देश की सर्वोच्च अदालत ने छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित ₹2,000 करोड़ के शराब घोटाले में आरोपी व्यवसायी अनवर धेबर को बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामलों में जमानत के लिए एक साल जेल में रहना कोई कानूनी शर्त नहीं है। न्यायमूर्ति अभय एस। ओका और उज्जल भूइयां की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए अनवर धेबर को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
अनवर धेबर को अगस्त 2024 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गिरफ्तार किया था और वे पिछले नौ महीनों से जेल में थे। अदालत ने कहा कि इस मामले में अभी सुनवाई शुरू होने की कोई संभावना नहीं दिख रही है क्योंकि जांच अब भी जारी है और गवाहों की संख्या भी काफी अधिक है।
450 गवाह, लंबी प्रक्रिया, जल्द सुनवाई की संभावना नहीं
अदालत ने कहा, “इस मामले में 450 गवाह हैं, और अभी तक मूल अपराध (predicate offence) में संज्ञान तक नहीं लिया गया है। ऐसे में निकट भविष्य में ट्रायल शुरू होने की कोई संभावना नहीं दिखती। इस आरोप में अधिकतम सजा 7 साल है, इसलिए अभियुक्त को सख्त शर्तों पर जमानत दी जाती है।”
सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही ये भी निर्देश दिया कि अनवर धेबर अपना पासपोर्ट सरेंडर करें और विशेष अदालत द्वारा तय की गई शर्तों का पालन करें।
ED की आपत्ति, लेकिन कोर्ट ने ठुकराई
ED ने अदालत से निवेदन किया कि अभियुक्त को अभी जमानत न दी जाए क्योंकि उनकी गिरफ्तारी को अभी एक साल भी नहीं हुआ है। ईडी के वकील ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में एक साल की हिरासत को ‘मानक’ (benchmark) की तरह माना है और इसी आधार पर धेबर की जमानत याचिका खारिज होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि धेबर एक राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्ति हैं और जमानत मिलने से ट्रायल प्रभावित हो सकता है।
हालांकि, कोर्ट ने यह दलील मानने से इनकार कर दिया और कहा कि “एक साल की हिरासत कोई कानूनी शर्त नहीं है।” साथ ही विशेष अदालत को एक सप्ताह के भीतर धेबर को रिहा करने का आदेश दिया गया।
कौन हैं अनवर धेबर?
अनवर धेबर, रायपुर के मेयर और कांग्रेस नेता एजाज धेबर के भाई हैं। उन्हें सबसे पहले जुलाई 2023 में आयकर विभाग की छानबीन के बाद गिरफ्तार किया गया था। ईडी के अनुसार, छत्तीसगढ़ और कुछ अन्य राज्यों में चल रहे शराब व्यापार में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं और टैक्स चोरी हुई, जिससे राज्य सरकार के राजस्व को नुकसान पहुंचा।
ईडी की चार्जशीट में दावा किया गया है कि 2019 में शुरू हुए इस घोटाले में ₹2,161 करोड़ की अवैध कमाई हुई, जो राज्य के खजाने में जानी चाहिए थी। इस कथित घोटाले में कई वरिष्ठ नौकरशाह, राजनेता और आबकारी विभाग के अधिकारी शामिल बताए गए हैं।