उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के देवबंद के बैरून कोटला मोहल्ले में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर, जो पिछले 60 वर्षों से बंद था, अब फिर से खोला जाएगा। 9 मार्च को हिंदू संगठनों द्वारा मंदिर में हवन, यज्ञ और पूजा-पाठ का आयोजन किया जाएगा। मंदिर के जीर्णोद्धार की योजना भी बनाई जा रही है।
मुजफ्फरनगर के कई बंद पड़े मंदिरों का जीर्णोद्धार करा चुके आचार्य यशवीर महाराज ने इस मंदिर को फिर से जागृत करने की बात कही है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर बताया कि यह मंदिर 1992 से पहले सैनी कॉलोनी और सैनी सराय नाम से पहचाने जाने वाले इलाके में स्थित था।
उन्होंने कहा कि पहले यहां सैनी समाज के लोग निवास करते थे, लेकिन समय के साथ मुस्लिम आबादी बढ़ने लगी। 1992 के बाद हिंदू समुदाय ने इस क्षेत्र से पलायन कर दिया, जिससे 200 साल से अधिक पुराना यह शिव मंदिर वीरान हो गया और पूजा-अर्चना पूरी तरह बंद हो गई।
यशवीर महाराज ने कहा कि मंदिर की वर्तमान स्थिति देखकर हर हिंदू की आंखों में आंसू आ जाएंगे। अब, वर्षों बाद, इसे फिर से भक्तों के लिए खोला जा रहा है, जिससे क्षेत्र में धार्मिक आस्था को पुनर्जीवित किया जा सके।
‘भाईचारे की आड़ में भेदभाव?’
उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्यों देशभर में मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं के मंदिर खंडहर बन चुके हैं? क्यों हिंदू समुदाय को इन क्षेत्रों से पलायन करना पड़ता है? और क्यों मंदिरों के दरवाजे बंद हो जाते हैं? इसके विपरीत, हिंदू बहुल इलाकों में मुस्लिम समाज के मदरसे और मस्जिदें सुचारू रूप से संचालित रहती हैं। पूरे भारत में किसी भी हिंदू क्षेत्र में मदरसा या मस्जिद खंडहर अवस्था में नहीं मिलेगी, न ही वहां से मुस्लिम समुदाय का पलायन होता है। लेकिन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में हजारों मंदिर जर्जर अवस्था में देखे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इससे यह स्पष्ट होता है कि भाईचारे की भावना हिंदुओं ने निभाई, लेकिन मुस्लिम समुदाय ने इसे सिर्फ अपने हित में इस्तेमाल किया।
‘सनातन संस्कृति का सम्मान जरूरी’
यशवीर महाराज ने सहारनपुर के सभी हिंदू संगठनों, धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं से अपील की है कि वे 200 वर्ष पुराने इस प्राचीन मंदिर के पुनर्जागरण के हवन-पूजन में सम्मिलित हों। उन्होंने कहा कि यह मंदिर सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर है। इसे खंडित और जर्जर अवस्था में छोड़ देना हर सनातनी के लिए अपमानजनक है। इसलिए, सभी को एकजुट होकर इस मंदिर का पुनर्निर्माण और जीर्णोद्धार करना चाहिए, ताकि इसे फिर से अपने प्राचीन गौरवशाली स्वरूप में स्थापित किया जा सके।