जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक अमेरिका की अपनी यात्रा से लौटने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने हिमालयी ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि भारत को इस गंभीर मुद्दे के समाधान के लिए आगे आना चाहिए, क्योंकि यदि ग्लेशियरों को संरक्षित नहीं किया गया, तो 144 साल बाद अगला महाकुंभ संभवतः सूखी नदी के रेतीले तटों पर आयोजित करना पड़ेगा।
अमेरिका तक पहुंचाया हिमालय का बर्फ
सोनम वांगचुक लद्दाख के खारदुंगला ग्लेशियर से बर्फ का एक टुकड़ा लेकर दिल्ली और फिर अमेरिका गए। इसे लद्दाख की प्रसिद्ध पश्मीना ऊन में इन्सुलेट कर विशेष कंटेनर में रखा गया था। इस बर्फ को पहले संयुक्त राष्ट्र (UN) के दिल्ली कार्यालय में ले जाया गया, फिर यह अमेरिका भेजा गया।
जलवायु संरक्षण का अनूठा संदेश
अमेरिका में वांगचुक ने यह ग्लेशियर का टुकड़ा हार्वर्ड केनेडी स्कूल, एमआईटी, बोस्टन और न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय तक पहुंचाया। इसके बाद 21 फरवरी को न्यूयॉर्क में हडसन नदी और ईस्ट रिवर के संगम पर इसे विसर्जित कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। यह आयोजन 21 मार्च को मनाए जाने वाले विश्व ग्लेशियर दिवस से ठीक एक महीने पहले किया गया, ताकि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर दुनिया का ध्यान केंद्रित किया जा सके।
2025: ग्लेशियर संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय वर्ष
संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने 2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया है। इस अवसर पर जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे खुले पत्र में भारत की अग्रणी भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हिमालय, आर्कटिक और अंटार्कटिका के बाद पृथ्वी का तीसरा सबसे बड़ा बर्फ भंडार है, जिसे ‘तीसरा ध्रुव’ कहा जाता है। इसलिए, भारत को इस मुद्दे पर वैश्विक नेतृत्व करना चाहिए।
गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु पर मंडराता संकट: वांगचुक की चेतावनी
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि हिमालय भारत की जीवनरेखा है, क्योंकि यहीं से गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी नदियां जन्म लेती हैं। वांगचुक के अनुसार, यदि वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन की अनदेखी जारी रही, तो आने वाले दशकों में ये पवित्र नदियां मौसमी नदियों में बदल सकती हैं।
वांगचुक की चेतावनी: अगला महाकुंभ सूखी नदी के किनारे हो सकता है
पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने आशंका जताई है कि यदि ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और वनों की कटाई जारी रही, तो भविष्य में महाकुंभ किसी पवित्र नदी के प्रवाह पर नहीं, बल्कि उसके सूखे रेतीले अवशेषों पर आयोजित करना पड़ सकता है। उन्होंने इस गंभीर पर्यावरणीय संकट पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आम लोगों में इस मुद्दे को लेकर जागरूकता की भारी कमी है। वांगचुक ने सरकार से हिमालयी ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने की अपील की और कहा, "अब समय आ गया है कि भारत इस क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व करे।"