देवउठनी एकादशी व्रत दिलाता हैं भगवान विष्णु की कृपा, जानें मुहूर्त, पूजा विधि और कथा
By: Priyanka Maheshwari Sun, 19 Nov 2023 11:30:03
हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व माना गया हैं जो भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं। लेकिन सबसे बड़ी एकादशी ‘देवोत्थान एकादशी’ मानी जाती है। हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को यह आती हैं जिसे देवउठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं।
मान्यता अनुसार देवउठान एकादशी के दिन से भगवान विष्णु 4 महीने की योगनिद्रा से बाहर आ जाते हैं और उसके बाद वे सृष्टि का कार्य देखने का अपना काम आरंभ कर देते हैं। इस साल देवउठान एकादशी 23 नवंबर 2023 को मनाई जाएगी और उसके अगले दिन तुलसी विवाह होगा। देवउठान एकादशी को एक अबूझ मुहूर्त माना जाता है और इस दिन से शादी, ब्याह और सभी शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं। आज इस कड़ी में हम आपको इस व्रत के मुहूर्त, पूजा विधि और कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
देवउठनी एकादशी 2023 मुहूर्त
देवउठान एकादशी की तिथि का आरंभ 22 नवंबर 2023 को रात में 11 बजकर 3 मिनट पर होगा और समापन 23 नवंबर 2023 को रात में 9 बजकर 1 पर मिनट पर होगा। इस प्रकार देवउठान एकादशी का व्रत 23 नवंबर 2023 को गुरुवार को रखा जाएगा। व्रत का पारण 24 नवंबर 2023 को सुबह 6 बजे से 8 बजकर 13 मिनट तक करना शुभ होगा।
देवउठनी एकादशी पूजा विधि
प्रात: स्नान के बाद देवउठनी एकादशी व्रत और विष्णु पूजा का संकल्प करें। उसके बाद शुभ मुहूर्त में पूजा करें। भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को एक चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर स्थापित करें। उसके बाद उनको पंचामृत से स्नान कराएं। फिर उन्हें पीले रंग के वस्त्र चढ़ाएं। फिर भगवान विष्णु को चंदन, पीले फूल, हल्दी, रोली, अक्षत्, धूप, नैवेद्य, दीप, बेसन के लड्डू, तुलसी के पत्ते, गुड़ आदि अर्पित करें। इस दौरान ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते रहें। इसके बाद विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और देवउठनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें। फिर घी के दीपक से भगवान विष्णु की आरती करें। पूजा के समापन पर भगवान विष्णु से अपनी मनोकामना व्यक्त करें। फिर दिनभर फलाहार पर रहें। भक्ति और भजन में समय व्यतीत करें। शाम को संध्या आरती करें। आज रात्रि के समय जागरण करें। अगले दिन सुबह स्नान-ध्यान के बाद पूजा पाठ करें। किसी ब्राह्मण को पूजा में चढ़ाई गई वस्तुओं का दान करें। दक्षिण देकर विदा करें। इसके बाद पारण समय में भोजन करके व्रत को पूरा करें।
एकादशी व्रत कथा
पौराणिक काल में एक राजा था जिसके राज्य में संपूर्ण जनता एकादशी का व्रत करती थी। ऐसे में इस दिन हर किसी को भी अन्न देने की मनाही होती थी। एक बार एकादशी के दिन दूसरे राज्य का कोई व्यक्ति उस राजा के दरबार में नौकरी मांगने आया। राजा ने व्यक्ति से कहा कि तुम्हें इस राज्य में नौकरी तो मिलेगी, लेकिन एक शर्त ये है कि एकादशी के दिन यहां अन्न नहीं मिलेगा। राजा की बात सुनकर व्यक्ति को पहले तो आश्चर्य हुआ लेकिन नौकरी के लालच में उसने राजा की बात मान ली। जिसके बाद एकादशी आने पर उसने भी व्रत रखते हुए केवल फलाहार किया लेकिन उससे भूखे रहा नहीं जा रहा था। उसने राजा से कहा कि उसे खाने के लिए अन्न दिया जाए, क्योंकि फल से उसका पेट नहीं भरा है, अन्यथा वह भूख के मारे मर जाएगा।
व्यक्ति की बात सुनकर राजा ने उसे अपनी शर्त याद दिलाई, लेकिन भूख से व्याकुल वो व्यक्ति फिर भी नहीं माना। तब राजा ने उसे अन्न खाने का आदेश दे दिया और इसके लिए उसे चावल, आटा, दाल, आदि दिए गए। जिसे लेकर वो रोज की तरह नदी में स्नान के बाद भोजन बनाने लगा। उस व्यक्ति ने एक थाली में भोजन निकालते हुए भगवान को भोजन के लिए आमंत्रित किया। व्यक्ति की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु पीताम्बर में वहां आए और व्यक्ति द्वारा दिए गए भोजन को ग्रहण कर वहां से चले गए। इसके बाद वो व्यक्ति भी रोजाना की तरह अपने काम पर चला गया।
इस घटना के बाद दूसरी एकादशी पर उस व्यक्ति ने राजा से विनती की कि उसे खाने के लिए दोगुना अनाज दिया जाए। इस पर जब राजा ने कारण पूछा तो व्यक्ति ने बताया कि पिछली बार भगवान द्वारा भोजन किये जाने के बाद वह भूखा ही रह गया था। क्योंकि जितना अन्न उसे दिया गया था उसमें दोनों का पेट नहीं भर सकता था। व्यक्ति की बात सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ। उस व्यक्ति ने राजा को विश्वास दिलाने के लिए अपने साथ चलने के लिए कहा। राजा उसके साथ चल दिए और इस बार भी नदी में स्नान करने के बाद उसने भोजन बनाया, फिर एक थाली में खाना निकालकर भगवान विष्णु को बुलाया, लेकिन इस बार भगवान नहीं आए। ऐसा करते हुए शाम हो गई। राजा पास ही के एक पेड़ के पास छिपकर सारा दृश्य देख रहा था। अंत में व्यक्ति ने भगवान से कहा कि यदि वो खाना खाने नहीं आए तो नदी में कूदकर वो अपने प्राण त्याग देगा।
भगवान को न आता देख वो व्यक्ति नदी की ओर जाने लगा। तभी भगवान उसके सामने प्रकट हुए और उसे ऐसा करने से रोकने लगे। इसके बाद भगवान ने व्यक्ति के हाथों से न केवल भोजन ग्रहण किया, बल्कि उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपने धाम लेकर चले गए। इसके बाद राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ कि आडम्बर और दिखावे से भगवान को खुश नहीं किया जा सकता। इसके लिए केवल सच्चे मन से ईश्वर को याद करना होता है तभी भगवान दर्शन देते हैं और आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इसके बाद से ही राजा भी सच्चे मन से एकादशी का व्रत करने लगा और अंत में उसे भी व्यक्ति की तरह स्वर्ग की प्राप्ति हुई।