
अमेरिका के 20 राज्यों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस विवादास्पद फैसले के खिलाफ मुकदमा दायर किया है, जिसमें नए एच-1बी वीजा आवेदनों पर 1 लाख डॉलर का भारी शुल्क लगाने का आदेश दिया गया था।
नया नियम सितंबर में लागू हुआ
कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा की अगुवाई में दायर मुकदमे में तर्क दिया गया है कि ट्रंप प्रशासन ने यह शुल्क अवैध तरीके से लगाया। यह शुल्क विशेषकर अस्पतालों, विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक स्कूलों जैसी जरूरी सेवाओं के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। ट्रंप ने 19 सितंबर 2025 को इस फैसले की घोषणा की थी और 21 सितंबर से यह शुल्क नए आवेदनों पर लागू कर दिया गया। पहले एच-1बी वीजा शुल्क 960 डॉलर से 7,595 डॉलर तक था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 1 लाख डॉलर कर दिया गया, जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्रों में कर्मचारियों की कमी और बढ़ सकती है।
कुशल प्रतिभा का महत्व
कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा ने कहा कि कुशल प्रतिभाएं राज्य की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाती हैं। लेकिन ट्रंप द्वारा लगाए गए 1 लाख डॉलर के एच-1बी वीजा शुल्क से सार्वजनिक नियोक्ताओं और महत्वपूर्ण सेवा प्रदाताओं पर अवैध और भारी वित्तीय बोझ पड़ेगा, जिससे प्रमुख क्षेत्रों में कर्मचारियों की कमी और गंभीर हो जाएगी।
प्रशासनिक प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप
राज्यों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन ने इस शुल्क के लिए न तो कांग्रेस की मंजूरी ली और न ही प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम (APA) के तहत जरूरी नियम-निर्माण प्रक्रिया का पालन किया। ऐतिहासिक रूप से एच-1बी शुल्क केवल कार्यक्रम चलाने की लागत तक सीमित रहे हैं, न कि मनमाने राजस्व जुटाने के लिए।
संघीय आव्रजन कानूनों का उल्लंघन
मुकदमे में मैसाचुसेट्स, न्यूयॉर्क, इलिनोइस समेत 20 डेमोक्रेटिक बहुल राज्य शामिल हैं। उनका तर्क है कि यह नया शुल्क अमेरिकी संविधान और संघीय आव्रजन कानूनों का उल्लंघन करता है। यह सार्वजनिक अस्पतालों, विश्वविद्यालयों और स्कूलों पर भारी वित्तीय बोझ डालेगा और पहले से चल रही शिक्षकों और डॉक्टरों की कमी को और गंभीर बना देगा।













