जयपुर। राजस्थान में बीते 10 दिनों के भीतर सेप्टिक टैंक और गटर की सफाई के दौरान 11 सफाईकर्मियों की दर्दनाक मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि सरकार की कामकाज की संवेदनशीलता और प्राथमिकता पर भी सवाल खड़े करता है।
ताजा हादसा: जयपुर के सीतापुरा में चार मौतें
जयपुर के सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र स्थित अचल ज्वैलर्स प्राइवेट लिमिटेड में सोमवार रात एक सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान चार सफाईकर्मियों की जहरीली गैस से दम घुटने के कारण मौत हो गई। टैंक करीब 10 फीट गहरा था, जहां मजदूर मिट्टी से सोना निकालने उतरे थे।
इसके अतिरिक्त चार अन्य मजदूर बेहोश हो गए, जिनमें से दो की हालत गंभीर है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
पिछले 10 दिन में कहां-कहां हुईं मौतें?
—डीग, भरतपुर
—बीकानेर
—जयपुर (सीतापुरा)
इन घटनाओं में कुल मिलाकर 11 मजदूरों की जान चली गई, जिनमें से अधिकांश सुरक्षा उपकरणों के बिना काम कर रहे थे।
अशोक गहलोत का तीखा वार
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने भजनलाल शर्मा सरकार पर सवाल उठाते हुए लिखा, “पिछले 10 दिन में डीग, बीकानेर और अब जयपुर में 11 सफाईकर्मियों की जान चली गई। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार को इन लोगों की कोई परवाह नहीं है। बजट में मशीनों से सफाई का वादा किया गया था, लेकिन अब तक वह सिर्फ कागजों में ही है। आखिर कब टूटेगी सरकार की नींद?”
गहलोत ने साफ कहा कि यह न केवल प्रशासनिक लापरवाही है बल्कि मानवाधिकारों की भी खुली अवहेलना है।
डोटासरा की मांग—“दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो”
राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ने भी सरकार पर निशाना साधा और कहा: “यह हादसा सरकार की घोर लापरवाही और सफाईकर्मियों की सुरक्षा के लिए बने नियमों की अनदेखी का नतीजा है। बार-बार इस तरह की घटनाएं हो रही हैं और सरकार बेपरवाह है। हम मांग करते हैं कि इस हादसे की जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए।”
सरकार की घोषणाएं बनाम ज़मीनी हकीकत
राज्य सरकार द्वारा बजट में यह घोषणा की गई थी कि सेप्टिक टैंक की सफाई मशीनों द्वारा की जाएगी, ताकि मानव-जनित जोखिम को समाप्त किया जा सके। लेकिन अब तक मशीनरी खरीदी या उपयोग की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी है। नतीजा, मजदूरों को जान जोखिम में डालकर गटरों में उतरना पड़ रहा है।
कानून क्या कहता है?
भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) को 2013 में निषिद्ध किया गया था और इसके लिए कड़ा दंड भी निर्धारित है। फिर भी वास्तविकता यह है कि आज भी देशभर में, खासकर छोटे कस्बों और औद्योगिक इलाकों में, मजदूरों को बिना सुरक्षा उपकरणों के गटर और सेप्टिक टैंक में उतारा जाता है।
सरकार की प्रतिक्रिया क्या है?
अब तक भजनलाल सरकार की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। न तो किसी मंत्री का बयान आया, और न ही कोई औपचारिक जांच समिति की घोषणा की गई है।
यह चुप्पी, सरकार की संवेदनशीलता और उत्तरदायित्व पर गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाती है।
क्या मांगें उठ रही हैं?
1. हर जिले में सेप्टिक सफाई के लिए मशीनों की अनिवार्यता
2. सफाईकर्मियों के लिए बीमा और स्वास्थ्य सुरक्षा योजना
3. अत्याधुनिक सुरक्षा किट का वितरण और प्रशिक्षण
4. प्राइवेट फैक्ट्रियों पर निगरानी और जवाबदेही
5. पीड़ित परिवारों को तत्काल मुआवजा
यह सिर्फ मौतें नहीं, हमारी संवेदना की परीक्षा है
राजस्थान में सफाईकर्मियों की एक के बाद एक हो रही मौतें बताती हैं कि सिस्टम अभी भी श्रम के सबसे निचले तबके के लिए असंवेदनशील बना हुआ है। यह केवल राजनीतिक बयानबाजी का नहीं, बल्कि एक मानवीय आपातकाल का मामला है।
अब ज़रूरत है जागरूकता से ज़्यादा जवाबदेही की, और वादों से ज़्यादा ज़मीनी क्रियान्वयन की।