
महाराष्ट्र की सियासत में सत्ता साझेदारों के बीच तनाव लगातार गहराता जा रहा है। खासकर भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच खींचतान अब खुलकर सामने आ चुकी है। दोनों दल एक ही हिंदुत्व विचारधारा का दावा करते हैं, लेकिन हाल के घटनाक्रम बताते हैं कि रिश्तों में दरार और गहरी होती जा रही है—कभी एक-दूसरे के नेताओं को तोड़ने को लेकर नाराज़गी, तो कभी राजनीतिक रैलियों में कटाक्ष के तीर। कुछ दिन पहले यह मामला अमित शाह तक पहुंचा था, लेकिन कोई ठोस समाधान नज़र नहीं आया। और अब पहली बार देवेंद्र फडणवीस ने खुलकर एकनाथ शिंदे के बयान पर पलटवार किया है।
फडणवीस, जो आम तौर पर विवादित राजनीतिक बयानबाज़ी से दूरी बनाए रखते हैं, इस बार मंच से बेहद स्पष्ट शब्दों में बोले। हाल ही में एकनाथ शिंदे ने बिना नाम लिए भाजपा की तुलना रावण से कर डाली थी और कहा था कि “रावण की लंका भी जल गई थी।” इसी टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए फडणवीस ने कहा— “वो कहते हैं कि हमारी लंका जलाएंगे… पर हम तो लंका में रहते ही नहीं! हम भगवान श्रीराम के भक्त हैं, रावण के नहीं। चुनावी मौसम में ऐसी बातें कही जाती हैं, दिल पर मत लिया करें।”
उन्होंने आगे कहा कि भाजपा “जय श्रीराम” की ध्वजा उठाने वाली पार्टी है और किसी भी रावण की लंका जलाना ही रामभक्तों का कर्तव्य होता है। फडणवीस ने ये बातें पालघर जिले की नगर निकाय चुनाव रैली में कहीं, जहां माहौल पहले से ही दोनों दलों के बीच तनाव के कारण गर्म था।
शिंदे का बयान और बढ़ी तल्ख़ी
दरअसल, इसी क्षेत्र में प्रचार करते हुए एकनाथ शिंदे ने कहा था कि “अहंकार रावण को भी ले डूबा था और उसकी लंका राख हो गई थी”—यह बयान सीधे तौर पर भाजपा की ओर इशारा माना गया। इससे गठबंधन की अंदरूनी राजनीति में हलचल और तेज हो गई।
भाजपा–शिवसेना के बीच नई खाई
यह मतभेद केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं है। पिछले दिनों भाजपा ने शिवसेना के कुछ पार्षदों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया, जिससे शिवसेना नेतृत्व बेहद नाराज़ है। उन्हें डर है कि यदि भाजपा जमीनी स्तर पर उनके संगठन को कमजोर करती रही, तो आने वाले चुनावों में स्थिति उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
यही वजह रही कि हाल में आयोजित कैबिनेट बैठक में शिवसेना के कई मंत्री शामिल नहीं हुए—जो गठबंधन के भीतर असली असंतोष का संकेत था। इसके बाद एकनाथ शिंदे दिल्ली पहुंचे और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की। बताया गया कि बातचीत के दौरान शिंदे को आश्वासन दिया गया कि यदि शिवसेना भी भाजपा के नेताओं को तोड़ना बंद करेगी, तो भाजपा भी उसी नीति पर चलेगी।
क्या गठबंधन में दरार गहरी हो चुकी है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में दोनों दलों के रिश्ते और तनावपूर्ण हो सकते हैं। हिंदुत्व की राजनीति को लेकर एक होने के बावजूद सत्ता समीकरण, स्थानीय स्तर पर पकड़ और संगठन की मजबूती जैसे मुद्दों ने भाजपा और शिंदे गुट के बीच अविश्वास को बढ़ा दिया है। फडणवीस और शिंदे के बयानों ने यह साफ कर दिया है कि गठबंधन में सबकुछ सामान्य नहीं है।














