
कर्नाटक के गोकर्ण में एक गुफा में रहने वाली रूसी महिला नीना कुटीना, जिन्हें हाल ही में जबरन बाहर निकाला गया, अब बेहद व्यथित नजर आ रही हैं। यह सब कुछ उनके लिए एक गहरे झटके जैसा है। हाल ही में उन्होंने अपने जीवन के इस अनचाहे बदलाव और मीडिया में गलत छवि पेश किए जाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि उन्हें और उनके परिवार को जिस तरह जबरन वहां से निकाला गया, वो अनुभव किसी सदमे से कम नहीं था। खास बात यह भी है कि नीना के बच्चों के पिता की पहचान अब सामने आ चुकी है, और वह गुरुवार को उनसे मिलने के लिए तुमकुरु तक पहुंचे।
पीटीआई भाषा से दिल खोलकर बात करते हुए मंगलवार को नीना ने बताया कि उनका जीवन जैसा दिखाया जा रहा है, वह सच्चाई से कोसों दूर है। उनका कहना था, "जो कुछ टीवी पर दिखाया जा रहा है, वह सिर्फ झूठ है। हमारे पास हमारे जीवन की असली तस्वीरें और वीडियो हैं, जो यह दिखाते हैं कि हम कितने संतुष्ट और स्वच्छ वातावरण में रह रहे थे।" उन्होंने यह भी साझा किया कि वे आर्ट और रूसी साहित्य में दक्ष हैं और अपनी बेटियों को खुद ही शिक्षा देती हैं – यह सब कुछ उन्होंने पूरे समर्पण और ममता से किया।
मौजूदा हालात पर अफसोस जाहिर करते हुए उन्होंने दुख के साथ कहा, "अब हमें ऐसी जगह पर रखा गया है जो न तो रहने लायक है, न ही वहां कोई सुविधा है। हमें साफ-सफाई से दूर गंदगी में रखा गया है, जहां कोई निजता नहीं है। खाने को सिर्फ सादा चावल मिल रहा है। मेरा दिल तब और टूट गया जब 9 महीने पहले गुजरे मेरे बेटे की अस्थियां और हमारे जरूरी सामान भी हमसे ले लिए गए।"
अपने जीवनशैली का मजबूती से किया बचाव
नीना इस बात पर अडिग हैं कि उनका गुफा में रहना कोई लापरवाही या सनक नहीं थी, बल्कि एक सोच-समझकर अपनाया गया जीवन था। उन्होंने दृढ़ता से कहा, "आप जो सोच रहे हैं, वह बिल्कुल गलत है। हमें प्रकृति में जीने का गहरा अनुभव है। जंगल में रहकर हम मर नहीं रहे थे। मैं अपनी बेटियों को मारने नहीं लाई थी – वे वहां खुश थीं। वे झरनों में तैरती थीं, खुली हवा में सांस लेती थीं, और उनके पास अच्छी नींद लेने की जगह थी। वो आर्ट और पेंटिंग सीखती थीं, हम मिलकर पेंटिंग करते थे। मैं खुद गैस पर स्वादिष्ट खाना पकाती थी – हमारी ज़िंदगी सुंदर थी, भले ही वह आपके लिए असामान्य हो।"
बच्चियों से मिलने पहुंचे पिता, लेकिन…
इस पूरे घटनाक्रम के बीच एक भावनात्मक मोड़ तब आया, जब नीना के पति ड्रोर, जो कि बेंगलुरु में हैं, अपने परिवार से मिलने के लिए तुमकुरु पहुंचे। उन्होंने तीन घंटे से ज्यादा की यात्रा की, लेकिन जब वो दफ्तर पहुंचे, तो उन्हें परिवार से मिलने नहीं दिया गया। इस पूरे अनुभव ने उन्हें तोड़ कर रख दिया।
एएनआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, "मैं अपनी दो बेटियों से मिलने आया था। लेकिन दफ्तर में मुझे एक घंटे इंतजार करवाया गया, फिर कहा गया कि मैं अंदर नहीं जा सकता। अब मुझसे कहा गया है कि मुझे FRRO से लिखित अनुमति लानी होगी। मैं थक गया हूं, लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा। कल फिर से आऊंगा – सिर्फ अपनी बच्चियों की एक झलक पाने के लिए।"














