
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे। झारखंड के ‘गुरुजी’ या ‘दिशोम गुरु’ के नाम से लोकप्रिय इस जननेता ने आज दुनिया को अलविदा कह दिया। देश के सामाजिक और राजनीतिक क्षितिज पर गहरा असर छोड़ने वाले शिबू सोरेन ने 4 अगस्त 2025 को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। 81 वर्षीय सोरेन बीते कई हफ्तों से गंभीर रूप से बीमार थे और अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे।
उनके निधन की खबर आते ही पूरे झारखंड सहित देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। मानो झारखंड की आत्मा से कोई बहुत अपना चला गया हो। वह न सिर्फ एक नेता थे, बल्कि एक आंदोलन की पहचान, एक युग, और लाखों लोगों के लिए प्रेरणा थे। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और अलग झारखंड आंदोलन के अगुआ शिबू सोरेन ने राज्य को आकार देने में जो योगदान दिया, उसे भुला पाना संभव नहीं।
अब सवाल उठता है – आखिर शिबू सोरेन का निधन कैसे हुआ? उन्हें क्या हुआ था? वह कब से अस्पताल में भर्ती थे?
दरअसल, झारखंड के 'दिशोम गुरु' का जाना झारखंड की सियासत के एक पूरे युग का अवसान है। आज सुबह 8:48 बजे, जब उन्होंने गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली, उस वक्त वे नेफ्रोलॉजी विभाग में इलाजरत थे। वह तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके थे और लंबे समय से कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। 19 जून 2025 से वे सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे। उनकी बिगड़ती हालत और आज के इस दुखद अंत ने राज्य की राजनीति और विशेषकर आदिवासी समुदाय को एक गहरी क्षति दी है।
उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने गहरे दुख के साथ जानकारी दी – “आज मैं शून्य हो गया हूं... गुरुजी हम सबको छोड़कर चले गए।” यह बयान सिर्फ एक बेटे का ही नहीं, पूरे राज्य के दिल की आवाज़ है।
शिबू सोरेन के निधन का कारण
शिबू सोरेन के निधन के पीछे कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जिम्मेदार रहीं। उन्हें किडनी की पुरानी बीमारी, डायबिटीज, हृदय संबंधी जटिलताएं और हाल ही में ब्रेन स्ट्रोक हुआ था। वे डायलिसिस पर थे और उनकी बायपास सर्जरी भी हो चुकी थी। जुलाई 2025 में उनके स्वास्थ्य में मामूली सुधार देखने को मिला था, लेकिन अगस्त की शुरुआत में हालत फिर बिगड़ गई। हालत इतनी नाजुक हो गई कि उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा। अनुभवी डॉक्टरों की टीम लगातार इलाज में जुटी रही, लेकिन जीवन की डोर टूट गई। उस समय उनके साथ उनका पूरा परिवार – बेटा हेमंत, पत्नी कल्पना और अन्य परिजन – अस्पताल में मौजूद थे।
कौन थे शिबू सोरेन – झारखंड के 'गुरुजी'
झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन का कद सिर्फ एक नेता का नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी और जननायक का रहा है। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक उन्हें ‘गुरुजी’ कहकर पुकारते थे। 1970 के दशक में उन्होंने आदिवासी समुदाय को महाजनी शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए जबरदस्त संघर्ष छेड़ा। उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या ने उन्हें सामाजिक और राजनीतिक क्रांति की राह पर ला खड़ा किया।
1973 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की नींव रखी और झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के लिए दशकों तक संघर्ष किया। इसी संघर्ष का परिणाम था कि साल 2000 में झारखंड बिहार से अलग हुआ। शिबू सोरेन ने दुमका से आठ बार लोकसभा और तीन बार राज्यसभा सदस्य के रूप में देश की संसद में झारखंड की आवाज़ बुलंद की। वे तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री बने, हालांकि उनका कार्यकाल विवादों से भी अछूता नहीं रहा।
शिबू सोरेन का निधन सिर्फ एक राजनेता की विदाई नहीं है, यह एक सोच, एक विचारधारा और एक संघर्ष की विरासत का अंत है। झारखंड ने अपना 'गुरुजी' खोया है — लेकिन उनकी विचारधारा और आंदोलन आने वाली पीढ़ियों को मार्गदर्शन देती रहेगी।














