IIT मद्रास की स्टडी में दावा - देश में 6 फरवरी तक अपने चरम पर पहुंच जाएगा कोरोना, R वैल्यू का घटना अच्छे संकेत
By: Priyanka Maheshwari Sun, 23 Jan 2022 11:38:45
कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट की वजह से देश में तीसरी लहर चल रही है. तीसरी लहर में कोरोना के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है ऐसे में सबके मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि इस लहर का पीक कब आएगा। ऐसे में आईआईटी मद्रास ने अपनी स्टडी में यह दावा किया है कि कोरोना की तीसरी लहर का पीक 14 दिनों में आ जाएगा। इसके साथ ही स्टडी में यह भी कहा गया कि 6 फरवरी तक यानी 2 हफ्तों में कोरोना अपने चरम पर पहुँच जाएगा।
स्टडी के अनुसार, भारत में कोरोना संक्रमण फैलने की दर बताने वाली R वैल्यू 14 जनवरी से 21 जनवरी के बीच 2.2 से घटकर 1.57 रह गई है। यह 7 से 13 जनवरी के बीच 2.2 थी। 1 से 6 जनवरी के बीच यह 4 पर थी। पिछले साल 25 से 31 दिसंबर के बीच R वैल्यू 2.9 के करीब थी। ऐसे में तीसरी लहर के अगले 15 दिन में पीक पर पहुंचने की आशंका है।
क्या होती है R वैल्यू?
R वैल्यू कोरोना की प्रसार दर को दिखाती है। जो ये बताती है कि कोरोना से इन्फेक्टेड एक व्यक्ति, कितने लोगों को संक्रमित कर रहा है। अगर R वैल्यू 1 से ज्यादा है तो इसका मतलब है कि केस बढ़ रहे हैं और अगर 1 से नीचे चली गई तो महामारी को खत्म माना जाता है।
जो आंकड़े सामने आए हैं उसके अनुसार मुंबई की R वैल्यू 0.67, दिल्ली की 0.98, चेन्नई की 1.2 और कोलकाता की 0.56 पाई गई।
आईआईटी मद्रास के गणित विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ जयंत झा ने कहा कि मुंबई और कोलकाता के आंकडों से ये पता चलता है कि वहां कोरोना संक्रमण की पीक अब खत्म होने की कगार पर है। जबकि दिल्ली यह अभी भी 1 के करीब और चेन्नई में 1 से ज्यादा है।
झा ने कहा कि R वैल्यू तीन चीजों पर निर्भर करता है- 'प्रसार की आशंका, संपर्क दर और संभावित समय अंतराल, जिसमें संक्रमण हो सकता है।'
उन्होंने बताया कि अब क्वारैंटाइन के उपायों या पाबंदियां बढ़ाए जाने के साथ हो सकता है कि संपर्क में आने की दर कम हो जाए और उस मामले में R वैल्यू में कमी आ सकती है। एनालिसिस के आधार पर हम यह संख्या बता सकते हैं, लेकिन यह बदल सकती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि लोगों के जमा होने और दूसरी गतिविधियों पर कैसी कार्रवाई की जा रही है।
झा ने बताया कि केस कम आने का एक कारण ये भी हो सकता है कि ICMR के नए दिशा-निर्देशों के अनुसार कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जरूरत को हटा दिया गया है। इसके अनुसार कोरोना संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वालों का पता लगाने की जरूरत नहीं है। इसीलिए पहले की तुलना में संक्रमण के मामले कम आ रहे हैं।
ये भी पढ़े :