ऊंचे पहाड़ों पर बसे है मातारानी के ये प्रसिद्द मंदिर, जरूर पहुंचे यहां दर्शन करने

By: Priyanka Maheshwari Thu, 06 June 2024 11:04:41

ऊंचे पहाड़ों पर बसे है मातारानी के ये प्रसिद्द मंदिर, जरूर पहुंचे यहां दर्शन करने

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता हैं जहां आपको हर इलाके में कई मंदिर देखने को मिल जाएंगे। इन मंदिरों में मातारानी के भी कई मंदिर हैं। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया हैं कि मातारानी के प्रसिद्द मंदिर पहाड़ों में ही हैं और यह कारण भी हैं कि मातारानी को पहाड़ों वाली माता भी कहते हैं। ऐसे तो मातारानी के कई मंदिर हैं, लेकिन आज इस कड़ी में हम आपको कुछ प्रसिद्द मंदिरों के बारे में बताने जा रहे हैं जो ऊंचे पहाड़ों पर बसे है। इन मंदिरों की शोभा देखते ही बनती है और पहाड़ो पर बने होने के कारण इनका अपना एक अलग ही महत्व है। पहाड़ों पर स्थित माता के इन मंदिरों में कुछ पर पहुंचना आसान है तो कुछ पर पहुंचने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। आइये जानते हैं इन मंदिरों के बारे में...

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माता वैष्णो देवी, त्रिकुटा पहाड़ी

वैष्णो देवी माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं। ये मंदिर जम्मू और कश्मीर के जम्मू जिले में कटरा नगर में त्रिकुटा पहाड़ियों पर है। ये मंदिर 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं। माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार, माता वैष्णो के भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया।

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मनसा देवी मंदिर, बिल्वा पर्वत

मनसा देवी मंदिर अत्यंत ही प्रसिद्ध है, जहां रोजाना कई श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। माता मनसा को समर्पित यह मंदिर हरिद्वार से सिर्फ 3 किमी की दूरी पर शिवालिक पहाड़ियों के बिल्वा पर्वत पर स्थित है। यह शक्तिपीठ हरिद्वार में स्थित अन्य पीठ-चंदा देवी मंदिर और माया देवी मंदिर की ही भांति काफी लोकप्रिय है। मान्यताओं के अनुसार, मनसा देवी की उत्पत्ति ऋषि कश्यप के मन से हुई थी। यहां के पेड़ पर धागा बांधने से मनोकामना जरूर पूरी होती है। जिसके बाद पेड़ से कोई एक धागा खोलने की परंपरा भी चली आ रही है।

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तारा देवी मंदिर, तारा पर्वत

तारा देवी मन्दिर हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से लगभग 13 किमी की दूरी पर स्थित शोघी में है। देवी तारा को समर्पित यह मंदिर, तारा पर्वत या पहाड़ पर बना हुआ है। तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए भी हिन्दू धर्म की देवी तारा का काफ़ी महत्व है, जिन्हें देवी दुर्गा की नौ बहनों में से नौवीं कहा गया है। कहा जाता है कि यह मंदिर लगभग 250 साल पहले बनाया गया था। यहां स्थापित देवी की मूर्ति को लेकर मान्यता है की तारा देवी की मूर्ति प। बंगाल से लाई गई थी।

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अर्बुदा देवी मंदिर, माउंट आबू

राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन माउंट आबू से 3 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है अर्बुदा देवी मंदिर। यह मंदिर ऊँची चोटी पर बना है और देवी दुर्गा को समर्पित है। यह मंदिर एक गुफ़ा के अंदर स्थित है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्त 365 सीढियां चढ़कर यहाँ आते हैं जिसमें प्रत्येक सीढ़ी एक वर्ष के एक दिन का प्रतीक है। लंबी यात्रा भक्तों को रोक नहीं पाती जो बड़ी संख्या में यहाँ देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई भक्त पूरी श्रद्धा के साथ देवी की पूजा करता है तो, यहां उसे बादलों में देवी की छवि दिखाई देती है।

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शारदा माता मंदिर, त्रिकूट पर्वत

मैहर, मध्य प्रदेश के सतना जिले में एक छोटा सा नगर है। यहां त्रिकूट पर्वत पर मैहर वाली माता का प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यहां माता शारदा का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। ऐसा माना जाता है की यहां देवी सती का हार गिरा था। मंदिर तक जाने के लिए यहां आपको 1063 सीढ़ियां चढ़नी होती है, जहां से गुजरकर हजारों की संख्या में हर साल श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। इसके अलावा रतनगढ़ वाली माता, तुलजा भवानी देवास और सल्कानपुर राज्य के अन्य देवी मंदिर हैं।

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कनक दुर्गा मंदिर, इंद्रकीलाद्री पर्वत

विजयवाड़ा स्थित इंद्रकीलाद्री नामक पर्वत पर निवास करने वाली माता कनक दुर्गेश्वरी का मंदिर आंध्रप्रदेश के मुख्य मंदिरों में एक है। पहाड़ी की चोटी पर बसे इस मंदिर में श्रद्धालुओं के जयघोष से समूचा वातावरण और भी आध्यात्मिक हो जाता है। यहां पहाड़ी को लेकर मान्यता है कि अर्जुन ने यहीं पर भगवान शिव की तपस्या की थी और उनसे पाशुपतास्त्र प्राप्त किया था। कहते है इस मंदिर की देवी प्रतिमा स्वयं प्रकट हुई थी, इसलिए इसे बहुत ख़ास और शक्तिशाली माना जाता है।

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पूर्णागिरी देवी मंदिर, अन्नपूर्णा शिखर

यह मन्दिर भारत के देवभूमि उत्तराखण्ड के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहां पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहां आते हैं। "मां वैष्णो देवी" जम्मू के दरबार की तरह पूर्णागिरी दरबार में हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं।

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बम्लेश्वरी देवी मंदिर, डोंगरगढ़ पर्वत

छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ पर्वत पर 1600 फीट की ऊंचाई पर स्थित मां बम्लेश्वरी के मंदिर को यहां के समस्त समुदाय तीर्थ मानते हैं। पर्यटकों में भी लोकप्रिय इस पहाड़ी पर स्थित मंदिर पर जाने के लिए 1100 सीढ़ियों पर चढ़कर जाने के अलावा रोपवे की सुविधा भी उपलब्ध है। माता बम्लेश्वरी मंदिर को बड़ी बम्लेश्वरी और यहां से आधा किलोमीटर नीचे बने मंदिर को छोटी बम्लेश्वरी पुकारा जाता है। ऐसे इस जगह का नाम डोंग और गढ़ शब्दों को मिलाकर बना है। डोंग का अर्थ पर्वत और गढ़ का मतलब क्षेत्र होता है। इसके अलावा इस राज्य के दंत्तेश्वरी मंदिर की भी काफी मान्यता है।

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