गर्भ से निकल रही ज्वाला के लिए प्रसिद्द हैं देवी मां का यह मंदिर, अकबर ने किए थे लौ बुझाने के प्रयास

By: Ankur Wed, 28 June 2023 1:06:14

गर्भ से निकल रही ज्वाला के लिए प्रसिद्द हैं देवी मां का यह मंदिर, अकबर ने किए थे लौ बुझाने के प्रयास

भारत देश को अपने मंदिरों के लिए जाना जाता हैं जिसमें से कुछ मंदिर देवी मां को समर्पित हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक हैं हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित ज्वाला देवी मंदिर जो ज्वालामुखी या ज्वाला देवी को समर्पित है। मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालामुखी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। कहते हैं कि यहां पर सती की जीभ गिरी थी। वहीं ज्वाला देवी मंदिर में बिना तेल और बाती के नौ ज्वालाएं जल रही हैं। इस मंदिर का चमत्कार यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों की पूजा की जाती है। ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास बेहद विशाल और अद्भुद रहा हैं। आज इस कड़ी में हम आपको ज्वाला देवी मंदिर के इतिहास, पौराणिक कथा और वास्तुकला के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। आइये जानते हैं...

kangra mata jwala ji mandir,jwala ji mandir himachal pradesh,burning flame in water,sacred flame temple,jwala devi temple,jwalamukhi temple,himachal pradesh religious site,jwala ji mandir history,jwala ji mandir significance,divine flame temple himachal pradesh

अद्भुत हैं 9 ज्वालाएं

ज्वाला देवी मंदिर मंदिर को सबसे पहले राजा भूमि चंद ने बनवाया गया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसार चंद ने 1835 में इस मंदिर का निर्माण कार्य पूरा किया था। हिमाचल प्रदेश के इस शक्तिपीठ में वर्षों से 9 प्राकृतिक ज्वालाएं जल रही हैं। कहते हैं कि इन ज्वालाओं का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक कई सालों से रिसर्च कर रहे हैं। 9 किलोमीटर की खुदाई करने के बाद भी वैज्ञानिकों को आज तक वह जगह नहीं मिल सकी, जहां प्राकृतिक गैस निकल रही हो। धरती से 9 ज्वालाएं निकल रही हैं जिसके ऊपर मंदिर बनाया गया है। इस मंदिर में जल रही नौ ज्वाला में से एक ज्वाला बड़ी हैं जिसे मां ज्वाला का स्वरूप माना जाता है और दूसरी बाकी आठ ज्वाला को मां चंडी देवी, मां महालक्ष्मी, मां विंध्यवासिनी, मां अन्नपूर्णा, हिगलाज देवी, मां अंबिका देवी, माता अंजनी देवी और मां सरस्वती का स्वरूप माना जाता है।

ज्वाला देवी मंदिर का इतिहास

जब भगवान शिव का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सती से हुआ था उस समय की यह घटना मानी जाती है। जैसे ऊपर बताया गया कि जब राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया था और माता सती के बिन बुलाए जाने पर राजा दक्ष ने उनकी और भगवान शिव का काफी अपमान किया था जिसके कारण माता सती हवन कुंड में कूद गई थी और भगवान शंकर ने यज्ञ से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कर कंधे पर उठा लिया था और दुखी हुए इधर उधर घूमने लगे थे तब संपूर्ण विश्व को प्रलय से बचाने के लिए जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को काट दिया था जिसके कारण उनके शरीर के टुकड़े 51 जगहों पर गिरे थे। उन्हीं 51 में से एक माता सती की यहां पर जीभा गिरी थी जोकि सती की जीभ ज्वालाजी (610 मीटर) पर गिरी और मां देवी 9 छोटी लपटों के रूप में प्रकट हुई जो सदियों पुरानी चट्टान में दरारों के माध्यम से जहां पर मां ज्वाला नीली ज्योति जलती रहती है। शक्तिपीठ के रूप में इस मंदिर की स्थापना की गई। और भगवान शिव शंकर भैरव के रूप में यहां पर स्थापित हुए थे।

kangra mata jwala ji mandir,jwala ji mandir himachal pradesh,burning flame in water,sacred flame temple,jwala devi temple,jwalamukhi temple,himachal pradesh religious site,jwala ji mandir history,jwala ji mandir significance,divine flame temple himachal pradesh

ज्वाला देवी मंदिर की पौराणिक कथा

कथा के अनुसार, भक्त गोरखनाथ मां ज्वाला देवी के बहुत बड़े भक्त थे और हमेशा भक्ति में लीन रहते थे। एकबार भूख लगने पर गोरखनाथ ने मां से कहा कि मां आप पानी गर्म करके रखें तब तक मैं मीक्षा मांगकर आता हूं। जब गोरखनाथ मिक्षा लेने गए तो वापस लौटकर नहीं आया। मान्यता है कि यह वही ज्वाला है जो मां ने जलाई थी और कुछ ही दूरी पर बने कुंड के पानी से भाप निकलती प्रतित होती है। इस कुंड को गोरखनाथ की डिब्बी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कलयुग के अंत में गोरखनाथ मंदिर वापस लौटकर आएंगे और तब तक ज्वाला जलती रहेगी। ज्वाला माता के मंदिर को लेकर ध्यानू भगत की कहानी भी प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार, ध्यानू भगत ने अपनी भक्ति सिद्ध करने के लिए अपना शीश मां को चढ़ा दिया था। मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से मां से जो भी मांगता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है। कोई भी मां के दरबार से खाली नहीं जाता।

ज्वाला देवी मंदिर की वास्तुकला


ज्वाला देवी मंदिर वास्तुकला इंडो-सिख शैली में देखने को मिलती है। यह एक लकड़ी के चबूतरे पर बनाया मंदिर है और शीर्ष पर एक छोटे से गुंबद के साथ चार कोनों वाला दिखाई देता है। मंदिर में एक केंद्रीय वर्गाकार गड्ढा है जहाँ अनन्त लपटें जलती हैं। आग की लपटों के सामने गड्ढे हैं जहां फूल और दूसरे प्रसाद रखे जाते हैं। मंदिर का गुंबद और शिखर सोने से ढका हुआ देखने को मिलता है। उसको महाराजा रणजीत सिंह ने उपहार में भेट दिया था। उसके निर्माण में महाराजा खड़क सिंह या रणजीत सिंह के पुत्र ने चांदी का उपहार दिया था। उसका उपयोग मंदिर के मुख्य द्वार को ढकने किया गया था। मंदिर के सामने बनी पीतल की घंटी नेपाल के राजा ने भेंट चढ़ाई थी। मंदिर सुनहरे गुंबद और हरियाली में चमकते चांदी के दरवाजों से और भी सुंदर दिखता है। मुख्य हॉल के केंद्र में संगमरमर से बना बिस्तर है वह चांदी से सजाया गया है। रात देवी की आरती के बाद कपड़े और सौंदर्य प्रसाधन कमरे में रखे जाते हैं। कमरे के बाहर महादेवी, महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी की मूर्तियाँ बनी हैं। गुरु गोविंद सिंह द्वारा दी गई गुरु ग्रंथ साहिब की पांडुलिपि भी कमरे में सुरक्षित है।

kangra mata jwala ji mandir,jwala ji mandir himachal pradesh,burning flame in water,sacred flame temple,jwala devi temple,jwalamukhi temple,himachal pradesh religious site,jwala ji mandir history,jwala ji mandir significance,divine flame temple himachal pradesh

अकबर ने किए थे लौ बुझाने के कई प्रयास

इस मंदिर में जल रही 9 अखंड ज्वालाओं को बुझाने के लिए मुगल सम्राट अकबर ने लाख कोशिश की थी। परंतु लाख कोशिशों के बावजूद भी वे इसे बुझाने में नाकाम रहे। दरअसल इस ज्वाला को लेकर अकबर के मन में कई शंकाएं थीं। उन्होंने इस ज्वाला को बुझाने कि उस पानी डालने का आदेश दिया था। साथ ही ज्वाला की लौ की तरफ नहर को घुमाने का भा आदेश दिया था, लेकिन ये सभी कोशिशें असफल रही थीं। कहते हैं कि देवी मंदिर के चमत्कार को देखकर वे झुक गए और खुश होकर वहां सोने का छत्र चढ़ाया था। हालांकि कहा ये भी जाता है कि देवी मां ने उनकी ये भेंट स्वीकार नहीं कीं और सोने का छत्र नीचे गिर गया। जिसके बाद वह किसी अन्य धातु में बदल गया। जिसका पता आज तक किसी को नहीं है।

माता ज्वाला देवी के दर्शन और आरती का समय


मंदिर में पुजारियों द्वारा की जाने वाली आरती मंदिर का मुख्य आकर्षण है। इस मंदिर में दिन के दौरान पांच आरती और एक हवन किया जाता है। सबसे पहले सुबह 4:30 बजे श्रृंगार आरती होती है, जिसमें मां को मालपुआ, मावा और मिश्री का भोग लगाया जाता है। इसके आधे घंटे बाद मंगल आरती होती है जिसमें मां को पीले चावल और दही का भोग चढ़ाया जाता है। दोपहर में मध्यानकाल आरती में चावल और छह तरह की दाल और मिठाईयों का भोग लगाया जाता है। शाम को शयन आरती होती है। भक्त अपनी भक्ति की निशानी के रूप में देवी को रबड़ी, मिश्री, चुनरी, दूध, फूल और फल अर्पित करते हैं। अगर आप ज्वालाजी के धार्मिक दर्शन के लिए जा रहे हैं तो आपको मंदिर खुलने और यहां होने वाले दर्शन का समय जरूर मालूम होना चाहिए क्योंकि मौसम के अनुसार मंदिर के खुलने और बंद होने के समय में बदलाव कर दिया जाता है। गर्मियों में जहां मंदिर सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक खुलता है, वहीं सर्दी के दिनों में सुबह 6 बजे से रात 9 बजे तक दर्शन के लिए खुलता है। गर्भगृह के अलावा, परिसर में गोरख डिब्बी और चतुर्भुज मंदिर सहित कई छोटे मंदिर हैं, जिनके दर्शन करना एक अच्छा अनुभव हो सकता है।

कैसे पहुंचे ज्वाला देवी मंदिर?

आप सड़क मार्ग से ज्वाला देवी मंदिर कांगड़ा जाना चाहते है। तो नई दिल्ली से कांगड़ा जाने वाली बसें ले सकते हैं। आप मंदिर तक पहुँचने के लिए ज्वालामुखी बस स्टैंड तक पहुँच सकते हैं। मंदिर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। पंजाब और हरियाणा के शहरों से राज्य परिवहन की बसें कांगड़ा तक चलती हैं। हवाई मार्ग से ज्वाला देवी मंदिर जाने के लिए कांगड़ा में हवाई अड्डे की सेवा नहीं है। कांगड़ा घाटी से 14 किमी की दूरी पर गग्गल हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है। आप दिल्ली से धर्मशाला के लिए फ्लाइट ले सकते हैं। उसके साथ रेल मार्ग से ज्वाला देवी मंदिर जाना चाहते है। तो कांगड़ा के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं हैं। अमृतसर शताब्दी एक्सप्रेस नई दिल्ली से जालंधर तक चलती है। उसके बाद जालंधर से कैब ले सकते हैं और घाटी तक पहुँच सकते हैं। यहाँ से टैक्सियाँ और बसें आसानी से उपलब्ध हैं।

ये भी पढ़े :

# सफ़ेद दाग की समस्या कहलाती हैं विटिलिगो, इन घरेलू नुस्खों से करें इसका इलाज

# क्या आपको भी परेशान कर रही हैं घमौरियां, इन 10 चीजों की मदद से मिलेगा आराम

# लेना चाहते हैं पानी के साथ रोमांच का अनुभव, देश की ये 8 जगहें है वाटर स्पोर्ट्स के लिए बेहतरीन

# रिश्ते में खटास का कारण बनता हैं कम्युनिकेशन गैप, इन तरीकों से करें इसे खत्म

हम WhatsApp पर हैं। नवीनतम समाचार अपडेट पाने के लिए हमारे चैनल से जुड़ें... https://whatsapp.com/channel/0029Va4Cm0aEquiJSIeUiN2i

Home | About | Contact | Disclaimer| Privacy Policy

| | |

Copyright © 2024 lifeberrys.com