कुछ साल पहले, 2007 में एक बेहद खास फिल्म आई थी — 'तारे ज़मीन पर'। आमिर खान द्वारा निर्देशित इस फिल्म में एक ऐसे बच्चे की दिल को छू लेने वाली कहानी दिखाई गई थी जो पढ़ाई में कमजोर था, लेकिन उसकी कल्पना की उड़ानें किसी भी सीमाओं को नहीं मानती थीं। इस फिल्म ने समाज को यह समझाया कि हर बच्चा अनमोल होता है और उसमें कोई न कोई खास प्रतिभा छिपी होती है। इसने माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों की भावनाएं समझने की एक नई दिशा दी। अब, 20 जून को एक बार फिर उसी तरह की एक संवेदनशील और भावनात्मक रूप से जुड़ाव बनाने वाली फिल्म सिनेमाघरों में दस्तक देने जा रही है। इस बार जो बच्चे स्क्रीन पर नज़र आएंगे, उनमें से कई डाउन सिंड्रोम जैसी कम समझी जाने वाली लेकिन बेहद अहम जैविक स्थिति से जूझ रहे हैं। यह कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक अवस्था है, जिसे न केवल समझना चाहिए, बल्कि पूरे दिल से स्वीकार कर उनके प्रति सहानुभूति और समर्थन दिखाना भी आज के समाज की बड़ी ज़िम्मेदारी बन चुकी है।
क्या होता है डाउन सिंड्रोम?
एक्सपर्ट्स के अनुसार, डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक कंडीशन है। यह तब होता है जब इंसान के 21वें क्रोमोसोम की एक अतिरिक्त कॉपी मौजूद होती है। आमतौर पर इंसान के शरीर में 46 क्रोमोसोम होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्ति के पास 47 क्रोमोसोम होते हैं। यही एक अतिरिक्त क्रोमोसोम उनके मानसिक और शारीरिक विकास को प्रभावित करता है – जैसे सीखने की गति, शरीर की बनावट और कुछ बौद्धिक क्षमताएं। इसे न तो किसी से "लगाया" जा सकता है और न ही ये किसी तरह का संक्रमण होता है। यह जन्म से होता है और पूरी जिंदगी साथ रहता है।
डाउन सिंड्रोम के लक्षण क्या होते हैं?
हर व्यक्ति में इसके लक्षण थोड़े-बहुत अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य संकेत निम्नलिखित हैं:
- चेहरे की बनावट हल्की गोल और चपटी
- आंखों का आकार थोड़ा ऊपर की ओर उठा हुआ
- जीभ अक्सर बाहर निकलती हुई दिखाई देना
- मांसपेशियों में कमजोरी और लचीलापन
- शारीरिक विकास में अपेक्षाकृत धीमापन
- बोलने-समझने और सीखने में थोड़ी देरी
लेकिन इन लक्षणों का मतलब यह नहीं है कि ऐसे बच्चे कुछ नहीं कर सकते। अगर उन्हें सही माहौल, समझदारी भरा प्यार और निरंतर प्रोत्साहन मिले, तो ये बच्चे भी आर्ट, म्यूजिक, पढ़ाई और खेल में कमाल कर सकते हैं।
क्या डाउन सिंड्रोम का इलाज संभव है?
यह एक लाइफ लॉन्ग कंडीशन है जिसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। लेकिन सही इलाज, सपोर्ट और थेरेपी से बच्चों को एक बेहतर, सम्मानजनक और आत्मनिर्भर जीवन की ओर अग्रसर किया जा सकता है।
मददगार थेरेपीज़ में शामिल हैं:
स्पीच थैरेपी – संप्रेषण और बोलचाल में सुधार करती है
फिजियोथैरेपी – मांसपेशियों को मजबूत बनाती है
स्पेशल एजुकेशन – सीखने की रफ्तार और शैली के अनुसार पढ़ाई करवाई जाती है
पेरेंटल सपोर्ट – माता-पिता का धैर्य और सहयोग सबसे अहम होता है
समाज का रोल क्यों है सबसे ज़रूरी?
किसी भी जैविक स्थिति से जूझते बच्चों के लिए समाज की स्वीकार्यता और अपनापन सबसे बड़ी ताकत होती है। हमें ऐसे बच्चों को सिर्फ "सहानुभूति" से नहीं, बल्कि समान अधिकार और सम्मान के नजरिए से देखना होगा।
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है। किसी भी सुझाव को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लेना जरूरी है।