नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक छात्र को बड़ी राहत देते हुए उसके खिलाफ दर्ज रेप केस को खारिज कर दिया है। छात्र पर एक शादीशुदा महिला ने आरोप लगाया था कि उसने शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए। मगर शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला रेप की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि दोनों के बीच संबंध सहमति से बने थे और महिला पहले से कानूनी रूप से शादीशुदा थी। यह फैसला जस्टिस बीवी नागरत्न और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने सुनाया।
शादी का झूठा वादा कर महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाने के आरोप में फंसे एक छात्र को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। अदालत ने आरोपी के खिलाफ दर्ज रेप केस को खारिज कर दिया है और कहा है कि दोनों के बीच जो संबंध बने, वे पूरी तरह से आपसी सहमति पर आधारित थे। इस मामले की खास बात यह है कि शिकायतकर्ता महिला पहले से ही शादीशुदा थी, जो अपने पति से अलग रह रही थी लेकिन कानूनी तौर पर तलाक नहीं हुआ था। सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर विशेष ध्यान देते हुए कहा कि ऐसे में यह कहना कि आरोपी ने शादी का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए, कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं माना जा सकता।
यह फैसला न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने सुनाया। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जब किसी रिश्ते की शुरुआत में कोई आपराधिक मंशा नहीं होती और दोनों पक्ष आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं, तो केवल शादी का वादा टूटने को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में राज्य की आपराधिक मशीनरी का इस्तेमाल करना न केवल न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है, बल्कि इससे आरोपी की सामाजिक प्रतिष्ठा को भी भारी नुकसान पहुंचता है। कोर्ट ने चेताया कि यदि हर टूटे हुए वादे को झूठा वादा मान लिया जाए और उसके आधार पर रेप का मामला दर्ज किया जाए, तो यह न्यायिक संसाधनों के दुरुपयोग का कारण बनेगा।
इस मामले में आरोपी छात्र की उम्र घटना के समय 23 वर्ष थी। शिकायतकर्ता महिला ने उस पर आरोप लगाया था कि उसने शादी का वादा कर उससे शारीरिक संबंध बनाए। जबकि रिकॉर्ड से यह स्पष्ट हुआ कि दोनों के बीच लगभग 12 महीने तक संबंध रहे और वे दो बार होटल में भी साथ रुके। इतना ही नहीं, महिला का एक चार साल का बेटा भी है। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इस रिश्ते में कोई एकतरफा शोषण या धोखा नहीं था, बल्कि यह एक आपसी समझदारी पर आधारित रिश्ता था। इसी के आधार पर कोर्ट ने माना कि यह आपराधिक मामला नहीं बनता और इस संबंध में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया।
इससे पहले आरोपी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन उसे वहां से राहत नहीं मिली। इसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने भजनलाल बनाम हरियाणा राज्य मामले में तय सिद्धांतों का हवाला देते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई एफआईआर दुर्भावना या निजी प्रतिशोध के तहत दर्ज की गई हो, तो उसे रद्द किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश जाता है कि हर निजी संबंध को अपराध का रंग नहीं दिया जा सकता, और कानून का सहारा तभी लिया जाना चाहिए जब वास्तव में अपराध हुआ हो।