Independence Day Special: कई युवाओं की प्रेरणा बने अमर शहीद 'भगतसिंह', जानें उनके बारे में
By: Ankur Wed, 07 Aug 2019 11:33:00
भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी पाने में कई साल लग गए और इसे पाने में कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राण न्योंछावर कर दिए। इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे अमर शहीद 'भगतसिंह' जो कई युवाओं के लिए प्रेरणा बने और उन्हें स्वतंत्रता पाने के लिए प्रोत्साहित किया। भगत सिंह ने अपनी बात अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंचाने के लिए उग्र रूप अपनाया था। उनका मानना था कि "अंग्रेजी हुकूमत बहरी हैं और इनको अपनी आवाज सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत हैं" इसलिए ही भागे सिंह ने अदालत में बम फेंककर धमाका किया था। भगतसिंग का देश की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान देखते हुए आज हम आपको उनकी जीवनी से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं।
भारतीय इतिहास के अमर शहीदों में सबसे ऊँचा जाने वाला नाम है, भगत सिंह। एक देशभक्त सिख परिवार में जन्में भगत सिंह अपने इरादों के साथ अपने तरीकों के लिए भी जाने जाते थे। वे मानते थे कि "अंग्रेजी हुकूमत बहरी हैं और इनको अपनी आवाज सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत हैं" और इसके लिए उन्होंने अदालत में बम फेंककर धमाका भी किया था। भारत की आजादी में भगत सिंह का योगदान बहुत महत्व रखता हैं। आज हम आपको इस अमर शहीद की जीवनी से जुडी कुछ बातें बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं अमर शहीद भगतसिंह के बारे में।
भगतसिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम 'भागो वाला' रखा था। जिसका मतलब होता है 'अच्छे भाग्य वाला'। बाद में उन्हें 'भगतसिंह' कहा जाने लगा। वह 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। डी।ए।वी। स्कूल से उन्होंने नौवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।
1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्हें विवाह बंधन में बांधने की तैयारियां होने लगी तो वह लाहौर से भागकर कानपुर आ गए। फिर देश की आजादी के संघर्ष में ऐसे रमें कि पूरा जीवन ही देश को समर्पित कर दिया। भगतसिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया,वह युवकों के लिए हमेशा ही एक बहुत बड़ा आदर्श बना रहेगा।
अमृतसर में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। काकोरी कांड में रामप्रसाद 'बिस्मिल' सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कारावास की सजा से भगत सिंह इतने ज्यादा बेचैन हुए कि चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन'। इस संगठन का उद्देश्य सेवा,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना था।
इसके बाद भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा। इस कार्रवाई में क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भी उनकी पूरी सहायता की। इसके बाद भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड़ दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेम्बली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके। बम फेंकने के बाद वहीं पर उन दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी।
इसके बाद'लाहौर षडयंत्र' के इस मुकदमें में भगतसिंह को और उनके दो अन्य साथियों,राजगुरु तथा सुखदेव को 23 मार्च,1931 को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया। यह माना जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी, लेकिन लोगों के भय से डरी सरकार ने 23-24 मार्च की मध्यरात्रि ही इन वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी और रात के अंधेरे में ही सतलज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया।
भगतसिंह की शहादत से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली बल्कि नवयुवकों के लिए भी वह प्रेरणा स्रोत बन गए। वह देश के समस्त शहीदों के सिरमौर बन गए। उनके जीवन पर आधारित कई हिन्दी फिल्में भी बनी हैं जिनमें- द लीजेंड ऑफ भगत सिंह, शहीद, शहीद भगत सिंह आदि। आज भी सारा देश उनके बलिदान को बड़ी गंभीरता व सम्मान से याद करता है। भारत और पाकिस्तान की जनता उन्हें आजादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिंदगी देश के लिए समर्पित कर दी।