वक्फ कानून में हालिया संशोधनों को लेकर मुस्लिम समुदाय और कई राजनीतिक दलों में गहरी नाराज़गी देखी जा रही है। इस बीच, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। यह याचिका अधिवक्ताओं—फुजैल अहमद अय्यूबी, इबाद मुश्ताक, आकांक्षा राय और गुरनीत कौर—के माध्यम से दायर की गई है, जिसमें संशोधित कानून को संविधान के खिलाफ बताया गया है। उधर, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) भी इस मुद्दे पर सक्रिय है। पार्टी नेता प्रो. मनोज झा ने घोषणा की है कि वे सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करेंगे। उनका कहना है कि वक्फ कानून में किए गए बदलाव संविधान की भावना और देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब के खिलाफ हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि यह कानून सामाजिक सौहार्द को नुक़सान पहुंचा सकता है।
वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कई नेता और संगठन: जानिए किसने दायर की याचिका
वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के खिलाफ देशभर में असंतोष बढ़ता जा रहा है। मुस्लिम समुदाय और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने इस कानून को संविधान और अल्पसंख्यक अधिकारों के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। सबसे पहले कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने 4 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। उनका कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के लिए भेदभावपूर्ण है और इससे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। उन्होंने अपनी याचिका में इस बात पर ज़ोर दिया कि वक्फ प्रशासन पर लगाए गए प्रतिबंध अन्य धार्मिक संस्थानों पर लागू नहीं होते, जो कि स्पष्ट रूप से भेदभावपूर्ण हैं। उसी दिन, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस विधेयक को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की है। उन्होंने इसे मुस्लिम समाज के अधिकारों पर हमला करार दिया है। इसके अलावा, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक एक गैर-सरकारी संगठन ने भी वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने भी इस कानून का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने की घोषणा की है। यह साफ है कि वक्फ कानून, 2025 को लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीव्र असहमति बनी हुई है, और इसकी संवैधानिक वैधता को अब देश की सर्वोच्च अदालत में परखा जाएगा।