
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में सामने आए जानलेवा कफ सिरप कांड में पुलिस ने सनसनीखेज दावा किया है। जांच अधिकारियों ने सत्र न्यायालय में बताया कि बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रवीण सोनी दवा कंपनी से 10 फीसदी कमीशन लेकर बच्चों को कोल्ड्रिफ कफ सिरप लिखते थे। पुलिस का कहना है कि यह सिरप तमिलनाडु की श्रीसन फार्मास्यूटिकल कंपनी बनाती थी, जिसका लाइसेंस अब राज्य सरकार ने रद्द कर दिया है और कंपनी के दफ्तर को सील कर दिया गया है।
कोर्ट ने नहीं दी जमानत
छिंदवाड़ा सेशन कोर्ट ने डॉक्टर सोनी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आरोप बेहद गंभीर हैं और अभी तक मौतों की जांच पूरी नहीं हुई है। अदालत ने यह भी माना कि डॉक्टर ने स्वास्थ्य विज्ञान महानिदेशालय की गाइडलाइंस का उल्लंघन किया और 4 साल से कम उम्र के बच्चों को यह दवा लिखी, जबकि यह प्रतिबंधित श्रेणी में आती है।
न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में जमानत देने से जांच पर असर पड़ सकता है। पुलिस ने कोर्ट में यह भी बताया कि डॉक्टर और दवा कंपनी के बीच आर्थिक लेन-देन के सबूत मिलने के बाद मामले को भ्रष्टाचार और गैर-इरादतन हत्या की धाराओं के तहत दर्ज किया गया है।
श्रीसन फार्मा के मालिक गिरफ्तार, ईडी भी जांच में सक्रिय
मामले में दवा निर्माता कंपनी श्रीसन फार्मा के मालिक जी. रंगनाथन (75) को 10 अक्टूबर को चेन्नई से गिरफ्तार किया गया था। मध्य प्रदेश पुलिस की विशेष जांच टीम ने तमिलनाडु पुलिस के सहयोग से उन्हें अशोक नगर इलाके से पकड़ा।
सूत्रों के अनुसार, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने भी इस केस में मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू कर दी है। एजेंसी ने दो मामलों को संज्ञान में लिया है—एक, कफ सिरप से हुई मौतों के बाद दर्ज एफआईआर; और दूसरा, तमिलनाडु के सतर्कता एवं भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (DVAC) द्वारा दवा नियंत्रण विभाग के तत्कालीन निदेशक पी.यू. कार्तिकेयन के खिलाफ दर्ज रिश्वतखोरी मामला।
दवा नियंत्रण विभाग में भी भ्रष्टाचार के आरोप
इस पूरे प्रकरण का दायरा अब सिर्फ डॉक्टर और फार्मा कंपनी तक सीमित नहीं रह गया है। इस साल जुलाई में वेल्लोर के एक हर्बल कॉस्मेटिक निर्माता को लाइसेंस जारी करने के एवज में 25,000 रुपये की रिश्वत लेते हुए पी.यू. कार्तिकेयन को रंगे हाथों पकड़ा गया था। गिरफ्तारी के बाद सतर्कता विभाग ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत केस दर्ज किया।
सूत्रों का कहना है कि जांच एजेंसियां अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही हैं कि क्या कोल्ड्रिफ कफ सिरप के लाइसेंस जारी करने या उसके वितरण में भी रिश्वतखोरी का लिंक मौजूद था।
स्वास्थ्य सुरक्षा पर उठे गंभीर सवाल
डॉक्टरों और दवा कंपनियों के बीच कमीशन आधारित संबंधों ने एक बार फिर देश की दवा निगरानी प्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोल्ड्रिफ कफ सिरप के सेवन से हुई मौतों की संख्या को लेकर अब तक आधिकारिक आंकड़े सामने नहीं आए हैं, लेकिन शुरुआती रिपोर्टों में दर्जनों बच्चों की मौत की आशंका जताई गई है।
स्वास्थ्य विभाग ने फिलहाल सभी राज्यों को बाल चिकित्सा उपयोग के लिए कफ सिरप की विशेष जांच रिपोर्ट भेजने के निर्देश दिए हैं। वहीं, केंद्र सरकार ने भी फार्मा रेगुलेशन की समीक्षा के आदेश दिए हैं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।














