अनोखी परंपरा : झूठी पत्तल उठाने के लिए लगती है बोली, वर्षो पुरानी है परंपरा

By: Priyanka Maheshwari Fri, 23 Mar 2018 7:53:09

अनोखी परंपरा : झूठी पत्तल उठाने के लिए लगती है बोली, वर्षो पुरानी है परंपरा

अक्सर आपने देखा होगा की खान-पान के आयोजन में लोग अपन खुद की झूठी पत्तलों को उठाने में कतराते है। लेकिन खंडवा में एक आयोजन ऐसा भी होता है जहां झूठी पत्तल उठाने के लिए बोली लगाई जाती है। आयोजन की व्यवस्था के मुताबिक जो व्यक्ति सबसे ज्यादा रुपए की बोली लगाता है उसी का परिवार शुरू से अंत तक भोजन ग्रहण करने वालों की झूठी पत्तलें उठाता है। अर्थात जूठन को उठाने और साफ़ -सफाई करने वाला व्यक्ति ,अपने कार्य के एवज में समाज को पैसा देता है। बताया जा रहा है कि झूठी पत्तल उठाने को यह लोग माता के आशीर्वाद के रूप में मानते हैं। दरअसल, खंडवा में नवरात्रि के दौरान गणगौर का पर्व बड़े धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इन दिनों यहां पूरी श्रद्धा के साथ माता की भक्ति पूजा और आराधना की जाती है। आखिरी दिनों में भंडारे का आयोजन होता है और सभी धार्मिक श्रद्धालुओं को बैठकर भोजन कराया जाता है।

निमाड़ क्षेत्र में अमूमन सभी समाज के लोग गणगौर पर्व मनाते हैं लेकिन प्रजापति और कहार समाज के लोग इस आयोजन में होने वाले भंडारे के दौरान झूठी पत्तल उठाने की बोली लगाते हैं। जो भक्त सबसे ज्यादा रुपए की बोली लगाता है उसी का परिवार झूठी पत्तल उठाता है। पत्तल उठाने का यह काम एक श्रद्धा और माता के आशीर्वाद के रूप में देखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि माताजी के पूजा में जो लोग भोजन करने आते हैं उनकी झूठी पत्तलें उठाने पर उन्हें माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। बताया जा रहा है कि पिछले 50 वर्षों से यह प्रथा इस समाज में चली आ रही है।

इस परम्परा की शुरुआत चैत्र मॉस की नवरात्रि से हुई , निमाड़ में गणगौर का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है , जिसके समापन पर माता के नाम से भंडारे आयोजित किये जाते है , खासतौर पर कन्या को भोजन कराने की प्रथा प्रचलित है , कन्या अर्थात छोटी बालिका को देवी स्वरूप में पूजा जाता है , उन्हें भोजन कराने के बाद , उन्हें जिस पत्तल में “प्रसाद स्वरूप” भोज कराया जाता है , उसे उठाने पर पुण्य लाभ की प्राप्ति होती है , ऐसी धार्मिक मान्यता के चलते भंडारे में पत्तल उठाने के लिए आपस में होड लगने लगी , तो समाज के बुजुर्गों ने अनोखी परम्परा ईजाद करते हुए , जूठी पत्तलों को उठाने के लिए बोली लगाना शुरू कर दी। तब से यह परम्परा आज भी चली आ रही है , फर्क सिर्फ इतना है की अब भंडारे में वाले सभी भक्तों की जूठी पत्तल उठाने के लिए बोली लगाई जाती है। सोनू गुरवा ने बताया की जिसे बोली के जरिये जूठी पत्तलों को उठाने का अवसर मिलता है , वह अपने को भाग्यशाली समझता है। बोली से मिलने वाली राशि सामाजिक आयोजन में खर्च की जाती है।

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