लोकसभा में अटका वक्फ संशोधन विधेयक, किरेन रिजिजू ने संयुक्त संसदीय समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा
By: Rajesh Bhagtani Thu, 08 Aug 2024 4:33:27
नई दिल्ली। विपक्ष की भारी आपत्ति के बीच केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को कहा कि वक्फ (संशोधन) विधेयक का उद्देश्य किसी भी धार्मिक संस्था की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना नहीं है और संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया गया है। लोकसभा में विधेयक पेश किए जाने पर कई विपक्षी सदस्यों द्वारा उठाई गई आपत्तियों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि वक्फ अधिनियम 1995 अपने उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाया, इसलिए संशोधन की योजना बनाई गई।
उन्होंने कहा, "मैं कांग्रेस को बताना चाहता हूं कि ये संशोधन उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए लाए जा रहे हैं जो आप (कांग्रेस) हासिल नहीं कर पाए।" संशोधनों का बचाव करते हुए रिजिजू ने कहा कि एक संयुक्त संसदीय समिति ने सिफारिश की थी कि वक्फ अधिनियम 1995 पर फिर से विचार किया जाना चाहिए और इसलिए इसे लोकसभा में पारित नहीं किया गया। "...हम कहीं भाग नहीं रहे हैं। इसलिए, अगर इसे किसी समिति को भेजा जाना है, तो मैं अपनी सरकार की ओर से बोलना चाहूंगा - एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बनाई जाए, इस विधेयक को उसके पास भेजा जाए और विस्तृत चर्चा की जाए..."
बिल के प्रावधानों पर विपक्षी दलों की आपत्ति के बाद अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन में प्रस्ताव रखा कि इस बिल को ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को भेज दिया जाए। इस पर स्पीकर ने कहा कि हां, जल्द ही कमेटी बनाऊंगा। इससे पहले AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस पर मत विभाजन की मांग की थी, जिसे स्पीकर ने ठुकरा दिया था और कहा था इस पर डिवीजन कैसे बनता है?
इससे पहले सरकार ने गुरुवार को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पुर:स्थापित करने का प्रस्ताव किया, जिसका विपक्ष ने जमकर विरोध किया और इसे सदन के सांविधिक अधिकार के परे और संविधान के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध करार दिया। विपक्षी दलों के सांसदों ने संशोधन विधेयक को वापस लेने अथवा संयुक्त संसदीय समिति के विचार के लिए भेजने की मांग की।
दोपहर एक बजे अध्यक्ष ओम बिरला की अनुमति से संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इस विधेयक को पुर:स्थापित करने का प्रस्ताव रखा जिसका विरोध करते हुए विपक्ष ने नियम 72 के तहत इस प्रस्ताव पर चर्चा करवाने के मांग की। इसके बाद बिरला ने विपक्ष की भावना को देखते हुए नियम 72 के तहत उनके बात रखने की अनुमति दे दी।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, डीएमके, माकपा, भाकपा, वाईएसआर कांग्रेस आदि पार्टियों ने जहां विधेयक का विरोध किया, वहीं सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल यूनाइटेड, तेलुगु देशम और शिवसेना ने इस विधेयक का समर्थन किया। शिवसेना के श्रीकांत एकनाथ शिंदे ने विपक्ष पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि जो देश की व्यवस्थाओं को जाति एवं धर्म के आधार पर चलाना चाहते हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए। इस विधेयक का मकसद पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाना है लेकिन संविधान पर भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनकी सरकार ने जब महाराष्ट्र में शिर्डी, महालक्ष्मी मंदिरों में प्रशासक बैठाये थे, उन्हें संविधान एवं संघीय ढांचे की याद क्यों नहीं आयी।
कांग्रेस सांसद और महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह विधेयक संविधान विरोधी है और एक समुदाय के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है। उन्होंने कहा कि संविधान में हर समुदाय को अधिकार है कि वह अपनी धार्मिक, चैरिटेबल आधार पर चल अचल संपत्ति रखे। इस विधेयक में वक़्फ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की बात कही गई है। उन्होंने सवाल किया कि क्या अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास में गैर हिन्दू हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर आक्रमण है और संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर हमला है। भारत की संस्कृति में सब एक दूसरे की आस्थाओं एवं धार्मिक विश्वासों का आदर करते हैं। लेकिन यह कदम उनमें विभाजन पैदा करेगा।