दीवाली विशेष : माता सीता से जुडी रोचक बातें

By: Ankur Tue, 10 Oct 2017 4:07:13

दीवाली विशेष : माता सीता से जुडी रोचक बातें

माता सीता रामायण और रामकथा पर आधारित अन्य रामायण ग्रंथ, जैसे रामचरितमानस, की मुख्य पात्र है। सीता मिथिला के राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री थी। इनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र राम से स्वयंवर में शिवधनुष को भंग करने के उपरांत हुआ था। इनकी स्त्री व पतिव्रता धर्म के कारण इनका नाम आदर से लिया जाता है| त्रेतायुग में इन्हे सौभाग्य की देवी लक्ष्मी का अवतार मानते है।

रामायण के अनुसार मिथिला के राजा जनक का खेतों में हल जोतते समय हल एक पेटी से अटका। राजा जनक ने सीता को उस पेटी में पाया था। हल को मैथिली भाषामे 'सीत' कहने के कारण इनका नाम सीता पडा। राजा जनक और रानी सुनयना ने इनकी परवरिश की।

राजा जनक की पुत्री होने के कारण इन्हे जानकी, जनकात्मजा अथवा जनकसुता भी कहते थे। मिथिला की राजकुमारी होने के कारण यें मैथिली नाम से भी प्रसिद्ध है। भूमि मे पाये जाने के कारण इन्हे भूमिपुत्री या भूसुता भी कहा जाता है।

कुछ समय उपरांत महाराज जनक ने सीता स्वयंवर की घोषणा किया और ऋषि विश्वामित्र की उपस्थिति हेतु निमंत्रण भेजा। आश्रम में राम व लक्ष्मण उपस्थित के कारण वे उन्हें भी मिथिपलपुरी साथ ले गये। महाराज जनक ने उपस्थित ऋषिमुनियों के आशिर्वाद से स्वयंवर के लिये शिवधनुष उठाने के नियम की घोषणा की। सभा में उपस्थित कोइ राजकुमार, राजा व महाराजा धनुष उठाने में विफल रहे। श्रीरामजी ने धनुष को उठाया और उसका भंग किया। इस तरह सीता का विवाह श्रीरामजी से निश्चय हुआ।

कन्यादान के समय राजा जनक ने श्रीरामजी से कहा "हे कौशल्यानंदन राम! ये मेरी पुत्री सीता है। इसका पाणीग्रहण कर अपनी के पत्नी के रूप मे स्वीकर करो। यह सदा तुम्हारे साथ रहेगी।" इस तरह सीता व रामजी का विवाह अत्यंत वैभवपूर्ण संपन्न हुआ। विवाहोपरांत सीता अयोध्या आई और उनका दांपत्य जीवन सुखमय था।

राजा दशरथ अपनी पत्नी कैकेयी को दिये वचन के कारण श्रीरामजी को चौदह वर्ष का वनवास हुआ। श्रीरामजी व अन्य बडों की सलाह न मानकर अपने पति से कहा "मेरे पिता के वचन के अनुसार मुझे आप के साथ ही रहना होगा। मुझे आप के साथ वनगमन इस राजमहल के सभी सुखों से अधिक प्रिय हैं।" इस प्रकार राम व लक्ष्मण के साथ वनवास चली गयी।

diwali,facts about goddess sita,ram sita,diwali special,diwali special 2017 ,दीवाली,सीता जी से जुडी बातें

अपने पति श्री राम व देवर लक्ष्मण के साथ माता सीता ने चित्रकूट पर्वत स्थित मंदाकिनी तट पर अपना वनवास किया। इसी समय भरत अपने बडे भाई श्रीरामजी को मनाकर अयोध्या ले जाने आये। अंतमे वे श्रीरामजी की पादुका लेकर लौट गये। इसके बाद वे सभी ऋषि अत्री के आश्रम गये। सीता ने देवी अनसूया की पूजा की। देवी अनसूया ने सीता को पतिव्रता धर्म का विस्तारपूर्वक उपदेश के साथ चंदन, वस्त्र, आभूषणादि प्रदान किया। इसके बाद कई ऋषि व मुनि के आश्रम गये, दर्शन व आशिर्वाद पाकर वे पवित्र नदी गोदावरी तट पर पंचवटी मे वास किया।

पंचवटी मे लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा "सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है।" रावण ने अपने मामा मारीच के साथ मिलकर सीता अपहरण की योजना रची। इसके अनुसार मारीच सोने के हिरण का रूप धर राम व लक्ष्मण को वन मे ले जायेगा और उनकी अनुपस्थिति मे रावण सीता का अपहरण करेगा। अपहरण के बाद आकाश मार्ग से जाते समय पक्षीराज जटायु के रोकने पर रावण ने उसके पंख काट दिये।

जब कोई सहायता नहीं मिली तो सीताजी ने अपने पल्लू से एक भाग निकालकर उसमें अपने आभूषणों को बांधकर नीचे डाल दिया। नीचे वनमे कुछ वानरों ने इसे अपने साथ ले गये।

रावण ने सीता को लंकानगरी के अशोकवाटिका में रखा और त्रिजटा के नेतृत्व मे कुछ राक्षसियों को उसकी देख-रेख का भार दिया।

सीताजी से बिछडकर रामजी दु:खी हुए और लक्ष्मण सहित उनकी वन-वन खोज करते जटायु तक पहुंचे। जटायु उन्हें सीताजी को रावण दक्षिण दिशा की ओर लिये जाने की सूचना देकर प्राण त्याग दिया। राम ने जटायु की अंतिम संस्कार कर लक्ष्मण सहित दक्षिण दिशा में चले। आगे चलते वे दोनों हनुमानजी से मिले जो उन्हें ऋष्यमुख पर्वत पर स्थित अपने राजा सुग्रीव से मिलाया। रामजी संग मैत्री के बाद सुग्रीव ने सीताजी के खोजमें चारों ओर वानरसेना की टुकडियाँ भेजी। वानर राजकुमार अंगद की नेतृत्व मे दक्षिण की ओर गई टुकडी मे हनुमान, नील, जांबवंत प्रमुख थे और वे दक्षिण स्थित सागर तट पहुंचे। तटपर उन्हें जटायु का भाई संपाति मिला जो उन्हे सूचना दी कि सीता लंका स्थित एक वाटिका मे है।

हनुमानजी समुद्र लाँघकर लंका पहुँचे, लंकिणी को परास्त कर नगर में प्रवेश किया। वहाँ सभी भवन और अंतःपुर में सीता माता को न पाकर वे अत्यंत दुःखी हुए। अपने प्रभु श्रीरामजी को स्मरण व नमन कर अशोकवाटिका पहुंचे। वहाँ 'धुएँ के बीच चिंगारी' की तरह राक्षसियों के बीच एक तेजस्विनी स्वरूपा को देख सीताजी को पहचाना और हर्षित हुए।

उसी समय रावण वहाँ पहुँचा और सीता से विवाह का प्रस्ताव किया। सीता ने घास के एक टुकडे को अपने और रावण के बीच रखा और कहा "हे रावण! सूरज और किरण की तरह राम-सीता अभिन्न है। राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति मे मेरा अपहरण कर तुमने अपनी कायरता का परिचय और राक्षसजाती की विनाश को आमंत्रण दिया है। रघुवंशीयों की वीरता से अपरचित होकर तुमने ऐसा दुस्साहस किया है। तुम्हारे श्रीरामजी की शरण मे जाना इस विनाश से बचने का एक मात्र उपाय है। अन्यथा लंका विनाश निश्चित है।" इससे निराश रावण ने राम को लंका आकर सीता को मुक्त करने को दो माह की अवधी दी। इसके उपरांत रावण व सीता का विवाह निश्चिय है। रावण के लौटने पर सीताजी बहुत दु:खी हुई।

उसके जाने के बाद हनुमान सीताजी के दर्शन कर अपने लंका आने का कारण बताते है। सीताजी राम व लक्ष्मण की कुशलता पर विचारण करती है। श्रीरामजी की मुद्रिका देकर हनुमान कहते है कि वे माता सीता को अपने साथ श्रीरामजी के पास लिये चलते है। सीताजी हनुमान को समझाती है कि यह अनुचित है। रावण ने उनका हरण कर रघुकुल का अपमान किया है। अत: लंका से उन्हें मुक्त करना श्रीरामजी का कर्तव्य है। विशेषतः रावण के दो माह की अवधी का श्रीरामजी को स्मरण कराने की विनती करती हैं।

हनुमानजी ने रावण को अपनी दुस्साहस के परिणाम की चेतावनी दी और लंका जलाया। माता सीता से चूडामणि व अपनी यात्रा की अनुमति लिए चले। सागरतट स्थित अंगद व वानरसेना लिए श्रीरामजी के पास पहुँचे। माता सीता की चूडामणि दिया और अपनी लंका यात्रा की सारी कहानी सुनई। इसके बाद राम व लक्ष्मण सहित सारी वानरसेना युद्ध के लिए तैयार हुआ।

diwali,facts about goddess sita,ram sita,diwali special,diwali special 2017 ,दीवाली,सीता जी से जुडी बातें

माँ सीता कि जिंदगी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य...

# वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब राजा जनक यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय उन्हें भूमि से एक कन्या प्राप्त हुई। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को सीता कहते हैं। इसलिए इस बालिका का नाम सीता रखा गया।

# श्रीराम से विवाह के समय सीता की आयु 6 वर्ष थी, इसका प्रमाण वाल्मीकि रामायण के अरण्यकांड में इस प्रसंग से मिलता है।

# श्रीरामचरित मानस के अनुसार वनवास के दौरान श्रीराम के पीछे-पीछे सीता चलती थीं। चलते समय सीता इस बात का विशेष ध्यान रखती थीं कि भूल से भी उनका पैर श्रीराम के चरण चिह्नों (पैरों के निशान) पर न रखाएं। श्रीराम के चरण चिह्नों के बीच-बीच में पैर रखती हुई सीताजी चलती थीं।

# वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण ने सीता का हरण अपने रथ से किया था। रावण का यह दिव्य रथ सोने का बना था, इसमें गधे जूते थे और वह गधों के समान ही शब्द (आवाज) करता था।

# जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई। ये प्रसंग वाल्मीकि रामायण में मिलता है।

# मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को श्रीराम व सीता का विवाह हुआ था। हर साल इस तिथि पर श्रीराम-सीता के विवाह के उपलक्ष्य में विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह प्रसंग श्रीरामचरित मानस में मिलता हैं।

हम WhatsApp पर हैं। नवीनतम समाचार अपडेट पाने के लिए हमारे चैनल से जुड़ें... https://whatsapp.com/channel/0029Va4Cm0aEquiJSIeUiN2i

Home | About | Contact | Disclaimer| Privacy Policy

| | |

Copyright © 2024 lifeberrys.com