सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर, कुछ शर्तों के साथ ‘इच्छा मृत्यु’ को इजाजत
By: Priyanka Maheshwari Fri, 09 Mar 2018 12:13:46
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के नेतृत्व वाली पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने निष्क्रिय इच्छा मृत्यु (पैसिव यूथेनेसिया) और लिविंग विल (इच्छा मृत्यु की वसीयत) को कुछ शर्तों के साथ अनुमति प्रदान कर दी है। एक एनजीओ ने लिविंग विल का हक देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। जिसमें उस व्यक्ति को सम्मान के साथ मृत्यु को व्यक्ति का हक बताया था। याचिका में कहा गया था कि कैसे किसी शख्स को कहा जा सकता है कि उसे अपने शरीर पर होने वाली यातनाओं को रोकने का अधिकार नहीं है? जीने के अधिकार के साथ ही मरने का अधिकार निहित है। किसी शख्स को जीवनरक्षक पर जिंदा रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। किसी मरीज की इच्छा के बिना उसे कृत्रिम साधनों के जरिए जिंदा रखना उसके शरीर पर अत्याचार है।
अनुमति प्रदान करने के बाद कोर्ट ने कहा कि मनुष्य को सम्मान के साथ मरने का अधिकार है। अपनी टिप्पणी में कोर्ट ने कहा कि मरणासन्न व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह कब आखिरी सांस लेगा। सुप्रीम कोर्ट ने लिविंग विल को कुछ शर्तों और एडवांस डायरेक्टिव के साथ लीगल करार दिया। कोर्ट ने कहा विधायिका की ओर से कानून नहीं लाती तब तक सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन प्रभावी होगी। मेडिकल बोर्ड और घरवालों की मंज़ूरी ज़रूरी। ज़िला मजिस्ट्रेट की देखरेख में हो सारी प्रक्रिया।
बता दे, लिविंग विल' एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश दे देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी ना दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाएगा।
इच्छा मृत्यु वह स्थिति होती है जब कोई मरणासन्न शख्स मौत की तरफ बढ़ने की मंशा में उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।
बता दे, इच्छा मृत्यु पर सबसे पहली बहस 2011 में शुरु हई थी। जब 38 साल से कोमा की हालत में रह रहीं केईएम अस्पताल की एक नर्स अरुणा शानबाग की तरफ से इच्छा मृत्यु देने के लिए एक पिटीशन दाखिल की गई थी। अरुणा शानबाग के साथ 27 नवंबर 1973 में अस्पताल के ही एक वार्ड ब्वॉय ने रेप किया था। तब अरुणा कोमा में चली गईं थी। वे 42 साल तक कोमा में रहीं। अरुणा की स्थिति को देखते हुए उनके लिए इच्छामृत्यु की मांग करते हुए एक याचिका दायर की गई थी, लेकिन तब कोर्ट ने यह मांग ठुकरा दी थी।
A five-judge Constitution bench of the Supreme Court, headed by Chief Justice of India Dipak Misra passed the order allowing passive #Euthanasia with guidelines
— ANI (@ANI) March 9, 2018