत की पढ़ाई से लेकर मुख्य पुजारी बनने तक का आचार्य सत्येंद्र दास का सफर
आचार्य सत्येंद्र दास ने बचपन से ही धार्मिक जीवन जीने का संकल्प लिया था। अभिराम दास के आश्रम में पहुंचने के बाद उन्होंने संस्कृत की पढ़ाई शुरू की। गुरुकुल पद्धति से शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई पूरी की और संस्कृत में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद, पूजा-पाठ में रुचि रखते हुए उन्होंने अयोध्या में नौकरी की तलाश शुरू की। उनकी मेहनत रंग लाई और 1976 में उन्हें अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण विभाग में सहायक शिक्षक की नौकरी मिल गई, जहां उन्हें 75 रुपये मासिक तनख्वाह मिलती थी। इस दौरान वे अक्सर राम जन्मभूमि भी जाया करते थे।
राम मंदिर में मुख्य अर्चक के रूप में कार्य
1992 में आचार्य सत्येंद्र दास को राम मंदिर के मुख्य अर्चक के रूप में नियुक्त किया गया। उन्होंने बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले ही रामलला की पूजा और अर्चना का कार्य संभाल लिया था। वे राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रूप से जुड़े थे और विश्व हिंदू परिषद एवं बजरंग दल के साथ मोर्चा भी निकाला था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जब राम मंदिर का निर्माण हुआ, तब भी आचार्य सत्येंद्र दास मुख्य पुजारी के रूप में वहां कार्यरत रहे।
रामलला को बचाकर गोद में लेकर भागने की कहानी
सत्येंद्र दास बाबरी विध्वंस से लेकर राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा तक राम मंदिर आंदोलन के साक्षी रहे। उन्होंने बाबरी विध्वंस वाले दिन की पूरी घटना बताई थी। आचार्य सत्येंद्र दास ने एक बार बताया था कि जब बाबरी का विध्वंस हुआ तो मैं वहीं मौजूद था। 6 दिसंबर की उस घटना को याद करते हुए सत्येंद्र दास ने कहा, "सुबह 11 बज रहे थे, मंच तैयार था और लाउड स्पीकर से ऐलान किया जा रहा था। नेताओं ने कहा कि पुजारी जी रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। मैंने भोग लगाकर रामलला का पर्दा बंद कर दिया। जो कारसेवक वहां आए थे, उनसे कहा गया था कि आप लोग सरयू से जल ले आएं। वहां एक चबूतरा बनाया गया था। ऐलान किया गया कि सभी लोग चबूतरे पर पानी छोड़ें और धोएं, लेकिन जो युवा कारसेवक थे, उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। युवा कारसेवकों ने कहा कि हम यहां पानी से चबूतरा धोने नहीं आए हैं। हम लोग यह कारसेवा नहीं करेंगे। उसके बाद नारे लगने लगे। सभी युवा कारसेवक उत्साहित थे। वे बैरिकेडिंग तोड़कर विवादित ढांचे तक पहुंच गए और तोड़ना शुरू कर दिा। इस बीच हम रामलला को बचाने में लग गए कि उन्हें कोई नुकसान न हो। हम रामलला को उठाकर अलग चले गए। जहां उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।"