राजस्थान में एक बार फिर शिक्षा व्यवस्था प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे 2023 के अनुरूप भले ही कक्षा 1 से 5 तक के सिलेबस में व्यापक बदलाव कर दिए गए हों, लेकिन किताबें समय पर स्कूलों तक नहीं पहुंच पाई हैं। नया शिक्षा सत्र 1 जुलाई से शुरू हो गया है, पर अब तक लाखों छात्रों के हाथ में किताबें नहीं आई हैं, जिससे शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक सभी असमंजस में हैं।
नए सत्र में सिलेबस तो बदला, लेकिन किताबें नदारद
राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, उदयपुर द्वारा तैयार नए सिलेबस में बच्चों को भारतीय संस्कृति, सनातन परंपरा, देशभक्त वीरों की प्रेरणादायक कहानियों से जोड़ने की कोशिश की गई है। साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, सूचना प्रौद्योगिकी और उद्यमिता जैसे विषय भी जोड़े गए हैं। किताबों के नाम भी आधुनिक सोच और बदले पाठ्यक्रम के अनुरूप रखे गए हैं। लेकिन यह नया ढांचा कागजों तक सीमित रह गया है क्योंकि किताबें स्कूलों तक नहीं पहुंच पाईं।
राज्य सरकार के दावे और ज़मीनी हकीकत में अंतर
शिक्षामंत्री मदन दिलावर ने दावा किया है कि 40% किताबें स्कूलों तक पहुंच गई हैं और शेष 15 जुलाई तक पहुंचा दी जाएंगी। पर ज़मीनी हकीकत इससे काफी अलग है। सरकारी स्कूलों के अलावा निजी स्कूलों में भी किताबों की भारी कमी है। कहीं किताबें आधी-अधूरी हैं तो कहीं सिलेबस के अभाव में पुरानी किताबों से काम चलाया जा रहा है। ऐसे में छात्र नए पाठ्यक्रम को समझ ही नहीं पा रहे।
छपाई और सीडी में देरी बनी वजह
शिक्षा विभाग के अनुसार, सिलेबस में बदलाव को अंतिम रूप देने में देरी हुई। लेखकों और विषय विशेषज्ञों की समिति को नए पाठ्यक्रम की समीक्षा में काफी समय लगा, जिससे अप्रैल के बाद ही छपाई की प्रक्रिया शुरू हो सकी। वहीं, प्रकाशकों को किताबों की सामग्री वाली सीडी देर से दी गई, जिससे छपाई और वितरण का पूरा कार्यक्रम डगमगा गया।
शिक्षकों और अभिभावकों की चिंता बढ़ी
कई स्कूलों में शिक्षकों को पुरानी किताबों और डिजिटल संसाधनों से पढ़ाना पड़ रहा है, लेकिन यह नया पाठ्यक्रम पूरी तरह कवर नहीं कर पा रहा। दूसरी ओर, अभिभावक चिंतित हैं कि पढ़ाई के शुरुआती दिन ही बर्बाद हो रहे हैं। निजी स्कूलों में किताबें बाजार से उपलब्ध नहीं हैं, जिससे बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ अभिभावकों का खर्च भी बढ़ रहा है।
राजस्थान सरकार ने कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए नए सिलेबस के अनुरूप पाठ्यपुस्तकों के नामों में भी बदलाव किया है, ताकि विषयवस्तु और शीर्षक दोनों आधुनिक और नीति-संगत दिखें। कक्षा 1 और 2 के लिए हिंदी की पुस्तक का नाम 'नन्हें कदम', अंग्रेजी की किताब का नाम 'लिटिल लर्नर्स', और गणित की पुस्तक का नाम क्रमशः 'गिनती का खेल' और 'गिनती का खेल भाग 2' रखा गया है। इन दोनों कक्षाओं के लिए पर्यावरण विषय शामिल नहीं किया गया है।
कक्षा 3, 4 और 5 के लिए हिंदी की किताब का नाम 'हिंदी सुमन' है, जबकि अंग्रेजी की किताब को 'स्टेप इनटू इंग्लिश' नाम दिया गया है। इन तीनों कक्षाओं में गणित की पुस्तक का नाम 'इकतारा' है और पर्यावरण विषय के लिए 'हमारा परिवेश' नामक किताब निर्धारित की गई है। इन बदले हुए नामों और विषयों के माध्यम से बच्चों को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे 2023 के अनुरूप समग्र और समसामयिक ज्ञान प्रदान करने की कोशिश की गई है।
शिक्षकों का कहना – बिना किताब के क्या पढ़ाएं?
राजस्थान पंचायती राज एवं माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेशाध्यक्ष शेर सिंह चौहान का कहना है कि अधिकांश स्कूलों में अभी तक नि:शुल्क किताबें नहीं पहुंचीं। बच्चों के पास किताबें न होने से स्कूलों में पढ़ाई का माहौल ही नहीं बन पा रहा। यह स्थिति शैक्षणिक गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर डाल रही है।
सरकार को घेर रहे अभिभावक और शिक्षक संगठन
शिक्षा के अधिकार की बात करने वाली सरकार पर अब अभिभावक और शिक्षक संगठन सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि जब सिलेबस में बदलाव की योजना पहले से थी, तो किताबें समय पर क्यों नहीं पहुंचाई गईं? शिक्षा सत्र के पहले दिन से ही किताबें नहीं मिलना प्रशासनिक विफलता को उजागर करता है।
राजस्थान सरकार की मंशा नई शिक्षा नीति के अनुसार बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की है, लेकिन अमल के स्तर पर भारी खामियां सामने आ रही हैं। जब तक किताबें समय पर नहीं मिलतीं, तब तक किसी भी सुधार का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं रह जाता। यह आवश्यक है कि शिक्षा विभाग इस देरी से सबक ले और भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने की ठोस योजना बनाए।