भारतीय बाजारों से गायब हुआ Rooh Afza, तो 'हमदर्द' पाकिस्तान ने की सप्लाई की पेशकश
By: Pinki Wed, 08 May 2019 4:51:08
भारत में रमजान के दिनों में लोकप्रिय शीतल पेय रूह अफज़ा गायब है। भारतीय बाजारों में इसका नामोनिशान तक नहीं है, लेकिन पाकिस्तान और बांग्लादेश के बाजारों में ये धड़ल्ले से बिक रहा है। बल्कि उन्हें भारत भेजने की डिमांड भी खासी जोर पकड़ रही है। पाकिस्तान में बिकने वाला रूह अफज़ा हू-ब-हू वही है और उन्हीं चीजों से बनती है जो भारत में तैयार होती हैं। उसका फार्मूला वही है। तो फिर ऐसा क्यों है। पाकिस्तानी कंपनी हमदर्द ने भारत में रूहअफ्जा की आपूर्ति की पेशकश की है। कंपनी ने यह प्रस्ताव पवित्र मुस्लिम महीने रमजान के दौरान गर्मी में ताजगी लाने वाले इस शरबत की कमी की मीडिया रिपोर्ट के बाद दिया है।
एक भारतीय समाचार साइट के एक लेख पर प्रतिक्रिया देते हुए हमदर्द पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी उस्मा कुरैशी ने रूहअफ्जा पेय की भारत को वाघा सीमा के जरिए आपूर्ति का प्रस्ताव दिया।
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, "हम इस रमजान के दौरान भारत में रूहअफ्जा व रूहअफ्जागो की आपूर्ति कर सकते हैं। यदि भारतीय सरकार द्वारा अनुमति दी जाती है तो हम वाघा सीमा से ट्रकों को आसानी से भेज सकते हैं।" लेख में कहा गया है कि रूहअफ्जा की भारतीय बाजार में चार से पांच महीने से बिक्री बंद है और यह ऑनलाइन स्टोर में भी उपलब्ध नहीं है।
इसमें यह भी कहा गया है कि हमदर्द इंडिया ने इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। इसने हालांकि, कच्चे माल की आपूर्ति में कमी को उत्पादन बंद होने के लिए जिम्मेदार ठहराने का प्रयास किया है।
Brother @DilliDurAst, we can supply #RoohAfza and #RoohAfzaGO to India during this Ramzan. We can easily send trucks through Wahga border if permitted by Indian Government.
— Usama Qureshi (@UsamaQureshy) May 7, 2019
रूह अफज़ा का किस्सा
रूह अफज़ा का किस्सा पुरानी दिल्ली की कासिम गली की हवेली के दवाखाना से जुड़ा है। इस दवाखाने का नाम हमदर्द था। इसे हकीम अब्दुल मजीद चलाया करते थे। 1900 में यूनानी पद्धति की चिकित्सा वाला ये दवाखाना जब उन्होंने यहां खोला तो ये लोकप्रिय होने लगा। ये वो अपने नुस्खे पर दवा बनाया करते थे और रोगियों में देते थे। उसी जमाने में उन्होंने गर्मियों में शीतलता देने वाली एक खास दवा बनाई। जब ये दवा शीतल पेय के रूप में लोकप्रिय होने लगी तो उन्होंने इसे 1907 में बड़े पैमाने पर बाजार में बेचना शुरू किया। इसका नाम रखा गया रूह अफज़ा। रूह अफज़ा ने हकीम मजीद की किस्मत बदल दी।
पुरानी दिल्ली की कासिम गली से निकलकर उन्होंने इसकी एक फैक्ट्री बनाई जहां उसका उत्पादन शुरू किया। साथ ही हमदर्द लेब्रोरेटरी नाम से कंपनी शुरू की। हमदर्द ब्रांड और रूह अफज़ा दोनों हिट होने लगे। बंटवारे से पहले ये देश के सबसे लोकप्रिय शरबत पेय के रूप में शुमार किया जाने लगा। जब 1947 में देश का बंटवारा हुआ तो हकीम मजीद के दो बेटों में बड़े बेटे तो भारत में रह गए, लेकिन छोटे बेटे कराची चले गए। उन्होंने कराची में 1948 में हमदर्द लेब्रोरेटरी शुरू की, जो पाकिस्तान में इस ब्रांड से रूह अफज़ा और दूसरे चिकित्सा प्रोडक्ट बनाने लगी। ये कंपनी भी पाकिस्तान में समय के साथ ना केवल बढ़ी बल्कि पाकिस्तान में बनने वाला रूह अफज़ा भी खासा लोकप्रिय हो गया और पाकिस्तान के बड़े ब्रांड्स में शुमार होने लगा।
इसके बाद पाकिस्तानी हमदर्द ने बांग्लादेश में कंपनी की नींव डाली। हां इन तीनों देशों में बनने वाली ज्यादा दवाओं और रूह अफज़ा का फार्मूला एक ही था, जो तीनों जगह बनाए जाते थे। यही वजह है कि रूह अफज़ा भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी बाजारों में खूब बिकते हैं।