चुनाव आयोग ने हाल ही में चुनावी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी को लेकर दिशा-निर्देशों में बड़ा बदलाव किया है। अब किसी भी चुनाव के बाद रिकॉर्ड की गई वीडियो क्लिप और तस्वीरों को केवल 45 दिनों तक ही संरक्षित रखना होगा। आयोग ने यह आदेश 30 मई को सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों को जारी किया। यदि इस अवधि के भीतर चुनाव याचिका दायर नहीं होती, तो संबंधित डेटा को नष्ट किया जा सकेगा।
गलत सूचनाओं के दुरुपयोग का हवाला
आयोग ने अपने फैसले के पीछे दलील दी है कि हाल के वर्षों में सोशल मीडिया पर इन रिकॉर्डिंग्स का दुरुपयोग बढ़ा है। चुनाव आयोग के अनुसार, इन वीडियो और तस्वीरों को बिना कानूनी महत्व के, दुर्भावनापूर्ण ढंग से इस्तेमाल किया गया, जिससे कई बार अफवाहें फैलीं और जनता को गुमराह किया गया। आयोग ने स्पष्ट किया कि वीडियोग्राफी कानूनन आवश्यक नहीं है, बल्कि यह सिर्फ एक आंतरिक प्रशासनिक साधन है।
पहले थे तीन महीने से एक साल तक के नियम
इससे पहले 6 सितंबर 2024 को जारी दिशा-निर्देशों में चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न चरणों — जैसे नामांकन, प्रचार, मतदान, मतगणना — के वीडियो और फोटोग्राफ्स को 3 महीने से लेकर 1 साल तक संभालकर रखने के निर्देश थे। लेकिन अब यह अवधि घटाकर 45 दिन कर दी गई है। हालांकि यदि इस दौरान कोई याचिका दाखिल होती है, तो रिकॉर्ड को केस की समाप्ति तक सुरक्षित रखना होगा।
हर चरण की होती है रिकॉर्डिंग
मतदान से पहले ईवीएम की जांच, प्रचार अभियानों की निगरानी, मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग, मतगणना की प्रक्रिया — यह सब रिकॉर्ड किया जाता है। उम्मीदवारों के खर्च और आचार संहिता उल्लंघन की जांच के लिए भी कैमरों का सहारा लिया जाता है। लेकिन आयोग का कहना है कि इन फुटेज का उद्देश सिर्फ प्रशासनिक है, न कि सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बनाना।
दिसंबर 2024 में भी हुआ था बड़ा बदलाव
यह बदलाव चुनाव से जुड़ी रिकॉर्डिंग्स के सार्वजनिक निरीक्षण को लेकर दूसरा बड़ा फैसला है। दिसंबर 2024 में नियम 93(2)(A) में संशोधन कर यह तय किया गया था कि सीसीटीवी फुटेज को आम नागरिकों के निरीक्षण के लिए उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। अब आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल “निर्दिष्ट कागजात” ही सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले रहेंगे, वीडियो फुटेज नहीं।
निर्णय की मंशा पारदर्शिता और अनुशासन दोनों
आयोग ने जोर दिया है कि यह बदलाव पारदर्शिता को बनाए रखते हुए रिकॉर्डिंग के अनावश्यक दुरुपयोग को रोकने के लिए किया गया है। साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है कि चुनाव प्रक्रिया की गरिमा बनी रहे और डिजिटल डेटा की सुरक्षा की जिम्मेदारी व्यावहारिक और सीमित रहे। आयोग का यह कदम भविष्य में चुनावी प्रक्रियाओं को और अधिक सुव्यवस्थित और सुरक्षित बनाने की दिशा में एक अहम निर्णय माना जा रहा है।