22 साल बाद इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) का खिताब जीतने वाली रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) की टीम के लिए बेंगलुरु में आयोजित विजय जुलूस को जीत का उत्सव माना गया था। लेकिन यह उत्सव महज कुछ घंटों में मातम में बदल गया। चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर भारी भीड़, अव्यवस्था, और प्रशासनिक लापरवाही की वजह से मची भगदड़ में 11 लोगों की जान चली गई और दर्जनों घायल हो गए। यह घटना न केवल त्रासदी है, बल्कि आधुनिक भारत की आयोजन संस्कृति, भीड़ प्रबंधन और प्रशासनिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल भी खड़े करती है।
बेंगलुरु की भगदड़ ने RCB की ऐतिहासिक जीत की चमक को गहरे मातम में बदल दिया। इस त्रासदी ने प्रशासनिक विफलता, राजनीतिक लापरवाही, सोशल मीडिया के गैर-जिम्मेदाराना उपयोग और आपदा प्रबंधन की अक्षमता को उजागर किया है।
अब वक्त है कि हम केवल श्रद्धांजलि और मुआवज़े से संतुष्ट न हों, बल्कि जवाबदेही तय करें। जब तक कोई जिम्मेदार सजा नहीं पाता, तब तक ऐसी घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी। यह एक चेतावनी है, जिसे अगर हमने अब भी नहीं समझा, तो अगली जीत का उत्सव शायद किसी और परिवार का शोक बन जाए।
उत्सव से उत्पन्न अफरा-तफरी की पृष्ठभूमि
आरसीबी ने जब 2025 के आईपीएल खिताब पर कब्ज़ा जमाया, तो करोड़ों प्रशंसकों का सपना साकार हुआ। इस जश्न को सार्वजनिक रूप से मनाने के लिए बेंगलुरु में एक विजय यात्रा और स्टेडियम कार्यक्रम का आयोजन तय किया गया। सोशल मीडिया के माध्यम से 22 मई को दोपहर बाद इसकी घोषणा की गई कि शाम 5 बजे विजय जुलूस निकाला जाएगा और इसके बाद स्टेडियम में कार्यक्रम होगा। परंतु बेंगलुरु पुलिस ने पहले ही सुरक्षा कारणों से किसी भी रोड शो की अनुमति न देने की बात कही थी।
यह परस्पर विरोधाभासी घोषणाएं आम नागरिकों के बीच भ्रम फैलाने का सबसे बड़ा कारण बनीं। लाखों लोग RCB की एक झलक पाने के लिए चिन्नास्वामी स्टेडियम और विधान सौधा के पास उमड़ पड़े। अंततः जब कार्यक्रम स्थल पर भीड़ नियंत्रण से बाहर हुई, तो भगदड़ मच गई।
भीड़ प्रबंधन की विफलता
इस प्रकार की घटनाओं में सबसे पहला सवाल उठता है – क्या आयोजकों ने भीड़ प्रबंधन की पूरी योजना तैयार की थी? रिपोर्ट्स बताती हैं कि चिन्नास्वामी स्टेडियम की अधिकतम क्षमता 35,000 है, जबकि आयोजन के दिन 2-3 लाख लोग स्टेडियम के आस-पास इकट्ठा हो गए थे। विधानसभा के पास अकेले एक लाख से अधिक लोग मौजूद थे।
RCB द्वारा पहले सीमित फ्री पास की घोषणा की गई, जिसे बाद में "फ्री एंट्री फॉर ऑल" में बदल दिया गया। यह अचानक लिया गया निर्णय प्रशासनिक रूप से बेहद अनियंत्रित था, क्योंकि न तो प्रवेश द्वार पर्याप्त थे, न ही गेट पर सुरक्षा व्यवस्था। युवाओं और महिलाओं सहित सैकड़ों लोग बिना पास के भी अंदर घुसने का प्रयास करने लगे। पुलिस बल नाकाफी था और इसके चलते गेट 3, 12 और 18 पर भारी दबाव बना, जहां मौतें दर्ज की गईं।
समय और स्थान का अनुचित चयन
बेंगलुरु ट्रैफिक और सप्ताह के व्यस्त दिन बुधवार को इस तरह का आयोजन करना अपने आप में अपरिपक्वता दर्शाता है। पुलिस ने राज्य सरकार को रविवार तक कार्यक्रम टालने का सुझाव दिया था ताकि तैयारी का समय मिल सके, लेकिन इसे दरकिनार कर दिया गया।
विजय उत्सव को महज 24 घंटे में आयोजित करने का निर्णय दर्शाता है कि यह आयोजन पूरी तरह से राजनीतिक लाभ और जनसंपर्क के उद्देश्य से प्रेरित था, न कि सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए। पुलिस के अनुसार केवल 1000 से कुछ अधिक जवान ही तैनात थे, जबकि राज्य सरकार ने 5000 का दावा किया था, जो बाद में कोर्ट में खारिज हो गया।
प्रशासनिक और नैतिक जवाबदेही
राज्य सरकार और RCB दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस दुर्घटना की जवाबदेही स्वीकार करें। लेकिन दुख की बात यह है कि हादसे के अगले ही दिन राजनीतिक बयानबाज़ी और दोषारोपण का दौर शुरू हो गया।
कर्नाटक हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान पता चला कि केवल तीन मुख्य गेट खुले थे जबकि भीड़ 2 लाख से ज्यादा थी। कोर्ट ने इस लापरवाही को गंभीरता से लिया और मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए गए।
हालांकि राज्य सरकार और आरसीबी ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की है, लेकिन सवाल यह है कि क्या मुआवज़ा इस तरह की प्रशासनिक हत्या का समाधान है?
सोशल मीडिया की भूमिका और भ्रम का विस्तार
सोशल मीडिया आज जनसंचार का प्रभावशाली माध्यम है, लेकिन जब इसे बिना ज़िम्मेदारी के इस्तेमाल किया जाए, तो यह घातक सिद्ध हो सकता है। RCB द्वारा बिना पुलिस से तालमेल किए सोशल मीडिया पर विजय जुलूस की घोषणा ने स्थिति को और बिगाड़ दिया।
यह एक उदाहरण है कि कैसे बिना जांचे-परखे सूचना साझा करना किस कदर नुक़सानदेह हो सकता है। विशेष रूप से जब लाखों लोग भावनात्मक रूप से जुड़े हों, तो किसी भी तरह की ग़लत या आधी-अधूरी जानकारी सामाजिक संकट का कारण बन सकती है।
महिलाओं और बच्चों की सबसे अधिक क्षति
हादसे में जिन 11 लोगों की मौत हुई, उनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे। एक 13 वर्षीय लड़की दिव्यांशी, जो आंध्र प्रदेश से कोहली की एक झलक देखने आई थी, दम घुटने और सिर में चोट लगने से मारी गई।
जब महिलाएं और बच्चे भीड़ में घुसने की कोशिश कर रहे थे, तब पुलिस बल उन्हें रोक नहीं सका। गेट्स पर कोई स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं था और न ही किसी मेडिकल इमरजेंसी के लिए तैयारी। ऐसे में जब भीड़ गेट फाड़ने लगी, तो पूरा माहौल भगदड़ में तब्दील हो गया।
हमें क्या सीखना चाहिए?
बेंगलुरु की यह भगदड़ महज एक दुर्घटना नहीं है, बल्कि यह चेतावनी है। भारत जैसे देश में, जहां धार्मिक, राजनीतिक और खेल आयोजनों में करोड़ों की भीड़ उमड़ती है, वहां ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं।
लेकिन क्या हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि ऐसी घटनाएं टालना संभव नहीं? नहीं। अगर हमने 5 प्रमुख बिंदुओं – योजना, समन्वय, पारदर्शिता, ज़िम्मेदारी और तकनीकी सहायता – को दुरुस्त कर लिया, तो ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सकती है।
—राजेश कुमार भगताणी