केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) द्वारा कक्षा 10 के लिए दो स्तरों में बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करने के प्रस्ताव पर बहस तेज हो गई है। इस नई प्रणाली के तहत 2026 से कक्षा 9 और 2028 से कक्षा 10 के छात्रों को दो बोर्ड परीक्षाओं का विकल्प मिलेगा। पहली परीक्षा 17 फरवरी से 6 मार्च और दूसरी 5 मई से 20 मई के बीच आयोजित की जाएगी। हालांकि, इस फैसले को लेकर अभिभावकों और शिक्षा विशेषज्ञों के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं।
छात्रों पर बढ़ेगा दबाव
दिल्ली पेरेंट्स एसोसिएशन के अनुसार, बोर्ड द्वारा दी गई दो परीक्षाओं के बीच लंबा अंतराल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और उनकी पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। परीक्षा के दबाव के चलते कई छात्र तनाव में आ सकते हैं, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।
शैक्षणिक सत्र पर असर
संघ का मानना है कि मई में दूसरी परीक्षा आयोजित होने से शैक्षणिक सत्र लंबा हो जाएगा। अगर कक्षा 10 के परिणाम 30 जून तक घोषित किए जाते हैं, तो कक्षा 11 में प्रवेश प्रक्रिया देर से शुरू होगी। इससे छात्रों को नए स्कूल में दाखिला लेने में कठिनाई होगी और उन्हें अप्रैल, मई और जून की फीस भरनी पड़ेगी, जबकि पढ़ाई जुलाई से शुरू होगी।
कोचिंग कल्चर को मिलेगा बढ़ावा
अभिभावकों का मानना है कि इस नई प्रणाली से कोचिंग संस्थानों का प्रभाव बढ़ेगा। दो परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए छात्र कोचिंग पर अधिक निर्भर हो सकते हैं, जिससे उनकी शिक्षा का खर्च बढ़ सकता है। यह खासतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए चिंता का विषय बन सकता है।
परीक्षा शुल्क को लेकर चिंता
भारत में लगभग 30,000 CBSE स्कूल हैं, जिनमें से कई में आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के छात्र पढ़ते हैं। दो परीक्षाओं के लिए अलग-अलग शुल्क लेने की योजना छात्रों और उनके अभिभावकों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ डाल सकती है।
ड्रॉपआउट दर में बढ़ोतरी की आशंका
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पहले से ही कक्षा 10 और 12 के बीच करीब 6.2 लाख छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं। अगर शैक्षणिक प्रणाली में बदलाव से छात्रों पर अतिरिक्त दबाव बढ़ता है, तो ड्रॉपआउट दर और बढ़ सकती है।
माता-पिता संघ की मुख्य मांगें
- बोर्ड परीक्षाएं जनवरी-फरवरी में कराई जाएं ताकि शैक्षणिक सत्र लंबा न हो और छात्रों को अतिरिक्त तनाव न झेलना पड़े।
- आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों से परीक्षा शुल्क न लिया जाए, ताकि उन्हें वित्तीय बोझ से बचाया जा सके।
- कोचिंग कल्चर को खत्म करने के लिए कदम उठाए जाएं ताकि छात्र स्कूलों में दी जाने वाली शिक्षा पर निर्भर रह सकें।
- कक्षा 11 का पाठ्यक्रम समय पर पूरा करने के लिए उचित योजना बनाई जाए, ताकि छात्रों को पर्याप्त पढ़ाई का समय मिल सके।
CBSE की इस नई नीति पर अभी विचार चल रहा है। माता-पिता संघ द्वारा उठाई गई चिंताओं को देखते हुए बोर्ड इन सुझावों पर पुनर्विचार कर सकता है। अब देखना यह होगा कि इस फैसले को अंतिम रूप देने से पहले छात्रों के हितों को कितना ध्यान में रखा जाएगा।