
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 (Bihar Election 2025) में मिली अप्रत्याशित पराजय के बाद जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) ने अपनी चुप्पी तोड़ी है। उन्होंने स्वीकार किया कि परिणाम आने के बाद से उनकी नींद तक उचट गई है। पीके ने साफ कहा कि यह हार उन्हें रोकने वाली नहीं है और वह बिहार की राजनीति में अपने लक्ष्य की ओर लगातार काम करते रहेंगे। उनके शब्दों में— “जब तक आप खुद हार नहीं मानते, तब तक आपको कोई हरा नहीं सकता।”
चुनाव हारने के बाद पहली बड़ी प्रतिक्रिया
जन सुराज, जिसे इस चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं हुई, उसके मुख्य चेहरे प्रशांत किशोर ने NDTV से विशेष बातचीत की। उन्होंने माना कि नतीजे उनके लिए “गंभीर सदमा” हैं। पिछले हफ्ते परिणाम घोषित हुए और तभी से, उनके मुताबिक, वह चैन की नींद नहीं ले पा रहे हैं। इसके बावजूद उनका कहना है कि उनकी लड़ाई खत्म नहीं हुई। बिहार की राजनीतिक धरातल पर उनके प्रयास आगे भी जारी रहेंगे।
“हमने मुद्दों को बदला, भले सीटें न मिलीं”
जब उनसे हार की वजह पूछी गई, तो पीके ने कहा कि भले ही जन सुराज सीटें नहीं जीत पाई, मगर उसने चुनावी विमर्श का चेहरा जरूर बदला। उन्होंने कहा कि उन्होंने जाति-धर्म की राजनीति से हटकर बेरोज़गारी, पलायन और विकास को केंद्र में रखकर चुनाव लड़ा—और यही उनके लिए असली उपलब्धि है।
प्रशांत किशोर ने बताया कि बिहार का मतदाता मुख्यतः चार श्रेणियों में बंटा है—
1. जाति के आधार पर वोट करने वाला वर्ग
2. धर्म से प्रभावित मतदाता
3.लालू यादव की वापसी के डर से NDA को वोट देने वाले
4. BJP के प्रभाव के डर से विपक्ष को वोट देने वाले
उनका कहना है कि जन सुराज पहले दो समूहों तक तो पहुंच बना सका, लेकिन बाकी दो वर्गों को प्रभावित करना उनके लिए चुनौती साबित हुआ।
“मैं अभी हारा नहीं हूँ…”
पीके ने दोहराया कि वह पीछे हटने वालों में से नहीं हैं। उन्होंने याद दिलाया कि एक समय में BJP के पास भी सिर्फ दो सांसद थे और संगठन खड़ा करने में समय लगता है। उन्होंने यह भी कहा कि उनकी राजनीति न तो जातिवाद को बढ़ावा देती है और न ही सांप्रदायिकता को। वे उसी राह पर आगे बढ़ते रहेंगे। उनके शब्दों में— “मैंने बिहार के लिए अपने जीवन के दस साल लगाए हैं, यह सफर अभी खत्म नहीं हुआ।”
वोट शेयर पर खुलकर बोले पीके
वोट प्रतिशत पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें हैरानी है कि जन सुराज सिर्फ 4% वोट ही जुटा पाई। उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने चुनाव से पहले कोई सर्वे नहीं कराया और अनुमान के आधार पर चुनावी रणनीति बनाई। उनका मानना था कि पार्टी को 12–15% तक वोट मिलेंगे, लेकिन नतीजे 3.5% पर आकर रुक गए—इसलिए अब गहराई से समीक्षा की जरूरत है।
जेडीयू की सीटों पर अपनी भविष्यवाणी का बचाव
चुनाव से पहले प्रशांत किशोर ने दावा किया था कि जेडीयू 25 से अधिक सीटें नहीं जीत पाएगी। लेकिन नतीजों में नीतीश कुमार की पार्टी ने 85 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया। इस पर पीके ने सरकार द्वारा महिलाओं को दी गई 10,000 रुपये की स्व-रोजगार सहायता का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने हर विधानसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च की, जिसका सीधा असर वोटिंग पर पड़ा।
उनका कहना था— “मेरी गणना के अनुसार जेडीयू को 25 से ज़्यादा नहीं मिलनी चाहिए थीं, लेकिन जब जनता को मतदान से ठीक पहले बड़े पैमाने पर आर्थिक मदद मिल जाए, तो समीकरण बदल जाते हैं। लोग अब कह रहे हैं कि मेरा विश्लेषण गलत था, लेकिन असल कारणों को समझना भी जरूरी है।”














