
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजे सामने आते ही यह तस्वीर साफ हो गई कि मतदाताओं का झुकाव इस बार भारी मात्रा में एनडीए की ओर रहा। कई जिलों में ऐसा साफ-सुथरा और एक तरफा परिणाम देखने को मिला जो हाल के वर्षों में दुर्लभ रहा है। खास बात यह रही कि बिहार के 38 में से 15 जिलों में महागठबंधन एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर सका। सभी सीटें एनडीए के खाते में गईं और विपक्ष वहाँ लगभग अप्रासंगिक साबित हुआ।
इन जिलों में वोटरों का रुझान बिल्कुल स्पष्ट था—हर विधानसभा क्षेत्र में एनडीए के उम्मीदवारों को ही भारी समर्थन मिला। परिणाम इतने एकतरफा रहे कि चुनावी विश्लेषण में इन्हें निर्णायक जिलों की श्रेणी में गिना जा रहा है। राज्य के कुल जिलों का करीब 42% हिस्सा ऐसे क्षेत्रों का रहा जहां महागठबंधन पूरी तरह शून्य पर सिमट गया। यह किसी भी गठबंधन के लिए बेहद महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत है।
किन जिलों में महागठबंधन हुआ पूरी तरह साफ?
नीचे जिलेवार आंकड़ों से यह साफ झलकता है कि एनडीए का प्रभुत्व किस तरह चुनाव भर बना रहा—
(जिला – सीटें – एनडीए – महागठबंधन – अन्य)
भोजपुर 7–7–0–0
पूर्वी चंपारण 12–11–1–0
कटिहार 7–4–3–1
बेगूसराय 7–5–2–0
बक्सर 4–3–1–0
पश्चिमी चंपारण 9–7–2–0
सहरसा 4–2–2–0
खगड़िया 4–4–0–0
कैमूर 4–3–1–0
शिवहर 1–1–0–0
दरभंगा 10–10–0–0
भागलपुर 7–7–0–0
रोहतास 7–6–1–0
मुजफ्फरपुर 11–10–1–0
बांका 5–5–0–0
अरवल 2–2–0–0
मधुबनी 10–9–1–0
गोपालगंज 6–6–0–0
मुंगेर 3–3–0–0
जहानाबाद 3–1–2–0
सुपौल 5–5–0–0
सीवान 8–7–1–0
लखीसराय 2–2–0–0
औरंगाबाद 6–5–1–0
अररिया 6–2–3–1
सारण 10–7–3–0
शेखपुरा 2–2–0–0
गया 10–8–2–0
किशनगंज 4–2–1–1
वैशाली 8–7–1–0
नालंदा 7–7–0–0
नवादा 5–4–1–0
पूर्णिया 7–6–0–1
समस्तीपुर 10–7–3–0
पटना 14–11–3–0
जमुई 4–3–1–0
16 जिलों में खाता तो खुला, लेकिन प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा
जहाँ महागठबंधन सीटें जीतने में कामयाब रहा, वहां भी उसकी स्थिति संतोषजनक नहीं मानी जा सकती। कई जिलों में उन्हें केवल एक ही सीट पर जीत मिली, जबकि बाकी सीटों पर एनडीए ने मजबूत पकड़ बनाए रखी। पूर्वी चंपारण जैसे बड़े और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जिले में भी महागठबंधन सिर्फ एक सीट हासिल कर पाया। यही हाल सारण, गया, मुजफ्फरपुर, पटना और समस्तीपुर जैसे बड़े जिलों का भी रहा—जहाँ मौजूदगी तो रही, मगर मुकाबला जीतने में कामयाबी सीमित रही।
जिलेवार तस्वीर: कहाँ-कहाँ झुका जनादेश?
2025 के चुनाव की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि बड़े और निर्णायक जिलों में एनडीए ने लगभग अपना झंडा गाड़ दिया। भोजपुर, दरभंगा, नालंदा, सुपौल, गोपालगंज, बांका और खगड़िया जैसे जिलों में विपक्ष पूरी तरह गायब रहा। कई क्षेत्रों में एनडीए ने छह में छह या दस में दस सीटें जीतीं, जो चुनाव को एकतरफा करने वाला कारक साबित हुआ।
कुछ जिलों—जैसे कटिहार, अररिया, सारण और गया—में महागठबंधन ने तीन या चार सीटें जीतीं, लेकिन समग्र परिणाम तो यही बताते हैं कि एनडीए का प्रभाव इस बार पूरे प्रदेश में गहराई तक फैला हुआ था।
इन नतीजों से क्या संदेश मिलता है?
चुनाव परिणामों ने यह संकेत स्पष्ट रूप से दे दिया है कि बिहार की जनता इस बार बदलाव या संशय की स्थिति में नहीं थी। मतदाताओं ने एक तरफा निर्णय लेते हुए एनडीए को व्यापक जनाधार दिया।
यह जनादेश कई वजहों से महत्वपूर्ण माना जा रहा है— विकास और प्रशासनिक स्थिरता प्राथमिक मुद्दे बनकर उभरे। स्थानीय समीकरण, जातीय गणना और परंपरागत वोट बैंक इस बार अपेक्षा के अनुसार प्रभाव नहीं डाल सके। महागठबंधन की रणनीति, आंतरिक तालमेल और संगठनात्मक क्षमता की कमी भी नतीजों में साफ झलकती है।
कुल मिलाकर 2025 का यह चुनाव बिहार की राजनीति में एक नए समीकरण की शुरुआत करता दिख रहा है, जिसमें मतदाता स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि वे साफ नेतृत्व, योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन और स्थिर सरकार को प्राथमिकता देना चाहते हैं।














