कमल हासन की फिल्म ठग लाइफ को लेकर उठे विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम टिप्पणी की। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भीड़ या गुंडों के समूह यह तय नहीं कर सकते कि सिनेमाघरों में कौन सी फिल्म दिखाई जाए। फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग और धमकियों के बीच कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट की भूमिका पर भी सवाल उठाए।
तमिल अभिनेता और नेता कमल हासन की फिल्म ठग लाइफ पर कर्नाटक में लगे प्रतिबंध को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गंभीर टिप्पणी की और मामले में हस्तक्षेप करते हुए इसे कर्नाटक हाईकोर्ट से अपने पास स्थानांतरित कर लिया। कोर्ट ने चेतावनी दी कि भीड़ की धमकियों के आगे कानून के शासन को नहीं झुकाया जा सकता।
पीठ ने कहा, "कानून के शासन को भीड़ या गुंडों के समूहों के हाथों बंधक नहीं बनाया जा सकता। अगर किसी को किसी के बयान से असहमति है, तो वह अपने बयान के जरिए जवाब दे सकता है। सिनेमाघरों को जलाने की धमकी नहीं दी जा सकती।"
यह मामला कमल हासन द्वारा दिए गए एक कथित विवादास्पद बयान के बाद उठा जिसमें कुछ समूहों ने फिल्म की रिलीज रोकने की धमकी दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन धमकियों की आलोचना की और कहा कि यह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की कोशिश है।
हाई कोर्ट की भूमिका पर उठे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि कर्नाटक हाई कोर्ट का यह सुझाव कि फिल्म निर्माता को माफी मांग लेनी चाहिए, एक अनुचित पहल है। पीठ ने तीखे शब्दों में कहा, "जब एक व्यक्ति कोई बयान देता है और पूरा सिस्टम उस पर टूट पड़ता है, तो इसका मतलब है कि सिस्टम में ही कोई गड़बड़ है। हाई कोर्ट का काम माफी की सलाह देना नहीं है।"
CBFC की अनुमति के बाद रुकावट क्यों?
कोर्ट ने ज़ोर दिया कि एक बार जब कोई फिल्म केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से पास हो जाती है, तो उसे रिलीज़ होने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि किसी को भी फिल्म देखने या न देखने का अधिकार है, लेकिन कोई भी यह तय नहीं कर सकता कि फिल्म रिलीज होगी या नहीं।
लोकतंत्र में विविध विचारों की अनुमति ज़रूरी
सुप्रीम कोर्ट ने नाथूराम बोलतोय नाटक और इमरान प्रतापगढ़ी मामले का हवाला देते हुए कहा कि लोकतंत्र में विविध और विरोधी विचारों का स्थान होना ही चाहिए। कोर्ट ने कहा, "हम कानून के शासन के संरक्षक हैं। सुप्रीम कोर्ट का यही उद्देश्य है।"
सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश
फिल्म के निर्माता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कर्नाटक सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही यह स्पष्ट कर दिया कि किसी को धमकी देकर अपनी बात मनवाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के शासन के पक्ष में एक निर्णायक हस्तक्षेप मानी जा रही है। यह फैसला न केवल ठग लाइफ जैसी फिल्मों के लिए रास्ता साफ करता है, बल्कि उन सभी कलाकारों और रचनात्मक व्यक्तियों के लिए भी एक संदेश है जो डर और धमकी के बीच अपने विचार प्रकट करने से कतराते हैं। कोर्ट का यह रुख यह भी दर्शाता है कि भारत का न्याय तंत्र संविधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए सतर्क है और भीड़तंत्र के सामने झुकने को तैयार नहीं।