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भारत के इन गाँव में नहीं मनाई जाती हैं होली, कारण हैं बेहद हैरान करने वाले

भारत को त्योहारो का देश कहा जाता हैं जहां कुछ त्यौहार ऐसे हैं जो उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं। ऐसा ही एक त्योहार होली अब आने वाला हैं। इसे रंगों का त्योहार तो कहते ही हैं साथ ही यह दिलों को जोड़ने वाला त्योहार भी है।

Posts by : Ankur Mundra | Updated on: Mon, 06 Mar 2023 3:04:16

भारत के इन गाँव में नहीं मनाई जाती हैं होली, कारण हैं बेहद हैरान करने वाले

भारत को त्योहारो का देश कहा जाता हैं जहां कुछ त्यौहार ऐसे हैं जो उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं। ऐसा ही एक त्योहार होली अब आने वाला हैं। इसे रंगों का त्योहार तो कहते ही हैं साथ ही यह दिलों को जोड़ने वाला त्योहार भी है। अपनों के साथ रंगों से खेलने की खुशी और त्योहारी के स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ हर किसी को उत्साह से भर देता है। होली को लेकर भारत के लगभग हर हिस्से के लोग काफी उत्सुक रहते हैं। इस दिन एक-दूसरे से कड़वाहट को भुलाकर त्योहार को देशभर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन देश के ही कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां होली का त्योहार नहीं मनाया जाता हैं। हम आपको यहां उन्हीं गांव और इसके पीछे की अनोखी वजहों के बारे में बताने जा रहे हैं कि आखिर यहां होली क्यों नहीं मनाई जाती हैं।

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कसमार ब्लॉक, झारखण्ड

कसमार एक ऐसी जगह है जहां आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से होली नहीं मनाई जाती है। होली नहीं मनाने के पीछे लोककथा है कि लगभग 100 साल पहले एक राजा की एक बेटी की मौत होली के दिन ही हो गई थी। इतना ही नहीं, इस घटना के तुरंत बाद राजा ने भी दम तोड़ दिया था। ऐसा माना जाता है कि मौत से पहले राजा ने लोगों से कहा था कि होली नहीं मानना। तब से यहां होली नहीं मनाई जाती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कसमार ब्लॉक झारखण्ड के बोकारो शहर में मौजूद है।

रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ऐसे दो गांव हैं, जहां 150 सालों से होली नहीं मनाई जाती। क्विली और कुरझान गांव के लोगों का मानना है कि यहां की देवी त्रिपुर सुंदरी को शोरगुल पसंद नहीं है, इसलिए गांव के लोग शोरगुल वाले त्योहारों को मानने से परहेज करते हैं। बता दें कि रुद्रप्रयाग में अलकनंदा और मंदाकिनी नदी का मिलन होता है, इसलिए इसे संगम स्थल भी कहा जाता है। रुद्रप्रयाग की यात्रा के दौरान पर्यटक कोटेश्वर महादेव के दर्शन जरूर करते हैं। यहां पर देवी काली को समर्पित धारी देवी मंदिर भी बहुत फेमस है।

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कैथल, हरियाणा

हरियाणा के कैथल के गुहल्ला चीका स्थित गांव में भी होली नहीं मनाई जाती। यहां 150 साल पहले गांव के एक ठिगने कद के बाबा रहा करते थे। होली के दिन कुछ लोगों ने उनका मजाक बनाया। जिससे बाबा क्रोधित हो गए और होलिका दहन की आग में ही कूद गए। हालांकि मरने से पहले वो गांव वालों को ये श्राप दे गए कि जो भी आज के बाद यहां होली मनाएगा उसके परिवार का नाश हो जाएगा। इसके बाद से ही इस गांव में होली नहीं मनाई जाती। ऐसा कहते हैं कि जब गांव वालों ने बाबा से माफी मांगी थीं तो उन्होनें कहा था कि अगर भविष्य में होली के दिन ही यहां जब किसी के घर पुत्र का जन्म होगा और उसी दिन गाय बछड़े को जन्म देगी, तब ये श्राप खत्म हो जाएगा। लेकिन अब तक ऐसा संयोग नहीं बना। गांव में तो श्राप का डर इस तरह है कि यहां लोग एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं तक नहीं देते।

रामसन, गुजरात

गुजरात का रामसन उर्फ रामेश्वर गांव 200 सालों से भी ज्यादा से होली का त्यौहार नहीं मना रहा है। इस जगह का नाम पहले रामेश्वर था और बाद में रामसन हो गया। इसका संबंध भगवान राम से है और स्थानीय मान्यता के अनुसार भगवान राम अपने जीवनकाल में यहां आए थे। ऐसी मान्यता है कि 200 से ज्यादा साल पहले यहां होलिका दहन किया गया था जिससे आग पूरे गांव में फैल गई थी। अधिकतर घर जल गए थे और लोगों ने इसके बाद से होली मनाना ही बंद कर दिया। उसके बाद से कभी इस गांव में होलिका दहन नहीं हुआ है। ऐसी भी मान्यता है कि यहां के राजा होलिका दहन ना होने के कारण संतों से नाराज हो गए थे। संत नाराज हो गए थे और उसके बाद उन्होंने श्राप दिया कि जिस दिन यहां होलिका दहन होगा उस दिन पूरे गांव में आग लग जाएगी। इस श्राप का असर आज भी देखने मिलता है और लोगों की मान्यता है कि होलिका दहन और होली का त्यौहार मनाना बंद कर दिया गया है।

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दुर्गापुर, झारखंड

झारखंड बोकारो के दुर्गापुर गांव में लोगों ने पिछले 100 साल से होली नहीं मनाई है। बताया जाता है कि यहां के राजा के बेटे की मौत इस दिन हुई थी और मरने से पहले राजा ने अपनी प्रजा को होली न मनाने का आदेश दिया था। तब से यहां होली सेलिब्रेट नहीं की जाती। अगर यहां कोई होली खेलना भी चाहता है तो उसे दूसरे गांव में जाना पड़ता है।

मुलताई, मध्यप्रदेश

मध्यप्रदेश के बैतूल जिले की मुलताई तहसील के डहुआ गांव में 125 साल से होली नहीं मनाई गयी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि करीब 125 साल पहले होली वाले दिन इस गांव के प्रधान बावड़ी में डूब गए थे जिसके चलते उनकी मौत हो गई थी। इस मौत से गांव वाले बहुत दुखी हुए और उनके इस घटना के बाद जेहन में डर बस गया। अब होली न खेलना यहां की धार्मिक मान्यता बन चुकी है।

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