भारतीय सेना की पूर्वी कमांड के डॉग डच की 11 सितंबर 2019 को मौत हो गई। भारतीय सेना का डॉग डच का जन्म 3 अप्रैल 2010 को मेरठ के आरवीसी सेंटर एंड कॉलेज में हुआ था। ये भारतीय सेना का सबसे अहम डॉग था। डच ने 9 साल तक देश की सेवा की। उसने इस दौरान कई बार बड़े विस्फोटक खोजकर बड़े हादसे होने से बचाया। खासकर आतंक विरोधी अभियान में उसने कमाल की भूमिका निभाई। डच विस्फोटक सामग्री को सूंघकर खोजने में विशेषज्ञ था। उसने पूर्वी कमांड के लिए कई अहम ऑपरेशन में अहम भूमिका निभाई। डच को दो बार ईस्टर्न कमांड की ओर से सम्मानित किया गया।
उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के विकास का केंद्र सरकार में जिम्मा संभाल रहे मंत्री सिंह ने अपने ट्विटर अकाउंट के जरिए लिखा, '11 सितंबर को मौत के मुंह में समा जाने वाले 9 साल के डच डॉग के प्रति आर्मी ईस्टर्न कैडर शोक संवदेना व्यक्त करती है। वह पूर्वी कमांड की ओर से पदक से सम्मानित डॉग था, जिसने कई सीआई/सीटी ऑपरेशनों में आईईडी की पहचान करने में खास भूमिका निभाई थी। राष्ट्र की सेवा करने वाले एक असली नायक को सैल्यूट।'
#Condolence#ArmyCdrEC condoles the death of '#Dutch' a 9 yr old ED #Dog who died on 11 Sept. He was a decorated dog of #EasternCommand who was instrumental in identifying IEDs in various CI/CT Ops. A real hero in service to the nation. #Salute @adgpi pic.twitter.com/HJPKPrEhLv
— Dr Jitendra Singh (@DrJitendraSingh) September 14, 2019
दिसंबर 2014 में असम के गोलपारा में एक पब्लिक बस में 6 किग्रा आईईडी का पता लगाया था और एक बड़ी दुर्घटना होने से बचाया। इसी तरह नवंबर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के असम दौरे से पहले अलीपुरद्वार में कामाख्या एक्सप्रेस के एक कोच में 7 किग्रा आईईडी विस्फोटक का पता लगाकर डच ने कई जिंदगियों को बचाया था।
दिया जाता है एनिमल यूथेनेशिया
खास बात यह है कि इन डॉग्स को तब तक जिंदा रखा जाता है, जब तक ये काम करते रहते हैं. जब कोई डॉग एक महीने से अधिक समय तक बीमार रहता है या किसी कारणवश ड्यूटी नहीं कर पाता है तो उसे जहर देकर (एनिमल यूथेनेशिया) मार दिया जाता है.