लोकसभा चुनाव 2019 : एनडीए को पूर्ण बहुमत न मिलने पर ये पार्टियाँ दे सकती है साथ

By: Pinki Wed, 08 May 2019 1:04:23

लोकसभा चुनाव 2019 : एनडीए को पूर्ण बहुमत न मिलने पर ये पार्टियाँ दे सकती है साथ

लोकसभा चुनाव 2019 के अब सिर्फ दो चरण की वोटिंग होना बाकी है। लेकिन बीजेपी के कुछ नेता और उसके सहयोगी दल भी यह दावा कर रहे है कि इस बार नरेंद्र मोदी बहुमत का जादुई आंकड़ा छू नहीं पाएंगे। सरकार बनाने के लिए बीजेपी को सहयोगी दलों की जरूरत पड़ सकती है। पहले सुब्रमण्यम स्वामी तो फिर राम माधव और अब शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत का यह कहना बीजेपी को अपने दम पर बहुमत मिलना मुश्किल है। ऐसे में सवाल उठता है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए कौन-कौन से दल बीजेपी के साथ आ सकते हैं? बता दे, 2014 में बीजेपी 27 दलों के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी थी। बीजेपी अकेले दम पर 282 और एनडीए 336 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। हालांकि बाद में टीडीपी और आरएलएसपी साथ छोड़कर एनडीए से अलग होकर चुनावी मैदान में हैं। इस बार के चुनावी समीकरण पूरी तरह से बदले हुए हैं। बीजेपी के खिलाफ एक तरफ अलग-अलग राज्यों में विपक्षी दलों का मजबूत गठबंधन है तो दूसरी तरफ कांग्रेस की सियासी जमीन 2014 से मजबूत नजर आ रही है। ऐसे में 2019 की सियासी जंग को फतह करने के लिए बीजेपी ने यूपी में अपना दल, बिहार में जेडीयू-एलजेपी, महाराष्ट्र में शिवसेना, पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में AIADMK और पूर्वात्तर के राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया है। दरहसल, मौजूदा लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, पंजाब और तमिलनाडु सहित पूर्वोत्तर के राज्यों में गठबंधन करके चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा बाकी राज्यों में बीजेपी अकेले दम पर सियासी संग्राम में है।

ऐसे में अगर बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ बहुमत के जादुई आंकड़े को नहीं छू पाती है तो बीजेपी को सरकार बनाने के लिए कई और सहयोगी दलों की जरूरत पड़ेगी। ऐसी स्थिति में बीजेपी की नजर ऐसे दलों पर रहेगी जो कांग्रेस के खिलाफ कभी न कभी बिगुल फूंकते नजर आए हैं।

जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस
- बीजेपी की पहली कोशिश आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस पर है, जो 2014 में कांग्रेस से टूटकर पार्टी बनी है। माना जा रहा है कि इस बार आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस को अच्छी खासी सीटें मिलेंगी। जगन रेड्डी पहले ही साफ संकेत दे चुकें हैं कि वो उसी के साथ केंद्र में जाएंगे जो आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेट्स का दर्जा देगा। कांग्रेस से जगन की अदावत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में संभावना है कि चुनाव के बाद वाईएसआर बीजेपी को अपना समर्थन दे सकते हैं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की पार्टी टीआरएस
- वही इसके बाद बीजेपी की नजर तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर की पार्टी टीआरएस पर भी है। पिछले पांच सालों में केसीआर, नरेंद्र मोदी सरकार को वक्त बे वक्त मदद करते रहे हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार के पक्ष में वोटिंग किया था। इसके अलावा कई ऐसे मौके आए जब वो सरकार के साथ खड़े नजर आए थे। तेलांगना में केसीआर का मुकाबला बीजेपी के बजाय कांग्रेस से हैं। ऐसे में अगर बीजेपी को सरकार बनाने की जरूरत पड़ती है तो केसीआर का साथ मिल सकता है। भले ही वो सरकार में न शामिल हों, लेकिन बाहर से समर्थन दे सकते हैं।

शरद पवार की पार्टी एनसीपी
- बीजेपी की नजर शरद पवार की पार्टी एनसीपी पर भी है। हालांकि एनसीपी महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ी है। इसके बावजूद जिस तरह से नरेंद्र मोदी और पवार के रिश्ते हैं, ऐसे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। इसके अलावा बीजेपी की नजर छोटे-छोटे राजनीतिक दलों पर भी रहेगी। इसमें जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉफ्रेंस जो अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार में शामिल रही है। ऐसे में वो कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ खड़ी हो सकती है।

उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी

- उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी बिहार में महागठबंधन के साथ मिलकर चुनावी मैदान में है। लेकिन इससे पहले कुशवाहा मोदी सरकार में मंत्री रहे हैं। ऐसे में बीजेपी उन्हें अपने खेमे में एक बार फिर मिलाने की कोशिश कर सकती है।

मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी

- इसके अलावा मुकेश साहनी की वीआईपी पार्टी अगर कुछ सीटें जीतने में कामयाब रहती है तो कोई जरूरी नहीं कि वह महागठबंधन का हिस्सा रहे।

जीतनराम मांझी की पार्टी HAM

- इस तरह से जीतनराम मांझी की पार्टी HAM को भी बीजेपी अपने साथ एक बार फिर लाने की कवायद कर सकती है, क्योंकि मांझी पहले एनडीए में रह चुके हैं। हालांकि मौजूदा समय में महागठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। इसके अलावा बीजेपी की नजर हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला की पार्टी इनेलो को साथ लाने का कोशिश कर सकती है।

नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी

- ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी पहले भी एनडीए के साथ रह चुकी है। इसके अलावा पिछले पांच साल में मोदी सरकार के बड़ें फैसलों पर बीजेडी का साथ मिला। ऐसे में संभावना है कि नरेंद्र मोदी को सरकार बनाने के लिए अगर कुछ सीटों की अवश्यकता पड़ती है तो बीजेडी अपना समर्थन दे सकती है, क्योंकि पटनायक का कांग्रेस से छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। हालांकि इस बार ओडिशा की सियासी लड़ाई में बीजेपी ने जिस मजबूती के साथ लड़ी है ऐसे में यह दोस्ती परवान चढ़ेगी इसे लेकर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है।

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