
झारखंड के रामगढ़ जिले के कुजू क्षेत्र में एक अवैध कोयला खदान के धंसने की दर्दनाक घटना सामने आई है, जिसमें तीन मजदूरों की मौत हो गई है, जबकि पांच अन्य मजदूर अब भी मलबे में फंसे हुए हैं। यह हादसा शुक्रवार देर रात महुआ टुंगरी इलाके में हुआ, जहां बंद पड़ी खदान में गैरकानूनी रूप से कोयला निकालने का कार्य जारी था।
घटना के समय कुल 10 मजदूर खदान में काम कर रहे थे, तभी तेज बारिश के कारण खदान की दीवारें भरभराकर गिर गईं। मृतकों की पहचान वकील करमाली, इम्तियाज और निर्मल मुंडा के रूप में की गई है। मौके पर पहुंची पुलिस और प्रशासन की टीमों ने राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया है। मलबे को हटाने के लिए मशीनों की मदद ली जा रही है और बचावकर्मी फंसे हुए लोगों को सुरक्षित निकालने की कोशिश में जुटे हैं।
इलाके में मचा कोहराम, अपनों को तलाशते रहे परिजन
घटना की जानकारी मिलते ही बड़ी संख्या में स्थानीय लोग घटनास्थल पर इकट्ठा हो गए। कई परिवारजन अपने प्रियजनों के सुरक्षित बाहर आने की आस में मौके पर डटे हुए हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, यह खदान पहले सीसीएल द्वारा बंद कर दी गई थी, लेकिन बावजूद इसके यहां अवैध खनन जारी था। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह हादसा प्रशासन की लापरवाही और निगरानी की कमी का नतीजा है।
पहले भी हो चुके हैं ऐसे हादसे, Dhanbad में जमीन धंसने से तबाही
रामगढ़ की इस घटना से ठीक पहले धनबाद जिले के कतरास क्षेत्र में भी भू-धंसान का मामला सामने आया था। शुक्रवार को ही मां अंबे आउटसोर्सिंग परियोजना के पास स्थित केशलपुर मुंडा धौड़ा इलाके में अचानक जमीन फट गई और एक बड़ा गोफ बन गया। इससे पांच घरों को नुकसान पहुंचा, जिनमें से एक पूरी तरह ध्वस्त हो गया। सौभाग्य से हादसे के समय कोई घर में मौजूद नहीं था, जिससे किसी के हताहत होने की सूचना नहीं मिली।
स्थानीय निवासी माधव यादव और उनकी पत्नी तेतरी देवी उस समय घर के बाहर खाना खा रहे थे, जब जमीन में अचानक दरारें पड़ने लगीं। अफरा-तफरी के बीच लोगों ने घर छोड़कर भागने में ही अपनी जान बचाई। यह इलाका पहले भी 25 जून और 29 जून को भू-धंसान की चपेट में आ चुका है, जिसे देखते हुए प्रशासन ने इसे डेंजर ज़ोन घोषित कर नोटिस भी चस्पा किया था, लेकिन स्थायी समाधान अब तक नहीं निकाला जा सका है।
प्रशासन की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
इन लगातार हो रही घटनाओं ने झारखंड में खनन क्षेत्रों की सुरक्षा और प्रशासनिक निगरानी पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। अवैध खनन जैसी गतिविधियां लगातार जानलेवा बनती जा रही हैं, लेकिन इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई का अभाव साफ नजर आता है। रामगढ़ की घटना में यदि समय पर खदान को पूरी तरह सील किया गया होता, तो शायद ये मजदूर आज जिंदा होते।
रामगढ़ की खदान दुर्घटना झारखंड की कोयला बेल्ट में निरंतर जारी खतरे और असंवेदनशील प्रशासनिक रवैये की एक और दुखद कड़ी है। जहां एक ओर गरीब मजदूरों की जिंदगी दांव पर लगती है, वहीं दूसरी ओर अवैध खनन से जुड़ी माफिया गतिविधियां बेरोकटोक जारी हैं। यह समय है जब राज्य सरकार और कोल कंपनियों को न केवल अवैध खनन पर लगाम लगाने की जरूरत है, बल्कि पहले से चिह्नित डेंजर ज़ोन को पूरी तरह खाली कराना और वैकल्पिक पुनर्वास सुनिश्चित करना भी बेहद आवश्यक है।














