
डायबिटीज यानी मधुमेह को अब केवल दवाइयों या जीवनशैली में बदलाव से ही नहीं, बल्कि महज दो घंटे की एक खास सर्जरी के ज़रिये भी नियंत्रित किया जा सकता है। यह दावा एम्स (AIIMS) के सर्जरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. मंजूनाथ ने किया है। उनका कहना है कि पिछले एक वर्ष में कुल 35 मरीजों पर यह प्रक्रिया अपनाई गई और सभी ने शुगर से राहत पाई। दिलचस्प बात यह है कि इन मरीजों में एक लोकसभा सांसद भी शामिल हैं।
नई तकनीक के नतीजों ने मेडिकल जगत का ध्यान अपनी ओर खींचा है। रिकवरी इतनी तेज है कि मरीज लगभग 24 घंटे के भीतर ही अस्पताल से डिस्चार्ज होकर घर लौट रहे हैं। ऐसे समय में जब भारत में डायबिटीज एक तेजी से फैलती महामारी बन चुका है, यह तरीका उम्मीद की नई किरण साबित हो सकता है। देश में करीब 10 करोड़ लोग मधुमेह की समस्या से जूझ रहे हैं और खराब लाइफस्टाइल, कम व्यायाम, तनाव, नींद की कमी, अनियमित खानपान और जेनेटिक फैक्टर इस बीमारी को बढ़ावा दे रहे हैं।
AIIMS की इस अनोखी सर्जरी के अब तक के परिणाम
एम्स के विशेषज्ञ बताते हैं कि यह मेटाबोलिक सर्जरी उन 35 व्यक्तियों पर की गई जिनकी शुगर लगातार असंतुलित थी। नतीजे बेहद उत्साहजनक थे।
पूरी प्रक्रिया करीब 2 घंटे चलती है।
मरीज को लंबी अवधि तक अस्पताल में भर्ती रहने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
सर्जरी के बाद महज एक दिन में सामान्य जीवन की तरफ लौटना संभव है।
कौन करवा सकता है यह सर्जरी? किसे नहीं है सलाह?
डॉक्टरों के मुताबिक यह तकनीक पहले मोटापे के इलाज के लिए विकसित की गई थी, लेकिन अनुभव के बाद पता चला कि यह डायबिटीज को नियंत्रित करने में भी अत्यंत प्रभावी है। हालांकि, इसे हर मरीज के लिए उपयुक्त नहीं माना गया है। प्रमुख पात्रता मानक इस प्रकार हैं—
किन मरीजों को यह सर्जरी उपयोगी हो सकती है?
जिन्हें डायबिटीज काफी लंबे समय से हो
जिनका HbA1C लगातार 7.5 से अधिक रह रहा हो
जो तीन प्रकार की दवाओं के बावजूद शुगर कंट्रोल करने में असफल हों
किन्हें यह सर्जरी नहीं करवानी चाहिए?
जिनको डायबिटीज हुए 15 वर्ष से अधिक समय हो चुका हो
जिन्हें प्रतिदिन 100 यूनिट तक इंसुलिन लेनी पड़ती हो
कैसे की जाती है यह मेटाबोलिक सर्जरी?
डॉक्टर बताते हैं कि यह प्रक्रिया पैनक्रियाज नहीं, बल्कि पेट और छोटी आंत पर केंद्रित होती है। इसमें दो मुख्य चरण शामिल हैं—
स्टमक को ट्यूब शेप में बदलना:
पेट का आकार छोटा करके उसे एक लंबे ट्यूब जैसी संरचना दी जाती है। इससे भोजन उस हिस्से में नहीं जाता जहां अवांछित हार्मोन बनते हैं और शुगर लेवल को प्रभावित करते हैं।
छोटी आंत की नई कनेक्टिविटी:
इसके बाद इस बदले हुए पेट को छोटी आंत से इस तरीके से जोड़ दिया जाता है कि खाना सीधे आगे की आंत में पहुँच जाए और डुओडेनम को बायपास कर दे। इससे शरीर में मेटाबोलिज़्म बेहतर तरीके से काम करने लगता है और शुगर कंट्रोल प्रभावी हो जाता है।













