इन गर्मियों में करें हिमालय कि गोद में बसे उत्तराखंड के ऐतिहासिक स्थलों की सैर
By: Priyanka Maheshwari Fri, 27 Apr 2018 11:26:45
हिमालय का खूबसूरत अंश, उत्तराखंड हमेशा से ही उन एवडेंचर के शौकीनों और प्रकृति प्रेमियों का अपनी और खिचता रहा है, लेकिन इन सबके अलावा उत्तराखंड अपने ऐतिहासिक स्थल भंडारों के लिए भी काफी प्रसिद्ध रहा है। फुरसती, साहसिक और धार्मिक पर्यटन उत्तराखण्ड की अर्थव्यस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और बाघ संरक्षण-क्षेत्र और नैनीताल, अल्मोड़ा, कसौनी, भीमताल, रानीखेत और मसूरी जैसे निकट के पहाड़ी पर्यटन स्थल जो भारत के सर्वाधिक पधारे जाने वाले पर्यटन स्थलों में हैं। पर्वतारोहियों के लिए राज्य में कई चोटियाँ हैं, जिनमें से नंदा देवी, सबसे ऊँची चोटी है और 1982 से अबाध्य है। अन्य राष्टीय आश्चर्य हैं फूलों की घाटी, जो नंदा देवी के साथ मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
उत्तराखण्ड में, जिसे "देवभूमि" भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के कुछ सबसे पवित्र तीर्थस्थान है और हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से तीर्थयात्री मोक्ष और पाप शुद्धिकरण की खोज में यहाँ आ रहे हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री, को क्रमशः गंगा और यमुना नदियों के उदग्म स्थल हैं, केदारनाथ (भगवान शिव को समर्पित) और बद्रीनाथ (भगवान विष्णु को समर्पित) के साथ मिलकर उत्तराखण्ड के छोटा चार धाम बनाते हैं, जो हिन्दू धर्म के पवित्रतम परिपथ में से एक है। हरिद्वार के निकट स्थित ऋषिकेश भारत में योग क एक प्रमुख स्थल है और जो हरिद्वार के साथ मिलकर एक पवित्र हिन्दू तीर्थ स्थल है। आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड के कुछ चुनिंदा सबसे खास ऐतिहासिक स्थानों के बारे में बताएँगे
# द्वाराहाट, अल्मोड़ा जिला
द्वाराहाट उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा ज़िले का एक कस्बा है जो रानीखेत से लगभग 21 किलोमीटर दूर स्थित है। द्वाराहाट में तीन वर्ग के मन्दिर हैं—कचहरी, मनिया तथा रत्नदेव। इसके अतिरिक्त बहुत से मन्दिर प्रतिमाविहीन हैं। द्वाराहाट में गूजरदेव का मन्दिर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इस खास स्थल को स्वर्ग का मार्ग भी बताया जाता है। द्वाराहाट अपने खूबसूरत प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है जिनपर आप गुर्जारी स्कूल ऑफ आर्ट का प्रभाव है देख सकते हैं। ऐतिहासिक स्थलों के प्रेमी इस स्थल की यात्रा कर सकते हैं। यहां उन्हें 55 ऐतिहासिक मंदिरों को देखने का मौका मिलेगा। आप इन मंदिरों की खास वास्तु और शिल्पकला को देख सकते हैं, जिसका श्रेय कत्यूरी राजवंश को जाता है। ये वो राजवंश था जिसने काफी लंबे समय तक कुमाऊं पर राज किया। वाराहाट बद्रीनाथ जाने वाले तीर्थयात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान केंद्र रहा है | इसकी सांस्कृतिक महत्व के कारण , द्वाराहाट को “उत्तरा द्वारका” (उत्तर द्वारका – भगवान कृष्ण के निवास) के रूप में भी जाना जाता है। यह जगह पुराने जमाने में कत्युरी साम्राज्य की राजधानी थी।
# चौखुटिया, अल्मोड़ा जिला चौखुटिया
चौखुटिया शब्द दो कुमाउँनी शब्दों "चौ" तथा "खुट" से बना है। कुमाउँनी भाषा में चौ शब्द का अर्थ होता है चार, तथा खुट शब्द का अर्थ होता है पैर। इससे चौखुट का अर्थ हुआ चार पैर और चौखुटिया का अर्थ हुआ चार पैरों वाला। चार पैर यहां चार मार्गों के सन्दर्भ में प्रयोग होते हैं, जो चौखुटिया से रामनगर, कर्णप्रयाग, रानीखेत तथा तड़ागताल की ओर जाते हैं। इस प्राचीन स्थल को प्रसिद्धि कत्यूरी राजवंश के कारण मिली। अगर आप उत्तराखंड का समृद्ध इतिहास देखना चाहते हैं तो इस स्थान की सैर जरुर करें। कहिदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार विरता एक राजा थे , जिनकी अदालत में पांडवो ने अपने निर्वासन के दौरान छुपने के लिए एक वर्ष बिताया था। राजा विरता की शादी रानी सुदेशा से हुई थी और वह राजकुमार उत्तरा और राजकुमारी उत्तरा के पिता थे और अभिमन्यु (अर्जुन का पुत्र) की शादी राजकुमारी उत्तरा के साथ हुई। इस तरह चौखुटिया के बारे में जानने से महान महाकाव्य महाभारत का सम्बन्ध सामने आता है। माना जाता है कि चौखुटिया में स्थित पांडुखोली गुफा पांडवों के द्वारा ही बनाई गई थी। काठगोदाम के रास्ते आप यहां तक आराम से पहुंच सकते हैं।
# लोहाघाट, चंपावत जिला
उत्तराखंड राज्य के चंपावत जिले से 14 किमी दूर लोहावती नदी के किनारे बसा “लोहाघाट” एक ऐतिहासिक शहर है । लोहाघाट , चंपावत जिले का नगर पंचायत है । चम्पावत के प्राचीन शहर का लोहाघाट का एक विशाल ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है , जो कई पर्यटकों को आकर्षित करता है । पर्यटक यहां के कई पुराने मंदिरों का भ्रमण कर सकते हैं , जो कि हिन्दू धर्म के विभिन्न त्योहारों को मनाने के लिए जाने जाते हैं । होली और जनमाष्टमी के दिन यहां भारी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं । यहां से पर्यटक खादी बाजार से खरीदारी कर सकते हैं और पास में ही स्थित खूबसूरत “गलचौरा” का भ्रमण भी कर सकते हैं । इस क्षेत्र में व्यापक रूप से बोली जाने वाली भाषाएं हिंदी, कुमाऊनी और अंग्रेजी हैं । यह खास स्थल अपने प्राचीन मंदिरों के लिए भी ज्यादा जाना जाता है। यह स्थान कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है जिनकी वजह से यह स्थान उत्तराखंड के इतिहास में दर्ज हो पाया है। आप यहां प्राचीन काल के कई अवशेषों को देख सकते हैं। इसके अलावा चंपावत का यह स्थान अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए भी जाना जाता है।
लोहाघाट क्षेत्र बगवाल की लड़ाई कार्निवल के लिए काफी प्रसिद्ध है , जो कि रक्षाबंधन दिवस के शुभ दिन में देवीधुरा “माँ बाराही मंदिर“ के मंदिर प्रांगण में आयोजित होता है | “पी बैरोन” ने लोहघाट क्षेत्र के दौरे पर कहा था कि ” कश्मीर क्यों जाते हो , अगर दुनिया में स्वर्ग होता है , तो लोहघाट के जैसा होता है “ लोहाघाट क्षेत्र की सुंदरता से मुग्ध होकर पी. बैरन ने इसे “कश्मीर के बाद धरती के दूसरे स्वर्ग” का खिताब दे दिया।
# नरेन्द्र नगर, टिहरी गढ़वाल
नरेन्द्र नगर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र का उल्लेखनीय शहर माना जाता है, जो कभी टिहरी रियासत का हिस्सा हुआ करता था। काफी लंबे समय तक यहां शाह शासको ने राज किया। शाह राजवंश के महाराजा नरेन्द्र शाह से नाम पर इस स्थान का नाम नरेन्द्र नगर रखा गया। दरअसल यहां पहाड़ी पर नरेन्द्र शाह ने एक महल का निर्माण करवाया था। यह महल उनके नाम से ही जाना जाता है। नरेन्द्र नगर का मुख्य आकर्षण यह ऐतिहिसक महल ही है। हालांकि अब इस महल में शाह राजवंश का कोई भी सदस्य नहीं रहता। लेकिन पर्यटन के लिहाज से ये देखने लायक जगह है।
# कलसी, देहरादून जिला
कलसी अथवा 'कालसी' उत्तराखण्ड के ज़िला देहरादून की तहसील चकरौता में स्थित है। यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। यहाँ पर भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक के चतुर्दश शिलालेख एक चट्टान पर अंकित हैं। सम्भवत: यह स्थान अशोक के साम्राज्य की उत्तरी सीमा पर स्थित था। महाभारत से भी इस स्थान का सम्बन्ध रहा है। आज कलसी एक पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। यह स्थान अपने पत्थर के बने 10 फीट ऊंचे और 8 फीट चौड़े अशोक स्तंभ के लिए जाना जाता है। यह अशोक स्तंभ दकपठार (देरहादून) से लगभग 5 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां सैलानी इसी खास प्राचीन स्मारक को देखने के लिए आते हैं। इस अशोक स्तंभ पर कई शोधकर्ता अध्ययन कर चुके हैं। उनमें से कई शोधकर्ताओं का मानना है कि यह अशोक स्तंभ 450ईसा पूर्व के दौरान बनाया गया होगा। अशोक काल के दौरान बनाया गया ये पीलर एक समृद्ध युग का प्रतीक माना जाता है। ये नगर यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है। प्राकृतिक दृष्टि से भी यह एक शानदार स्थल माना जाता है। कलसी आने वाले पर्यटक आसन बैराज भी देख सकते हैं, जो की विभिन्न लुप्त प्राय प्रवासी पक्षियों की आरामगाह के रूप में जाना जाता है। आईयूसीएन की रेड डाटा बुक ने यहाँ के पक्षियों को दुर्लभ प्रजाति घोषित किया है। एक उत्सुक पक्षी प्रेमी विभिन्न अद्वितीय पक्षियों की प्रजातियों, जैसे- मल्लार्ड्स, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड्स, रुद्द्य शेल्दुच्क्स, कूट्स, कोर्मोरंट्स, एग्रेट्स, वाग्तैल्स, पोंड हेरोंस, पलस फिशिंग ईगल्स, मार्श हर्रिएर्स, ग्रेटर स्पॉटेड ईगल्स, ओस्प्रेय्स, और स्टेपी ईगल्स को देखने का आनंद ले सकते हैं। पर्यटक यहाँ 90 प्रतिशत जल पक्षियों एवं 11 प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों को अक्टूबर से नवम्बर और फ़रवरी से मार्च तक की अवधि में देख सकते हैं। विकासनगर, कलसी में ख़रीदारी करने के लिए एक आदर्श स्थल है। दूसरी ओर डक पत्थर है, जो एक सुंदर पिकनिक स्पॉट है, जहाँ कैनोइंग, नौकायन, वाटर स्कीइंग, और होवरक्राफ्ट जैसी हर तरह की विभिन्न मनोरंजक गतिविधियों का आनन्द लिया जा सकता है।