महाकुंभ 2025: जानिए कैसे बनते हैं खूनी नागा साधु, धर्म रक्षा के लिए करते हैं बलिदान

By: Sandeep Gupta Fri, 10 Jan 2025 07:23:23

महाकुंभ 2025: जानिए कैसे बनते हैं खूनी नागा साधु, धर्म रक्षा के लिए करते हैं बलिदान

इस वर्ष का महाकुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से आरंभ होकर 26 फरवरी तक चलेगा। यह पावन पर्व देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करेगा। महाकुंभ के दौरान नागा साधु और अखाड़ों की परंपराएं विशेष महत्व रखती हैं। नागा साधुओं को सबसे पहले पवित्र नदी में डुबकी लगाने का अधिकार प्राप्त होता है। इनके शाही स्नान के बाद ही आम श्रद्धालुओं को स्नान करने की अनुमति दी जाती है। नागा साधुओं का जीवन कठोर और रहस्यमयी होता है। भारत में नागा साधुओं के 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जो शाही स्नान की परंपरा का पालन करते हैं। यह परंपरा अंग्रेजों के समय से चली आ रही है, जिसमें यह तय होता है कि कौन सा अखाड़ा सबसे पहले शाही स्नान करेगा। नागा साधुओं को धर्म का रक्षक माना जाता है।

नागा साधु बनने की कठिन प्रक्रिया


नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठोर और अनुशासित होती है। सबसे पहले, साधु बनने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को तीन साल तक महंत की सेवा करनी होती है और ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। इसके बाद, उज्जैन, हरिद्वार, या अन्य स्थानों पर दीक्षा देने का निर्णय महंतों द्वारा लिया जाता है। उज्जैन में दीक्षा ग्रहण करने वाले साधुओं को 'खूनी नागा साधु' कहा जाता है।

खूनी नागा साधु: दीक्षा की विशेष प्रक्रिया


खूनी नागा साधु बनने के लिए साधु को कई रातों तक 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करना होता है। इसके बाद, अखाड़े के प्रमुख महामंडलेश्वर द्वारा विजया हवन करवाया जाता है। हवन के बाद, साधु को शिप्रा नदी में 108 बार डुबकी लगाने के लिए कहा जाता है। उज्जैन के कुंभ मेले में अखाड़े के ध्वज के नीचे दंडी त्याग की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही साधु को खूनी नागा साधु के रूप में मान्यता मिलती है।

खूनी नागा साधुओं का स्वभाव और भूमिका

खूनी नागा साधुओं को अत्यंत उग्र स्वभाव का माना जाता है, लेकिन इनके मन में किसी के प्रति छल-कपट या बैर नहीं होता। इन्हें धर्म का योद्धा माना जाता है। धर्म की रक्षा के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। उज्जैन में दीक्षा लेने वाले खूनी नागा साधु धर्म रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं।

नागा साधुओं का महत्व

नागा साधु न केवल आध्यात्मिक अनुशासन के प्रतीक हैं, बल्कि उन्हें धर्म की रक्षा के लिए एक योद्धा के रूप में देखा जाता है। इनके कठोर जीवन और रहस्यमयी परंपराओं के कारण ये हमेशा श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहते हैं। महाकुंभ के दौरान नागा साधुओं की उपस्थिति इस आयोजन को और भी भव्य और आध्यात्मिक बना देती है।

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