UP News: शाकाहार द‍िवस के रूप में मनेगी स‍िंंधी संत टी एल वासवानी की जयंती, बंद रहेंगी मीट की दुकानें

By: Pinki Thu, 25 Nov 2021 09:09:49

UP News: शाकाहार द‍िवस के रूप में मनेगी स‍िंंधी संत टी एल वासवानी की जयंती, बंद रहेंगी मीट की दुकानें

उत्तर प्रदेश में महापुरुषों की जयंती पर मांस की दुकानें बंद रहेंगी। योगी सरकार ने महावीर जयंती, बुद्ध जयंती, गांधी जयंती और सिंधी समाज के संत टीएल वासनी की जयंती पर मांस की दुकानें और बूचड़खाने बंद करने का आदेश दिया है। शिवरात्रि पर भी ये बंदी रहेगी।

प्रदेश सरकार ने सि‍ंधी समाज के महान दार्शनिक संत साधु टीएल वासवानी की जयंती 25 नवंबर को शाकाहार दिवस घोषित करते हुए सभी पशुवधशालाएं एवं मीट की दुकानें बंद रखने का निर्णय लिया है।

योगी सरकार ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है। नगरीय विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ रजनीश दुबे ने कहा कि आज टीएल वासनी की जयंती है। सभी नगरीय निकायों में स्थित बूचड़खानों के अलावा मीट की दुकानें बंद रखी जाएंगी। सभी अधिकारियों को आदेश का सख्ती से पालन करने के भी निर्देश दिए गए हैं।

कौन थे संत टीएल वासवानी

साधु वासवानी का जन्म हैदराबाद में 25 नवम्बर 1879 में हुआ था। अपने भीतर विकसित होने वाली अध्यात्मिक प्रवृत्तियों को बालक वासवानी ने बचपन में ही पहचान लिया था। वह समस्त संसारिक बंधनों को तोड़ कर भगवत भक्ति में रम जाना चाहते थे परन्तु उनकी माता की प्रबल इच्छा थी कि उनका बेटा घर गृहस्थी बसा कर परिवार के साथ रहे। अपनी माता के विशेष आग्रह पर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की। उनके बचपन का नाम थांवरदास लीलाराम रखा गया। सांसारिक जगत में उन्हें टी. एल. वासवानी के नाम से जाना गया तो अध्यात्मिक लोगों ने उन्हें साधु वासवानी के नाम से सम्बोधित किया।

वे समस्त जीवों को एक मानते थे

साधु वासवानी ने जीव हत्या बंद करने के लिए जीवन पर्यन्त प्रयास किया। वे समस्त जीवों को एक मानते थे। जीव मात्र के प्रति उनके मन में अगाध प्रेम था। जीव हत्या रोकने के बदले वे अपना शीश तक कटवाने के लिए तैयार थे। केवल जीव जन्तु ही नहीं उनका मत था कि पेड़ पौधों में भी प्राण होते हैं। उनकी युवको को संस्कारित करने और अच्छी शिक्षा देने में बहुत अधिक रूचि थी। वे भारतीय संस्कृति और धार्मिक सहिष्णुता के अनन्य उपासक थे। उनका मत था कि प्रत्येक बालक को धर्म की शिक्षा दी जानी चाहिए। वे सभी धर्मों को एक समान मानते थे। उनका कहना था कि प्रत्येक धर्म की अपनी अपनी विशेषताएं हैं। वे धार्मिक एकता के प्रबल समर्थक थे।

विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए बर्लिन गए थे

30 वर्ष की आयु में वासवानी भारत के प्रतिनिधि के रूप में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए बर्लिन गए। वहां पर उनका प्रभावशाली भाषण हुआ और बाद में वह पूरे यूरोप में धर्म प्रचार का कार्य करने के लिए गए। उनके भाषणों का बहुत गहरा प्रभाव लोगों पर होता था। वे मंत्रमुग्ध हो कर उन्हें सुनते रहते थे। वे बहुत ही प्रभावषाली वक्ता थे। श्रोताओं पर उनका बहुत गहरा प्रभाव पड़ता था। भारत के विभिन्न भागों में निरन्तर भ्रमण करके उन्होंने अपने विचारों को लागों के सामने रखा और उन्हें भारतीय संस्कृति से परिचित करवाया।

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