
छठ पूजा का पावन महापर्व इस साल 25 अक्टूबर से आरंभ होकर 28 अक्टूबर तक चलेगा। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में सूर्य देव और छठी मैया की विशेष पूजा की जाती है। व्रती इस व्रत को अपने बच्चों के स्वास्थ्य, लंबी आयु, सफलता और समृद्धि की कामना के लिए रखते हैं।
हालांकि कई लोग छठ व्रत रखते हैं, लेकिन इसके पीछे छठी मैया की महिमा और उनका महत्व कम ही लोग जानते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि कौन हैं छठी मैया और क्यों उन्हें इस पर्व में पूजा जाता है।
छठी मैया किसकी बहन मानी जाती हैं?
हिंदू धर्म में छठी मैया को भगवान सूर्यदेव की बहन माना गया है। उन्हें संतानों की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुरक्षा की देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी को षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की, तब उन्होंने संतानों की सुरक्षा और उनकी वृद्धि के लिए देवी षष्ठी का निर्माण किया। तभी से नवजात बच्चों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए माता षष्ठी की पूजा की जाती है। नवजात बच्चों के जन्म के छठवें दिन उनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है।
छठी मैया और सूर्य देव का संबंध
छठ पूजा में छठी मैया और सूर्य देव दोनों की उपासना की जाती है। व्रती महिलाएं जल, फल और अर्घ्य अर्पित करके इनकी कृपा प्राप्त करती हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके आशीर्वाद से बच्चे स्वस्थ, भाग्यशाली और दीर्घायु बनते हैं। इस महापर्व के दौरान सूर्य की ऊर्जा और प्रकृति के तत्व मिलकर जीवन में नई चेतना और पवित्रता लाते हैं।
छठ पूजा के चार दिन
1. नहाय-खाय (25 अक्टूबर)
पहले दिन व्रती स्नान करके घर को स्वच्छ और पवित्र करती हैं। इसके बाद सात्विक भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत की जाती है।
2. खरना (26 अक्टूबर)
दूसरे दिन व्रती निर्जला उपवास रखती हैं। शाम को गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद बनाकर छठी मैया को अर्पित किया जाता है।
3. संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर)
तीसरे दिन व्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं और सूर्य देव व छठी मैया से अपने परिवार की खुशहाली, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करती हैं।
4. उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर)
अंतिम दिन व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। इसी के साथ व्रत का विधिवत समापन होता है और भक्त एक-दूसरे को बधाई देते हैं।














