
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उद्देश्य से नगर निगम एक अहम और पर्यावरण के अनुकूल पहल करने जा रहा है। इस नई व्यवस्था के तहत अब अंतिम संस्कार के दौरान लकड़ी के बजाय गाय के गोबर से बने उपलों का उपयोग किया जाएगा। पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ पारंपरिक मूल्यों को बढ़ावा देने के इरादे से यह निर्णय लिया गया है, जिससे श्मशान घाटों की कार्यप्रणाली में व्यापक बदलाव देखने को मिलेगा।
दिल्ली नगर निगम (MCD) ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राजधानी के प्रमुख श्मशान घाटों में दाह संस्कार की प्रक्रिया अब केवल गाय के गोबर से बने उपलों के माध्यम से ही संपन्न की जाएगी। निगम ने संबंधित विभागों और अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं कि लकड़ी के विकल्प के रूप में उपलों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। अधिकारियों का मानना है कि इस कदम से अंतिम संस्कार के दौरान निकलने वाले धुएं और प्रदूषक तत्वों में काफी कमी आएगी।
स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में लिया गया महत्वपूर्ण निर्णय
वायु प्रदूषण को लेकर आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। बैठक की अध्यक्षता स्टैंडिंग कमेटी की चेयरपर्सन सत्या शर्मा ने की। इस दौरान पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट को निर्देश दिए गए कि भविष्य में श्मशान घाटों के संचालन की अनुमति केवल उन्हीं एजेंसियों को दी जाए, जो दाह संस्कार में गोबर के उपलों का उपयोग अनिवार्य रूप से करेंगी। यह शर्त आने वाले समय में नियम के रूप में लागू की जाएगी।
परंपरा और पर्यावरण—दोनों को साधने की कोशिश
बैठक के बाद सत्या शर्मा ने कहा कि गोबर के उपले भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। उन्होंने इसे पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित और टिकाऊ विकल्प बताया। साथ ही निगम से यह भी आग्रह किया गया कि उपलों के निर्माण के लिए आधुनिक मशीनों की व्यवस्था की जाए, जिससे उन्हें लकड़ी के लट्ठों के आकार में तैयार किया जा सके और श्मशान घाटों को निरंतर आपूर्ति बनी रहे।
पायलट प्रोजेक्ट के जरिए पूरे दिल्ली में होगा विस्तार
नगर निगम की योजना के मुताबिक पहले चरण में चार गौशालाओं और चार श्मशान घाटों में इस व्यवस्था को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जाएगा। यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो इसे चरणबद्ध तरीके से पूरी दिल्ली में लागू किया जाएगा। इसके अलावा डेयरियों को भी उपले तैयार करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है। नियमों का उल्लंघन करने पर पशु चिकित्सा विभाग द्वारा सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कुछ श्मशान घाटों में पहले से हो रहा आंशिक प्रयोग
फिलहाल राजधानी के पंचकुइंया रोड और निगम बोध श्मशान घाटों में लकड़ी की खपत को कम करने के लिए गोबर के उपलों का सीमित इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि अभी तक किसी भी श्मशान घाट पर केवल उपलों से दाह संस्कार की पूरी व्यवस्था लागू नहीं की गई है। वर्तमान में लकड़ी के साथ उपले मिलाकर उपयोग किए जाते हैं।
लकड़ी की अधिक खपत से बढ़ता है प्रदूषण का स्तर
दिल्ली में हर वर्ष बड़ी संख्या में दाह संस्कार होते हैं, जिनमें एक दाह संस्कार के लिए औसतन 500 से 700 किलोग्राम लकड़ी का उपयोग किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार इतनी अधिक मात्रा में लकड़ी जलने से कार्बन उत्सर्जन तेजी से बढ़ता है। नगर निगम को उम्मीद है कि गोबर के उपलों के इस्तेमाल से न केवल लकड़ी की बचत होगी, बल्कि राजधानी की हवा को भी पहले की तुलना में स्वच्छ बनाने में मदद मिलेगी।












