परवरिश के दौरान ना करें ये गलतियां, बच्चों पर पड़ता हैं नकारात्मक प्रभाव

By: Ankur Thu, 28 July 2022 12:13:36

परवरिश के दौरान ना करें ये गलतियां, बच्चों पर पड़ता हैं नकारात्मक प्रभाव

बच्चों की परवरिश करना कोई आसान काम नहीं हैं। पेरेंट्स के सामने यह एक बड़ी जिम्मेदारी होती हैं कि बच्चों को अच्छी परवरिश देते हुए उनका सामाजिक, मानसिक और बौद्धिक विकास किया जाए। लेकिन कई बार परवरिश के दौरान कुछ गलतियां ऐसी हो जाती हैं जिसका बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता हैं। हांलाकि परवरिश की कोई परिभाषा नहीं हैं लेकिन कुछ चीजें ऐसी हैं जिनपर जरूर ध्यान देने की जरूरत होती हैं। कई मौके आते हैं जब आप खुद को परवरिश के तौर पर खुद को असफल महसूस पाते हैं। इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कि किन बातों का ध्यान रखकर आप अच्छे पैरेंट्स साबित हो सकते हैं। आइये जानते हैं परवरिश से जुड़ी ये जरूरी बातें...

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प्रतिस्पर्धा से ज्यादा जरूरी काबिलियत

आपका बच्चा पढ़ाई में कमजोर है या फिर किसी खास विषय में उसके नंबर कम आते हैं। लेकिन एक माता-पिता होने के नाते अगर आप उसे किसी खास स्ट्रीम में दाखिला दिलाने के लिए जोर जबरदस्ती करके पढाते हैं या फिर प्रतिस्पर्धा का डर दिखाते हैं। उसकी तुलना बाकी बच्चों से करते हैं। ऐसे में बच्चे में मन में खुद के प्रति नकारात्मक भाव जाग जाते हैं। उसे लगता है कि वो वाकई में किसी काबिल नही है। ऐसे में वो स्ट्रेस और डिप्रेशन से पीड़ित हो सकता है। उसका आत्मविश्वास खोएगा और वो अपने पसंदीदा विषय में भी कमजोर हो जाएगा।

उन पर गर्व करें, कोसे नहीं

मां-बाप बनने के एहसास से खूबसूरत कोई एहसास नहीं होता है। यह हर किसी की जिंदगी में किसी तोहफे से कम नहीं होता है। आप खुद को खुशकिस्मत समझिए और अपने बच्चे को भी ऐसा ही महसूस कराइए। कई लोग कुछ वजहों से मां-बाप नहीं बन पाते हैं और उनकी सबसे बड़ी ख्वाहिश यही रह जाती है कि उनकी भी कोई औलाद हो। इसलिए कभी भी अपने बच्चों पर अफसोस ना करें और ना ही अपने बच्चों के अंदर ऐसी भावनाएं पनपने दें।

जरूरत से ज्यादा सपोर्ट ना करें

कुछ माता पिता बच्चों को जरूरत से ज्यादा प्रोटेक्ट करते हैं। जिसका नतीजा होता है कि वो हर छोटी चीज के लिए भी माता पिता पर निर्भर रहता है। ऐसे में उसके अंदर का आत्विश्वास कम होता है। उसे लगता है कि वो कोई भी काम बिना पैरेंट्स की मदद के नहीं कर सकता। ऐसे बच्चे आगे चलकर जीवन की छोटी समस्याओं को भी हल करने में खुद को असमर्थ महसूस करते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाएं।


बच्चों की भावनाओं को समझें

बच्चा जब कुछ अपने पैरेंट्स से कहना चाहता है या फिर अपनी भावनाएं जाहिर करना चाहता है। तो उसे डांट दिया जाता है। या फिर उसकी बातों को गलत साबित कर दिया जाता है। किसी भी तरह के निष्कर्ष से पहले जरूरी है कि आप अपने बच्चे की भावनाओं को समझें। इसके लिए पहले उसकी बातों को सुनना होगा। तभी आप उसके अंदर की भावनाओं को समझ पाएंगे।



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कभी भी उनकी तुलना ना करें

यह एक जुर्म है कि आप अपने बच्चे की तुलना किसी और से करती हैं। चाहे वे आपके बच्चे के दोस्त हों, भाई-बहन हों या फिर कोई और। आपको यह समझना चाहिए कि हर बच्चा अपने आप में खास होता है। हर बच्चे के अलग सपने और सोच हो सकती है और यह पैरेंट्स का काम है कि वे उनकी भावनाओं और सपनों का सम्मान करें। अगर आप अपने बच्चे को किसी से कमतर बताते हैं तो वह धीरे-धीरे हीनभावना का शिकार हो सकता है और उसका आत्मविश्वास कमजोर होने लगता है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप अपने बच्चे को उसी रूप में स्वीकार करें जैसे वो हैं।

जरूरत से ज्यादा ना करें कंट्रोल

बहुत सारे माता-पिता बच्चों को जरूरत से ज्यादा कंट्रोल करते हैं। इसके लिए वो बच्चों को डराने धमकाने के साथ ही शर्त लागू करते हैं। हर नियम को तोड़ने पर सजा निर्धारित करते हैं। जिसे सख्ती से लागू करते हैं। ऐसे में बच्चा डरा हुआ या फिर किसी भी काम को करने के लिए खुद में विश्वास नहीं जगा पाता। उसे किसी भी काम को मुश्किल होती है और सजा का डर बन जाता है।

कभी भी उन्हें कड़ी सजा ना दें

जो बच्चा गलतियां ना करें, शरारत ना करें, वह बच्चा बच्चा नहीं है। इसका यह मतलब नहीं है कि आप उनकी हर गलती पर आंख मूंद लें। बस बात इतनी है कि उन्हें सजा और डांट एक अनुपात में हो। किसी भी परिस्थिति में उन्हें शारीरिक रूप से सजा ना दें। अपना सम्मान खोने के साथ-साथ बच्चों को पीटना उन्हें हिंसक बना देती हैं। आपका बच्चा दूसरों से भी मारपीट करना शुरू कर देगा और उसके अंदर आक्रामकता बढ़ती जाएगी। अपने बच्चों को सबक सिखाने के लिए दूसरे तरीकों का इस्तेमाल करें लेकिन उन्हें मारें-पीटे नहीं।

खुद के काम में ना रहें उलझे

आजकल की बिजी लाइफ में पेरेंट्स अपने दफ्तर के कामों में ही व्यस्त रहते हैं। इन सबके कारण वे अपने बच्चों पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते। जब माता-पिता दफ्तर जाते हैं इस बीच बच्चे घर पर अकेले होते हैं। उनके पास सिर्फ टीवी व मोबाइल ही होते हैं। ऐसे में वे क्या देखते हैं इस बारे में पेरेंट्स को कुछ पता नहीं होता। पेरेंट्स के लिए बहुत जरूरी है कि वे अपने बच्चे के लिए वक्त निकालें। उन्हें घुमाने ले जाएं।

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