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मां-बाप बच्चों से इन 3 चीजों की जिद ना करें, इसका बुरा असर पड़ता है वर्तमान और भविष्य दोनों पर

कहते हैं बच्चे को जन्म देने से ज्यादा मुश्किल काम उसकी सही परवरिश करना है। पैरेंट्स बनने के बाद हर एक छोटी-बड़ी चीज का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि कई बार एक छोटी सी गलती बच्चों के जीवन पर गहरा असर छोड़ जाती है।

Posts by : Varsha Singh | Updated on: Thu, 13 Feb 2025 12:59:02

मां-बाप बच्चों से इन 3 चीजों की जिद ना करें, इसका बुरा असर पड़ता है वर्तमान और भविष्य दोनों पर

कहते हैं बच्चे को जन्म देने से ज्यादा मुश्किल काम उसकी सही परवरिश करना है। पैरेंट्स बनने के बाद हर एक छोटी-बड़ी चीज का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। क्योंकि कई बार एक छोटी सी गलती बच्चों के जीवन पर गहरा असर छोड़ जाती है। उदाहरण के तौर पर आपने देखा होगा कि कुछ पैरेंट्स जानें-अनजाने में ही बच्चे पर अपनी जिद थोपने लगते हैं। उन्हें लगता है शायद ऐसा कर के वो बच्चे को सही रास्ते पर लाने की कोशिश कर रहे हैं या फिर उनके मुताबिक वैसा करना ही सही है। हालांकि उनकी ये जिद थोपने की आदत कई बार बहुत भारी पड़ जाती है। कई बार बच्चे पैरेंट्स की इस आदत से इतना परेशान हो जाते हैं कि उन्हें अपने मां-बाप ही दुश्मन दिखाई देने लगते हैं। इसका बुरा असर उनके भविष्य और वर्तमान दोनों पर पड़ता है। जब पैरेंट्स अपनी इच्छाओं को बच्चों पर थोपते हैं, तो बच्चे अपनी खुद की पहचान और राय विकसित करने में पीछे रह जाते हैं। इससे उनका आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है। आइए आज इसी पेरेंटिंग मिस्टेक्स के बारे में जानते हैं और समझते हैं कि कैसे हम इसे सुधार सकते हैं, ताकि बच्चों की परवरिश स्वस्थ और खुशहाल हो सके।

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पढ़ाई के मामले में अपनी राय थोपने से बचें

बच्चे को दसवीं के बाद आर्ट्स लेनी थी क्योंकि उसे इतिहासकार बनना था लेकिन पैरेंट्स के दबाव के चलते आज वो इंजीनियर बने बैठा है। ऐसे कितने ही केस आपने अपने इर्द-गिर्द देखे और सुने होंगे। ऐसे बच्चे अक्सर अपने करियर में बेहतर करने के बाद भी नाखुश रहते हैं। कई बार तो इनके मन में अपने पैरेंट्स को लेकर गुस्से और फ्रस्ट्रेशन की भावना पैदा हो जाती है। ऐसे में पैरेंट्स का फर्ज बनता है कि समाज और अपनी सोच के दायरे से निकलकर एक बार अपने बच्चे के मन की भी सुनें। इससे आप दोनों का रिश्ता भी मजबूत होगा और बच्चा आगे चलकर एक खुशहाल इंसान बनेगा।

अगर बच्चे को अपनी पसंद के अनुसार करियर चुनने का अवसर मिलेगा तो न सिर्फ वो अपने काम में बेहतर प्रदर्शन करेगा, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। बच्चों की क्षमताओं को पहचानकर और उनके रुचियों के हिसाब से उन्हें सही दिशा देने से, वे अपनी मेहनत और लगन से सफलता प्राप्त कर सकते हैं। पैरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों को उनके सपने और उद्देश्य का पीछा करने की आज़ादी दें, ताकि उनका भविष्य उन्हीं के हाथों में हो, न कि किसी और की इच्छाओं के तहत।

बच्चे को चुनने से दें अपना करियर

हर पैरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा अपने करियर में कुछ बड़ा करे और उनका नाम रोशन करे। इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन जब आप बच्चे पर अपनी पसंद थोपने लगें, तो यह बिल्कुल भी ठीक नहीं। हो सकता है बच्चे को आपकी मनपसंद सरकारी नौकरी की तैयारी करनी ही ना हो, उसे किसी और फील्ड में रुचि हो। लेकिन जब मां-बाप सोसाइटी और अपनी पसंद को बच्चे पर जबरदस्ती थोप देते हैं, तो बच्चा मजबूर हो जाता है। ये ना सिर्फ उसके सपने और खुशियों को मार देता है बल्कि अपने ही पैरेंट्स के लिए उसके अंदर एक गुस्से और फ्रस्ट्रेशन वाली भावना को जन्म देता है।

कभी-कभी बच्चे खुद भी अपनी रुचियों और क्षमताओं को सही से पहचान नहीं पाते, लेकिन अगर उनके पास इसे जानने और समझने का समय मिलता है, तो वे बेहतर निर्णय ले सकते हैं। पैरेंट्स को यह समझना चाहिए कि उनका बच्चा एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है और उसे अपने सपनों के पीछे भागने का हक है। यदि वे बच्चों को अपनी राह चुनने के लिए प्रेरित करेंगे, तो न केवल वे खुश रहेंगे, बल्कि आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी भी बनेंगे। इससे बच्चे और पैरेंट्स के बीच संबंध भी मजबूत होंगे।

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शादी से जुड़े फैसलों में ना बनाएं दबाव

कई बार पैरेंट्स अपने बच्चों पर जबरदस्ती शादी को लेकर दबाव बनाने लगते हैं। एक खास उम्र तक शादी कर लो, इससे करो या उससे मत करो; इन सभी से जुड़ी कई राय बच्चे पर थोपने की कोशिश की जाती है। जबकि यहां पैरेंट्स को यह समझना चाहिए कि शादी किसी भी इंसान के जीवन का सबसे अहम पल होता है। इससे जुड़ा कोई भी दबाव बनाना बिल्कुल भी ठीक नहीं क्योंकि ये बच्चे के पूरे जीवन पर असर डाल सकता है।

शादी एक ऐसा निर्णय है जिसे बच्चों को अपनी इच्छाओं, भावनाओं और समझ के आधार पर लेना चाहिए। इस प्रक्रिया में अगर वे खुद को समझने और सही साथी चुनने के लिए समय नहीं पा रहे हैं, तो उनके लिए यह निर्णय सही नहीं हो सकता। पैरेंट्स का रोल बच्चों को इस फैसले के लिए मानसिक रूप से तैयार करने का होना चाहिए, न कि उन पर दबाव बनाने का। जब बच्चा खुद से इस फैसले पर पहुंचता है, तो वह न केवल खुश रहता है, बल्कि यह रिश्ते में भी स्थायित्व लाता है। एक अच्छे और सशक्त संबंध की नींव तब ही पड़ सकती है, जब दोनों पक्षों के बीच समझदारी और समर्थन हो।

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