एडल्टरी को SC ने किया रद्द, संविधान पीठ ने कहा- इसे अपराध नहीं माना जा सकता

By: Pinki Thu, 27 Sept 2018 12:44:09

एडल्टरी को SC ने किया रद्द, संविधान पीठ ने कहा- इसे अपराध नहीं माना जा सकता

उच्चतम न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 150 साल पुराने एडल्टरी कानून को असंवैधानिक करार दिया है। शादी से बाहर संबंध को अपराध बनाने वाली धारा 497 के खिलाफ लगी याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि एडल्टरी Adultery को शादी से अलग होने का आधार बनाया जा सकता है लेकिन इसे अपराध नहीं माना जा सकता।

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति खानविलकर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम विवाह के खिलाफ अपराध के मामले में दंड का प्रावधान करने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 497 और सीआरपीसी की धारा 198 को असंवैधानिक घोषित करते हैं। अब यह कहने का समय आ गया है कि पति महिला का मालिक नहीं होता है। महिलाओं के साथ असमान व्यवहार करने वाला कोई भी प्रावधान संवैधानिक नहीं हो सकता है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि महिलाओं पर यह दबाव नहीं बना सकता कि समाज उनके बारे में क्या सोच रहा है। उन्होंने कहा कि शादी के बाद संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।

जस्टिस मिश्रा ने कहा, 'मूलभूत अधिकारों में महिलाओं के अधिकारों को भी शामिल किया जाना चाहिए। एक व्यक्ति का सम्मान समाज की पवित्रता से अधिक जरूरी है। महिलाओं को नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें समाज के हिसाब से सोचना चाहिए।"

जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, "एडल्टरी चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में अपराध नहीं है। यह शादियों में परेशानी का नतीजा हो सकता है उसका कारण नहीं। इसे क्राइम कहना गलत होगा।" उन्होंने कहा, "एक लिंग के व्यक्ति को दूसरे लिंग के व्यक्ति पर कानूनी अधिकारी देना गलत है। इसे शादी रद्द करने का आधार बनाया जा सकता है लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। वैवाहिक इतर संबंध को अपराध की श्रेणी से निरस्त किए जाने पर याचिकाकर्ता के वकील राज कल्लीश्वरम ने सुप्रीम कोर्ट से इस फैसले को महान फैसला बताया। राज कल्लीश्वरम ने कहा कि मैं कोर्ट के इस फैसले से बहुत खुश हूं और मुझे लगता है कि भारत के लोग भी खुश होंगे।

एडल्टरी पर अब तक क्या था कानून?

धारा 497 केवल उस पुरुष को अपराधी मानती है, जिसके किसी और की पत्नी के साथ संबंध हैं। पत्नी को इसमें अपराधी नहीं माना जाता। जबकि आदमी को पांच साल तक जेल का सामना करना पड़ता है।

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि सरकार की यह दलील कि विवाह की पवित्रता बनाए रखने के लिए व्यभिचार को अपराध की श्रेणी में होना ही चाहिए, यह उचित नहीं लगता। यह कैसा कानून है कि अगर शादीशुदा पुरुष अविवाहित महिला के साथ संबंध बनाता है तो कोई अपराध नहीं बनता। पीठ ने कहा कि विवाहित महिला अगर किसी विवाहित पुरुष से संबंध बनाती है तो सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों? जबकि महिला भी अपराध की बराबर जिम्मेदार है।

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