'हमने ख्वाब में भगवान श्रीराम को रोते हुए देखा'
By: Priyanka Maheshwari Tue, 25 Sept 2018 4:51:17
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या मामले की सुनवाई से ठीक पहले यूपी शिया सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सैयद वसीम रिजवी ने कहा है कि बीती रात भगवान राम उनके ख्वाब में आए थे और रो रहे थे। उन्होंने कहा, 'वहाबी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पाकिस्तान से पैसे लेकर कांग्रेस की मदद से अयोध्या का मामला आजतक उलझाए हुए है। हिंदुस्तान में फसाद कराने वाले मुल्ला इसमें मरने वालों की लाशों संख्या गिनाकर पाकिस्तान से अपने इनाम का हिसाब करते हैं। अयोध्या में भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण का फैसला अब जल्द हो जाना चाहिए। राम भक्तों के साथ-साथ अब लग रहा है कि भगवान राम खुद इस मामले में उदास हो गए हैं।'
मंदिर न बनने से अब राम भक्तों के साथ खुद भगवान राम भी निराश हैं
उन्होंने कहा कि अयोध्या में मंदिर न बनने से अब राम भक्तों के साथ खुद भगवान राम भी निराश हैं। रिजवी ने अयोध्या में राम मंदिर बनाए जाने का समर्थन करते हुए कहा कि इसका फैसला अब हो जाना चाहिए। रिजवी ने कहा, 'हमने कल (सोमवार) रात में ख्वाब में भगवान राम को रोते हुए देखा। भारत के कट्टरपंथी मुसलमान जो पाकिस्तान के झंडे को इस्लाम का झंडा बताकर उससे मोहब्बत करना अपना ईमान समझते हैं, वे राम जन्मभूमि पर बाबरी पंजे जमाए हुए हैं। अयोध्या श्री राम का जन्मस्थान है, मुसलमानों के तीनों खलीफाओं का कब्रिस्तान नहीं।'
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अयोध्या केस से संबंधित एक पहलू को संवैधानिक बेंच भेजा जाय या नहीं, इस पर 28 सितंबर को फैसला आ सकता है। शीर्ष अदालत इस पर फैसला सुना सकता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का आंतरिक हिस्सा है या नहीं। अयोध्या का राममंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। अयोध्या की जमीन किसकी है, इस पर अभी सुनवाई की जानी है।
मुस्लिम पक्षकारों की दलील
- दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई है कि 1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि मस्जिद में नमाज पढना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है।
- उन्होंने कहा है कि ऐसे में इस फैसले को दोबारा परीक्षण की जरूरत है और इसी कारण पहले मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत इस पहलू पर फैसला लेगी कि क्या 1994 के सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के फैसले को दोबारा देखने के लिए संवैधानिक बेंच भेजा जाए या नहीं। इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अभी फैसला सुरक्षित किया है।