बाल दिवस विशेष : पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के अनमोल वचन

By: Pinki Tue, 14 Nov 2017 00:31:01

बाल दिवस विशेष : पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के अनमोल वचन

बाल दिवस पंडित जवाहर लाल नेहरु के जन्मदिन पर मनाया जाता है। उनके अनुसार, बच्चे देश का भविष्य है। उन्हें ये अच्छे से पता था कि देश का उज्जवल भविष्य बच्चों के भविष्य पर निर्भर करेगा। वह कहते थे कि कोई भी देश कभी भी अच्छे से विकास नहीं कर सकता अगर उसके बच्चे कमजोर, गरीब और उचित ढंग से विकास न हुआ हों। हमारे देश में बच्चों को बहुत कम आय पर कड़ा श्रम करने के लिये मजबूर किया जाता है। उन्हें आधुनिक शिक्षा नहीं मिल पाती इसलिये वो पिछड़े ही रह जाते है। हमें उन्हें आगे बढ़ाने की जरुरत है जो मुमकिन है जब सभी भारतीय अपनी जिम्मेदारियों को समझें। जब उनको ये महसूस हुआ कि बच्चे देश का भविष्य है तो उन्होंने अपने जन्मदिन को बाल दिवस के रुप में मनाने का निश्चय किया जिससे देश के बच्चों पर ध्यान केन्द्रित किया जाये तथा उनकी स्थिति में सुधार लाया जाये। ये 1956 से ही पूरे भारत में हर साल 14 नवंबर के दिन मनाया जा रहा है।

जवाहरलाल नेहरू जी के अनमोल वचन

*जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य पूरा करते हैं ।

*जो पुस्तकें तुम्हें सबसे अधिक सोचने के लिए विवश करती हैं, वे ही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं ।

*हिन्दी एक जानदार भाषा है । यह जितनी बढ़ेगी, देश को उतना ही लाभ होगा ।

*बच्चों की सबसे बड़ी दौलत प्यार है ।

*सही कार्य अपने आप जन्म नहीं लेता, इसे विचारों की कोख में संवारना पड़ता है ।

*सबसे उत्तम विजय प्रेम की है, जो सदा के लिए विजेता का हृदय बांधती है ।

* ज्यों-ज्यों मनुष्य बूढ़ा होता जाता है, त्यों-त्यों जीवन और मृत्यु से भय बढ़ता जाता है ।

*प्रगति ही जीवन है ।

*बुराई को न रोकने से वह बढ़ती है, बुराई को बर्दाश्त कर लेने से यह तमाम क्रियाओं में जहर फैला देती है ।

*विश्व का भविष्य विज्ञान की प्रगति पर अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है, किंतु अध्यात्म के मार्गदर्शन बिना मानवता प्रलयकारी दुर्घटना की शिकार हो सकती है ।

*एक ओर तो लोग आणविक युग की चर्चा करते हैं, दूसरी और हम भारतवासी अभी तक गोबरयुग में रह रहे हैं ।

*मैं सोचता हूं कि यह मेरा महज ख्याल ही है या यह सच्चाई है कि चौकोर दीवार की अपेक्षा गोल दीवार में आदमी को अपने कैद होने का ज्यादा भान होता है । कोनों और मोड़ों के न होने से यह भाव हमारे मन में भी बढ़ जाता है कि हम यहां दबाए जा रहे हैं ।

*हिन्दुस्तान में एक प्रवृत्ति यह देखी जाती है कि लोग पीछे देखना चाहते हैं, आगें नहीं, वे उस ऊंचाई की तरफ देखते हैं, जिस पर कभी वे थे, उस ऊंचाई की तरफ नहीं, जिस पर उनको पहुंचना है । इस तरह हमारे देशवासी गुजरे हुए जमाने के लिए लंबी-लंबी सांसें लेते रहे और आगे बढ़ने की बजाए, जो कोई भी आया उसका हुक्म मानते रहे । असल में साम्राज्य अपनी ताकत पर उतना निर्भर नहीं करते, जितना कि उन लोगों की गुलाम तबीयत पर, जिनके ऊपर वे हुकूमत करते हैं ।

* निरोग होना परम लाभ है, संतोष परेम धन है, विश्वास सबसे बड़ा बंधु है, निर्वाण परम सुख है ।

* जिस देश या जाति का ध्यान काम की तरफ जाता है, काम में फंसता रहता है उसको लड़ाई-झगड़े की फुरसत नहीं होती । वह काम में लगा रहता है । अगर आप लोग काम करते हैं तो आपको भी लड़ाई की फुरसत नहीं है । जब आदमी काम नहीं करता तो फिर उसका दिल दूसरी तरफ जाता है, उसे दूसरों से जलन होती है । औरों को काम करते और तरक्की करते देखना उसे बुरा लगता है । फिर इसी से लड़ाई-झगड़े पैदा होते हैं ।

* मेरी हमेशा से यही राय है कि जाति की उन्नति उस देश के स्त्री वर्ग की हालत पर निर्भर होती है । हम पिछले वर्षों में देख भी चुके हैं कि हिन्दुरतान की स्वतंत्रता के युद्ध में स्त्रियों का सहयोग कितना कामयाब रहा है । वे खूब विख्यात हो गईं और भविष्य में उनके लिए अनेक द्वार खुल गए ।

*जीने का अर्थ बदलती हुई स्थितियों के अनुसार बदलना है । हर एक राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक पद्धति के अपने नियम होते हैं । धार्मिक या सामाजिक नियम या आचार में नैतिक उगैर आध्यात्मिक आचार भी शामिल है । जब प्रयोजन और पद्धति बदलते हैं, तब पुराने नियम या उगचार भी टूटते हैं उगैर नए नियम इनकी जगह लेते हैं । पिछले पचास वर्ष में कारीगरी में इतनी तेजी से परिवर्तन हुए हैं कि समाज का ढांचा उगैर उराचार एकदम बेमेल बन गए हैं ।

*जब मनुष्य की उगत्मा अपने बंधनों को तोड़ डालती है, तो हमेशा तरक्की और नई-नई खोजें होती हैं। वे विकसित हो जाती है उगैर फैल जाती हैं । हमारे देश के आजाद होने पर हमारे देशवासियों का उगैर हमारी उनात्मा का विकास होगा उगैर हम सारी दिशाओं में उगगे बढ़ेंगे । मनुष्य ने जितना ही ज्यादा प्रकृति को समझा, उतना ही उसने उससे लाभ उठाया उगैर उसे उरपने मतलब के लिए काम में लिया। इस प्रकार उसके हाथ में बहुत ज्यादा ताकत आ गई, लेकिन अभाग्यवश इस नई ताकत को उसने ठीक ढंग से इस्तेमाल नहीं किया और अक्सर बेजा किया। मनुष्य ने विज्ञान से खासतौर से भयंकर अस्त्र-शस्त्र बनाने का काम लिया है । जिनकी मदद से वह दूसरे मनुष्य को मार सके उगैर इसी सभ्यता को नष्ट-भ्रष्ट कर डाले । जिसके बनाने में उसने मेहनत की है ।

* मनुष्य देवताओं के सामने हार नहीं मानता उगैर न वह मौत के सामने ही सिर झुकाता है, जब कभी वह हार मानता है, अपनी इच्छा शक्ति की कमजोरी की वजह से ही मानता है ।

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