जब भी किसी प्लेन का एक्सीडेंट होता है, तो अक्सर उसकी हालत इतनी बुरी होती है कि पूरा मलबा सिर्फ राख और मेटल का ढेर बनकर रह जाता है। हर तरफ तबाही का मंजर होता है। लेकिन हैरानी की बात ये होती है कि इतना बड़ा और भीषण हादसा होने के बावजूद ब्लैक बॉक्स, जिसे प्लेन का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है, अक्सर बिलकुल सेफ मिल जाता है। आखिर ऐसा कैसे होता है? क्या ये कोई जादू है या फिर बेहद खास टेक्नोलॉजी का कमाल? यहां हम आपको आसान और स्पष्ट शब्दों में, वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर समझाएंगे कि ऐसा कैसे संभव हो पाता है।
ब्लैक बॉक्स होता क्या है?
ब्लैक बॉक्स असल में दो जरूरी और संवेदनशील डिवाइस होते हैं, जो विमान की उड़ान से जुड़ी हर गतिविधि को रिकॉर्ड करते हैं:
CVR (Cockpit Voice Recorder): यह डिवाइस पायलट की आवाज, कॉकपिट में होने वाली बातचीत और अन्य साउंड रिकॉर्ड करता है ताकि क्रैश से पहले की घटनाओं को समझा जा सके।
FDR (Flight Data Recorder): यह विमान की स्पीड, ऊंचाई, इंजन की जानकारी और अन्य टेक्निकल डेटा सेव करता है, जो टेक्निकल जांच में बेहद उपयोगी होता है।
इन दोनों डिवाइस को एक यूनिट में मिलाकर ही ब्लैक बॉक्स कहा जाता है। यह प्लेन के पिछले हिस्से में लगाया जाता है क्योंकि किसी भी विमान दुर्घटना में वहां सबसे कम नुकसान होने की संभावना रहती है, जिससे इसकी सुरक्षा और ज्यादा सुनिश्चित होती है।
ब्लैक बॉक्स को क्यों नहीं होता नुकसान?
ब्लैक बॉक्स को बहुत ही खास इंजीनियरिंग और अत्याधुनिक तकनीकी पद्धति से तैयार किया जाता है ताकि वह किसी भी आपदा – चाहे आग हो, पानी हो या भयानक टक्कर – में डेटा सुरक्षित रख सके:
मजबूत मटेरियल से बना होता है: इसका बाहरी हिस्सा टाइटेनियम या स्टेनलेस स्टील जैसे बेहद मजबूत और टिकाऊ धातु से बना होता है, जिससे यह संरचना में बेहद मज़बूत होता है।
तेज आग में भी सुरक्षित रहता है: इसे 1100°C तक की आग में करीब 60 मिनट तक बिना प्रभावित हुए टिके रहने के लिए डिजाइन किया जाता है, ताकि क्रैश के दौरान लगी आग भी इसका डेटा न मिटा सके।
भारी दबाव और गहराई में भी सुरक्षित: यदि प्लेन समुद्र में गिर जाए, तब भी यह ब्लैक बॉक्स 20,000 फीट गहराई तक के पानी और दबाव को झेल सकता है।
इंटरनल प्रोटेक्शन लेयर: इसके अंदर की परतें – जैसे इंसुलेशन, थर्मल प्रोटेक्शन और शॉक एब्जॉर्बर – इसके अंदर रिकॉर्ड हुए डेटा को किसी भी टक्कर, तेज तापमान या झटके से बचाती हैं।
हादसे के बाद कैसे मिलता है ब्लैक बॉक्स?
ब्लैक बॉक्स में एक अंडरवॉटर लोकेटर बीकन (ULB) भी लगा होता है, जो पानी में गिरने पर हर सेकंड एक खास साउंड सिग्नल भेजता है। यह सिग्नल करीब 30 दिनों तक सक्रिय रहता है, जिससे सर्च टीम उसे ढूंढ़ सकती है और डाटा रिकवर किया जा सकता है।
क्यों होता है ब्लैक बॉक्स इतना जरूरी?
ब्लैक बॉक्स किसी भी विमान दुर्घटना की सबसे बड़ी और भरोसेमंद गवाही होता है। इसके अंदर मौजूद रिकॉर्डिंग और डेटा से यह पता चलता है कि आखिरी समय में विमान में क्या हुआ था — पायलट ने क्या कहा, कौन सी तकनीकी खराबी सामने आई, और किस कारण से हादसा हुआ। इससे जांच एजेंसियां सच्चाई तक पहुंचती हैं और भविष्य में ऐसे हादसे रोकने के लिए जरूरी कदम उठाती हैं, जिससे एयर सेफ्टी को और मजबूत बनाया जा सके।