भारत में भगवान शिव के कई चमत्कारी मंदिर मौजूद हैं, जिनकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता अत्यधिक है। आज हम आपको एक ऐसे ही अद्भुत और चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो न केवल प्राचीन है, बल्कि उसमें एक रहस्य भी छिपा हुआ है। यह मंदिर भगवान शिव के परम भक्तों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का नाम है वैजनाथ महादेव मंदिर और यहाँ स्थित शिवलिंग का रहस्य आज भी लोगों को आकर्षित करता है।
वैजनाथ महादेव मंदिर
वैजनाथ महादेव मंदिर गुजरात के आनंद जिले के जितोदिया गांव में स्थित है, जो जितोदिया-मोगरी रोड पर एक शांतिपूर्ण इलाके में बसा हुआ है। इस मंदिर की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता बहुत अधिक है। कहा जाता है कि इस मंदिर पर मुगलों और अन्य आक्रांताओं ने कई बार हमला किया था, लेकिन यहां के वीर योद्धाओं ने अपनी जान की आहुति देकर मंदिर की रक्षा की। मंदिर के पास उन वीरों की समाधियाँ भी बनी हैं, जो इस स्थल की रक्षा के लिए शहीद हुए।
शिवलिंग पर रहस्यमय छेद
वैजनाथ महादेव मंदिर का शिवलिंग बहुत ही अनोखा है। यहां का शिवलिंग विशेष रूप से प्रसिद्ध है, क्योंकि इस पर छोटे-छोटे छेद बने हुए हैं। यही नहीं, इस शिवलिंग से लगातार जल का रिसाव भी होता रहता है। इस जल का स्रोत क्या है, यह एक रहस्य बना हुआ है। वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों ने भी इस रहस्य का हल ढूंढने की कोशिश की, लेकिन अभी तक इसका स्पष्ट कारण नहीं मिल पाया है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि इस अद्वितीय प्राकृतिक घटना के कारण भी चर्चा का केंद्र बना हुआ है।
स्थानीय लोग मानते हैं कि यहाँ बहने वाला जल "शिव गंगा" है, जो एक अद्वितीय धार्मिक और प्राकृतिक घटना का प्रतीक है। पुरानी मान्यताओं के अनुसार, यह जल उस प्राचीन सरस्वती नदी से संबंधित है, जो अब विलुप्त हो चुकी है और इस मंदिर के नीचे बहती है। शिवलिंग से लगातार रिसने वाला यह जल स्थानीय समुदाय में अत्यधिक पूज्यनीय है और इसे शिव की गंगा कहा जाता है। लोगों का विश्वास है कि यह जल अनादि काल से बह रहा है और इसमें कई प्रकार की बीमारियों को ठीक करने की अद्भुत शक्ति है। यही कारण है कि यह जल प्रसाद के रूप में लिया जाता है और श्रद्धालु इसे पवित्र मानते हैं।
महाभारत काल से जुड़ी कहानी
वैजनाथ महादेव मंदिर की कहानी महाभारत काल से जुड़ी हुई है। मंदिर का इतिहास 11वीं शताब्दी से है, लेकिन मान्यता के अनुसार, इस मंदिर में स्थित शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल में पांडु के पुत्र भीम ने की थी। उस समय यह क्षेत्र "हिंडबा वन" के नाम से प्रसिद्ध था। जैसे-जैसे समय बीता, यह शिवलिंग भूमिगत हो गया और इसका अस्तित्व समाप्त हो गया।
राजा के सपने में भगवान का आदेश
इसके बाद, गुजरात के राजा सिद्धार्थ जयसिंह सोलंकी के शासनकाल में इस क्षेत्र में खुदाई की गई, और शिवलिंग को बाहर निकाला गया। राजा ने आदेश दिया था कि इस शिवलिंग को बाहर निकाला जाए, लेकिन कई प्रयासों के बावजूद इसका आधार ढूंढना असंभव था। कहते हैं कि इसके बाद भगवान शिव राजा के सपने में आए और उन्हें आदेश दिया कि यहीं इस शिवलिंग के लिए मंदिर बनवाना चाहिए।