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PM मोदी ने महाकुंभ को बताया सनातन एकता का महायज्ञ, मांगी क्षमा

महाकुंभ 2025 के समापन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग के माध्यम से इस भव्य आयोजन की सराहना की

| Updated on: Thu, 27 Feb 2025 12:28:48

PM मोदी ने महाकुंभ को बताया सनातन एकता का महायज्ञ, मांगी क्षमा

महाकुंभ 2025 के समापन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ब्लॉग के माध्यम से इस भव्य आयोजन की सराहना की। उन्होंने इसे "एकता का महायज्ञ" करार दिया और लिखा कि प्रयागराज में आयोजित इस पवित्र महाकुंभ ने पूरे 45 दिनों तक 140 करोड़ भारतीयों की आस्था को एक सूत्र में पिरो दिया। इस आयोजन ने न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक चेतना को जागृत किया, बल्कि देश की एकता और सामूहिक शक्ति का अद्भुत उदाहरण भी प्रस्तुत किया।

महाकुंभ: एकता और आस्था का संगम

अपने ब्लॉग में पीएम मोदी ने उल्लेख किया कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान उन्होंने "देवभक्ति से देशभक्ति" की भावना पर जोर दिया था। उन्होंने कहा कि प्रयागराज महाकुंभ के दौरान यह भावना चरितार्थ हुई, जब संत-महात्माओं, युवाओं, महिलाओं, बाल-वृद्धों सहित हर वर्ग और समुदाय के लोग एकजुट हुए। इस आयोजन में देश की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना का अद्वितीय साक्षात्कार हुआ।

श्रृंगवेरपुर: एकता और समरसता की प्रेरणा

पीएम मोदी ने अपने ब्लॉग में तीर्थराज प्रयाग के समीप स्थित श्रृंगवेरपुर क्षेत्र का विशेष उल्लेख किया, जो प्रभु श्रीराम और निषादराज के ऐतिहासिक मिलन का साक्षी रहा है। उन्होंने इसे भक्ति और सद्भाव का संगम बताया और कहा कि यह स्थान आज भी हमें एकता और समरसता की प्रेरणा देता है।

देशभर से श्रद्धालुओं का सैलाब

प्रधानमंत्री ने इस बात पर विशेष जोर दिया कि बीते 45 दिनों में लाखों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से संगम तट की ओर उमड़े। आस्था और श्रद्धा के इस महासागर में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी हर भक्त को ऊर्जा और विश्वास से भर रही थी। उन्होंने कहा कि इस महाकुंभ ने भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता के गौरव को नए शिखर पर पहुंचाया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2024 की भव्यता और इसके शानदार प्रबंधन की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह आयोजन आधुनिक युग के मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स, प्लानिंग और पॉलिसी एक्सपर्ट्स के लिए अध्ययन का एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है। इस स्तर का आयोजन न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में अद्वितीय है।

विश्व को चकित कर देने वाला आयोजन


महाकुंभ 2024 की विशालता ने पूरी दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। करोड़ों श्रद्धालु बिना किसी औपचारिक निमंत्रण या निर्धारित समय-सारणी के संगम तट पर एकत्र हुए। बस, आस्था की डोर से बंधे लोग इस आयोजन का हिस्सा बनने के लिए खुद ही निकल पड़े और संगम में स्नान कर धन्य हो गए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वे उन भावनापूर्ण क्षणों को नहीं भूल सकते, जब स्नान के बाद श्रद्धालुओं के चेहरे आनंद और संतोष से दमक रहे थे।

युवाओं की भागीदारी ने दिया महत्वपूर्ण संदेश

पीएम मोदी ने विशेष रूप से इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि बड़ी संख्या में युवा महाकुंभ में शामिल हुए। उन्होंने इसे भारत की युवा पीढ़ी के संस्कारों और संस्कृति के प्रति समर्पण का प्रमाण बताया। यह पीढ़ी न केवल अपने आध्यात्मिक मूल्यों को समझती है बल्कि इसे आगे बढ़ाने के लिए संकल्पित भी है।

महाकुंभ में ऐतिहासिक संख्या में श्रद्धालु पहुंचे

महाकुंभ 2024 में प्रयागराज पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या ने एक नया रिकॉर्ड कायम किया। जो लोग प्रयागराज नहीं आ सके, वे भी इस आयोजन से भावनात्मक रूप से जुड़े रहे। महाकुंभ से लौटने वाले श्रद्धालु अपने साथ त्रिवेणी संगम का पवित्र जल लेकर गए, जिसकी कुछ बूंदों ने उनके गांवों में भी इस पवित्र आयोजन की अनुभूति करा दी। यह कुंभ न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली कई शताब्दियों के लिए एक ऐतिहासिक विरासत बन गया है।

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युग परिवर्तन की आहट: प्रधानमंत्री मोदी

प्रयागराज महाकुंभ 2024 में जितनी कल्पना की गई थी, उससे कहीं अधिक श्रद्धालु उमड़े। प्रशासन ने पुराने कुंभ के अनुभवों को आधार मानकर तैयारियां की थीं, लेकिन वास्तविक संख्या ने सभी अनुमानों को पीछे छोड़ दिया। अमेरिका की आबादी से लगभग दोगुनी संख्या में श्रद्धालु इस एकता के महाकुंभ में शामिल हुए और संगम में डुबकी लगाई। आध्यात्मिक शोधकर्ताओं के लिए यह ऐतिहासिक आयोजन अध्ययन का विषय बनेगा, क्योंकि यह दिखाता है कि भारत अब अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व के साथ एक नई ऊर्जा से आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे "युग परिवर्तन की आहट" करार दिया, जो भारत के नए भविष्य की नींव रख रही है।

राष्ट्रीय चेतना को सशक्त करने वाला आयोजन


महाकुंभ की यह परंपरा हजारों वर्षों से भारत की राष्ट्रीय चेतना को सशक्त करती आई है। हर पूर्णकुंभ में समाज की वर्तमान परिस्थितियों पर ऋषि-मुनि और विद्वान 45 दिनों तक विचार-मंथन करते थे, जिससे समाज और देश को नए दिशा-निर्देश मिलते थे। इसके बाद हर छह साल में होने वाले अर्धकुंभ में इन दिशा-निर्देशों की समीक्षा की जाती थी। 144 वर्षों के अंतराल में होने वाले महाकुंभ में, पुरानी पड़ चुकी परंपराओं को त्यागकर, समयानुकूल नए विचारों को स्वीकार किया जाता था।

महाकुंभ 2024 भी एक नए युग के संदेश के साथ आया है—यह संदेश है विकसित भारत का।

एकता और आत्मविश्वास का महापर्व

महाकुंभ 2024 में एक ऐतिहासिक दृश्य देखने को मिला, जहां हर जाति, वर्ग, विचारधारा, क्षेत्र और आयु के लोग एक साथ इस महायज्ञ का हिस्सा बने। गरीब हो या संपन्न, ग्रामीण हो या शहरी, पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण से आए हर व्यक्ति ने मिलकर एक भारत-श्रेष्ठ भारत की भावना को साकार किया। यह आयोजन करोड़ों देशवासियों में आत्मविश्वास को जागृत करने वाला महापर्व बन गया। अब इसी एकता की भावना के साथ, हमें विकसित भारत के महायज्ञ में भी पूरे समर्पण के साथ जुट जाना है।

प्रधानमंत्री मोदी ने सुनाया श्रीकृष्ण और माता यशोदा का प्रसंग

महाकुंभ के इस पावन अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीकृष्ण और माता यशोदा के एक प्रसिद्ध प्रसंग का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, "जब बालक श्रीकृष्ण ने अपनी माता यशोदा को अपने मुख में संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे, ठीक वैसे ही इस महाकुंभ में भारतवासियों और समस्त विश्व ने भारत के सामर्थ्य के विराट स्वरूप का साक्षात्कार किया है।" यह एक ऐसा ऐतिहासिक क्षण है, जिसने भारत की शक्ति, संस्कृति और एकता को नए आत्मविश्वास के साथ प्रकट किया है। अब हमें इसी आत्मविश्वास और एकनिष्ठता के साथ विकसित भारत के संकल्प को साकार करने के लिए आगे बढ़ना है।

संतों ने हर कोने में जगाई राष्ट्र चेतना

भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शक्ति को संतों ने सदियों से जागृत किया है। भक्ति आंदोलन के संतों ने राष्ट्र के हर कोने में इस चेतना को प्रज्वलित किया। स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंद और महात्मा गांधी ने भी इस शक्ति को पहचाना और इसे राष्ट्र निर्माण का आधार बनाया। लेकिन स्वतंत्रता के बाद, यदि हमने इस विराट शक्ति को पहचानकर सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय की दिशा में मोड़ा होता, तो भारत और भी सशक्त बन सकता था। अब, इस महाकुंभ के माध्यम से यह स्पष्ट हो गया है कि जनता जनार्दन की यही शक्ति आज विकसित भारत के लक्ष्य के लिए एकजुट हो रही है।

भारत की महान परंपराओं से प्रेरणा लें


भारत की संस्कृति वेदों से विवेकानंद तक, उपनिषदों से उपग्रहों तक, एक निरंतर विकसित होती परंपरा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों से आह्वान किया कि वे इस एकता के महाकुंभ से नई प्रेरणा लें और इसे जीवन का मंत्र बनाएं। उन्होंने कहा, "देश सेवा ही देव सेवा है, जीव सेवा ही शिव सेवा है।" यही भावना हमें राष्ट्र के विकास और समृद्धि के पथ पर निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

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प्रधानमंत्री मोदी ने किया काशी और प्रयागराज का उल्लेख

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ के अवसर पर काशी और प्रयागराज की पवित्रता और सांस्कृतिक महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने याद किया कि जब वे काशी में चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे थे, तब उनके मन में एक गहरी अनुभूति जागृत हुई थी, और उन्होंने कहा था— "मां गंगा ने मुझे बुलाया है।" यह केवल एक आह्वान नहीं था, बल्कि एक दायित्व बोध भी था, जिसमें भारत की नदियों की पवित्रता और स्वच्छता की जिम्मेदारी शामिल थी।

प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रधानमंत्री का यह संकल्प और दृढ़ हुआ कि हमारी नदियों को स्वच्छ और निर्मल बनाए रखना न केवल पर्यावरणीय बल्कि आध्यात्मिक दायित्व भी है। उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया कि वे नदियों को जीवनदायिनी मां के रूप में देखें और हर नदी के सम्मान में नदी उत्सव मनाने की परंपरा को बढ़ावा दें। यह एकता का महाकुंभ हमें अपनी संस्कृति और प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनने की प्रेरणा देता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने इस विराट आयोजन की सफलता के लिए सभी प्रशासनिक अधिकारियों, सफाईकर्मियों, पुलिसकर्मियों, नाविकों, वाहन चालकों और भोजन तैयार करने वाले लोगों की सेवा भाव की सराहना की। उन्होंने विशेष रूप से प्रयागराज के निवासियों का धन्यवाद किया, जिन्होंने अपनी तमाम असुविधाओं के बावजूद श्रद्धालुओं की सेवा को प्राथमिकता दी।

सेवा में कमी रह गई हो तो जनता जनार्दन का क्षमाप्रार्थी हूं


उन्होंने भावुक होकर कहा— "मैं मां गंगा, मां यमुना, मां सरस्वती से प्रार्थना करता हूं कि यदि हमारी आराधना में कोई कमी रह गई हो तो हमें क्षमा करें। जनता जनार्दन मेरे लिए ईश्वर के समान है, और यदि उनकी सेवा में कोई कमी रह गई हो तो मैं उनसे भी क्षमा प्रार्थना करता हूं।"

देशवासियों के समर्पण की सराहना

महाकुंभ के दौरान पूरे देश ने जिस तरह एकता और श्रद्धा का परिचय दिया, उसने प्रधानमंत्री मोदी को और अधिक आश्वस्त किया कि भारत का भविष्य उज्ज्वल है। उन्होंने 140 करोड़ देशवासियों की सराहना करते हुए कहा कि "प्रयागराज में यह आयोजन आज के विश्व की एक महान पहचान बन चुका है।"

महाकुंभ के समापन के बाद, प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी घोषणा की कि वे जल्द ही द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रथम ज्योतिर्लिंग, श्री सोमनाथ के दर्शन के लिए जाएंगे और वहां सभी भारतीयों के कल्याण के लिए प्रार्थना करेंगे। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि जैसे गंगा की अविरल धारा निरंतर प्रवाहित होती है, वैसे ही महाकुंभ की आध्यात्मिक चेतना और राष्ट्रीय एकता की भावना भी निरंतर प्रवाहित होती रहेगी।

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