पुरानी हवेलियों, बड़ी मस्जिद और मीठे खरबूजों के लिए प्रसिद्ध 'राजस्थान का लखनऊ' : टोंक
By: Anuj Sat, 03 Aug 2024 2:06:52
‘राजस्थान का लखनऊ’ के नाम से पहचान बनाने वाला शहर टोंक, पूर्व में एक रियासत रहा तथा 1948 में राजस्थान का हिस्सा बन गया। पुरानी हवेलियों, बड़ी मस्जिद और मीठे खरबूजों के लिए प्रसिद्ध यह शहर बहुत ही मनोहारी है। शुरू में, जयपुर का यह नगर, अफगानिस्तान के पठानों द्वारा शासित रहा तथा मुग़लकाल में सर्वाधिक सम्पन्न रहा। साहित्य प्रेमी टोंक के नवाब ने, अरबी और फारसी की शिक्षा, शोध तथा पांडुलिपियों के संग्रह को, टोंक की विरासत बनाया। 17वीं शताब्दी में स्थापित टोंक, ब्रिटिश औपनिवेशिक इमारतों और सांस्कृतिक विरासत की शानदार संरचनाओं से समृद्ध यह शहर, पर्यटकों, विशेषकर शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है। इस लेख में आज हम आपको टोंक के आसपास चुनिंदा शानदार स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी सैर आप टोंक भ्रमण के दौरान कर सकते हैं। जानिए ये स्थल आपको किस प्रकार आनंदित कर सकते हैं।
सुनहरी कोठी
सुनहरी कोठी टोंक के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। सुनहरी कोठी (सोने की हवेली) राजस्थान में स्थित एक सुंदर महल है जो अपनी सुंदरता की वजह से जाना जाता है। इस महल की सबसे खास बात है कि इसके अंदर की दीवारों को सोने के पॉलिश से सजाया गया है इसके साथ ही दीवारों पर कांच की कलाकारी भी की गई है। बताया जाता है कि इस महल का निर्माण टोंक के नवाब मोहम्मद इब्राहिम अली खान द्वारा (1867-1930) नृत्य और संगीत के लिए के लिए बनाया था। अगर आप टोंक की यात्रा करने जा रहें हैं तो आपको एक बार इस सुनहरी कोठी की यात्रा जरुर करना चाहिए।
बीसलदेव मंदिर
बीसलपुर - टोंक से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बीसलपुर की स्थापना 12वीं शताब्दी में चव्हाण शासक विग्रहराजा चतुर्थ द्वारा की गयी थी। बीसलपुर को ’गोकर्णेश्वर’ के मंदिर की वजह से महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसे बीसलदेव जी के मंदिर के रूप में जाना जाता है। यह विग्रहराजा चतुर्थ द्वारा बनाया गया था, जो गोकर्ण का परम भक्त था। मंदिर के भीतर एक पवित्र शिवलिंग है। मंदिर का एक गोलाकार गुंबद जो चारों ओर से आठ लम्बे स्तंभों पर आधारित है, पुष्प अलंकरण से आच्छादित है।
डिग्गी कल्याण जी मंदिर
डिग्गी कल्याण जी मंदिर टोंक का एक पुराना मंदिर है जो अपनी प्राचीनता के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का शिखर बेहद आकर्षक है जो पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। मंदिर के शिखर को 16 खंबे सपोर्ट देते हैं जो बेहद दिखने में बेहद अदभुद हैं। यह मंदिर संगमरमर की सुरुचिपूर्ण वास्तुकला का एक अच्छा उदाहरण है। जब आप इस मंदिर के दर्शन करने जायेगे तो इसके पास स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर के दर्शन करने के लिए भी जा सकते हैं।
जामा मस्ज़िद
भारत की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक टोंक की जामा मस्ज़िद है जो कि एक प्रभावशाली स्मारक है तथा गुज़रे ज़माने की मुग़ल क़ालीन स्थापत्य कला का एक बेजोड़ भव्य उदाहरण है। टोंक के पहले नवाब अमीर ख़ां द्वारा इस जामा मस्जिद का निर्माण शुरू करवाया गया था। इस जामा मस्जिद का निर्माण कार्य नवाब वजीरूद्दौला के ज़माने में पूरा किया गया। इस जामा मस्ज़िद का अन्दरूनी हिस्सा और दीवारें स्वर्ण चित्रांकन और मीनाकारी से सुसज्जित हैं, जो कि इस मस्जिद की आंतरिक सुन्दरता को और बढ़ा देता है तथा बाहर की तरफ काफी दूर से भी नजर आने वाली बड़ी बड़ी चार विशाल मीनारे हैं, जिन्हें दूर से देख कर मस्जिद की पहचान हो जाती है। सब कुछ मिला कर इसकी रमणीय जटिलता और बनावट इसे अलग से ही चिन्ह्ति करती हैं।
अरबी और फारसी अनुसंधान संस्थान
अरबी और फारसी अनुसंधान संस्थान टोंक शहर में दो पहाड़ियों के बीच स्थित है। आपको बता दें कि इस संग्राहलय में अरबी में पुस्तकों और पांडुलिपियों के कुछ सबसे पुराने का संग्रह देखा जा सकता है। यहां रखी हुई कुछ प्राचीन पुस्तकें सोने, पन्ना, मोती और माणिक्य से सुभोभित है। अगर आप टोंक की यात्रा करने जा रहें हैं तो आपको इस संस्थान की यात्रा अवश्य करनी चाहिए।
बीसलपुर डैम (बांध)
राजस्थान राज्य की राजधानी के लिए जीवनदायिनी के रूप में पहचान बनाने वाला, बीसलपुर डैम एक गुरूत्व बांध है जो कि बनास नदी पर निर्मित किया गया है - यह राजस्थान के टोंक ज़िले के देवली कस्बे के पास है। इस डैम का निर्माण सन् 1999 में पूरा किया गया था तथा तभी से यह डैम राज्य के कई क्षेत्रों को पानी सप्लाई करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण स्त्रोत बन गया है। बीसलपुर का यह डैम जयपुर के म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन के तत्वाधान में लगभग जयपुर जिले के आधे क्षेत्र में ही पानी सप्लाई करने का कार्य नहीं करता बल्कि सवाई माधोपुर जिले अजमेर जिले और टोंक जिले को भी इसी डैम से पानी सप्लाई किया जाता है। अजमेर के नसीराबाद क्षेत्र से एक पन्द्रह वैगन की ट्रेन, लगभग 2।5 लाख लीटर पानी लेकर भीलवाड़ा जिले के लिए पानी लेकर जाती है।
घंटा घर
क्लॉक टावर जिसे ’घंटा घर’ के नाम से स्थानीय लोग जानते हैं तथा इसका नाम टोंक की सबसे अधिक प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारतों में से एक गिना जाता है। टोंक के पूर्व नवाब मोहम्मद सआदत अली खां द्वारा इस घंटा घर का निर्माण कराया गया है तथा इसी लिए इसकी महत्ता बहुत अधिक है। यदि स्थानीय लोगों द्वारा बताई गई कहानी पर विश्वास करें तो कहा जाता है कि एक बार सन् 1936 में टोंक शहर में हैजा (कॉलरा) की महामारी फैल गई थी। इस दुखद समय में टोंक नवाब ने उन सभी लोगों को मुफ्त दवाईयां बांटी जो इस बीमारी से पीड़ित हो गए थे। अंत में इस दौरान जो पैसा इकट्ठा किया गया था, उसमें से जो बचा, उसका उपयोग इस प्रतिष्ठित घंटा घर को बनवाने के काम में लिया गया। यहाँ हमेशा कोई न कोई आयोजन, इस ऐतिहासिक घंटा घर के सामने की तरफ होते रहते हैं, जहाँ आप टोंक शहर के लोगों का जोश और खुशी देख सकते हैं। इस दिलचस्प ऐतिहासिक घंटा घर की असली खूबसूरती देखनी हो तो आप इसे रात के समय आकर देखें।